इस्लामी निवेश पद्धति से लूट

By: Jun 22nd, 2019 12:07 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

पिछले कुछ साल से भारत में कुछ स्वार्थी तत्त्वों द्वारा यह प्रचार किया जा रहा है कि वे भारतीय जिनके पुरखे सैकड़ों साल पहले इस्लाम पंथ में शामिल हो गए थे, बैंकों में अपना पैसा जमा न करवाएं और न ही वहां पूंजी निवेश करें। उनका कहना है कि यह इस्लाम पंथ के सिद्धांतों के विपरीत है। तब यह सुगबुगाहट शुरू हुई कि ऐसे भारतीय अपना पैसा कहां जमा करवाएं? आदमी रिटायर होने पर मिला कुल जमा पैसा बैंक में जमा करवा देता है। उससे वित्तीय सुरक्षा की मनोवैज्ञानिक भावना भी बनी रहती है और कुछ ब्याज भी मिलता रहता है, लेकिन जब यह नया शगूफा चला कि इस्लाम पंथी भारतीयों के लिए बैंक में पैसा निवेश करना हराम है, तो अनेक भोले-भाले लोग उस प्रचार के शिकार हो गए…

दो दिन पहले मैं कर्नाटक की राजधानी बंगलूरू में था। सोनिया गांधी और देवेगौड़ा की पार्टी मिलकर राज्य में सरकार चला रही हैं, लेकिन हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में उनकी भद्द पिट गई। मैंने सोचा था कि इस पर वहां के अपने पत्रकार मित्रों से चर्चा करूंगा, लेकिन बंगलूरू में यह चर्चा का विषय था ही नहीं। वहां तो हर जगह उस लूट पर चर्चा और चिंता हो रही थी, जिसमें इस्लामी पद्धति से निवेश का गोरखधंधा चला कर कुछ उस्तादों ने आम लोगों के करोड़ों लूट लिए थे और अब वह उस्ताद भारत से भाग कर एक इस्लामी देश में ही चला गया। इस लूट की पृष्ठभूमि जान लेना जरूरी है। पिछले कुछ साल से भारत में कुछ स्वार्थी तत्त्वों द्वारा यह प्रचार किया जा रहा है कि वे भारतीय जिनके पुरखे सैकड़ों साल पहले इस्लाम पंथ में शामिल हो गए थे, बैंकों में अपना पैसा जमा न करवाएं और न ही वहां पूंजी निवेश करें। उनका कहना है कि यह इस्लाम पंथ के सिद्धांतों के विपरीत है। तब यह सुगबुगाहट शुरू हुई कि ऐसे भारतीय अपना पैसा कहां जमा करवाएं? आदमी रिटायर होने पर मिला कुल जमा पैसा बैंक में जमा करवा देता है।

उससे वित्तीय सुरक्षा की मनोवैज्ञानिक भावना भी बनी रहती है और कुछ ब्याज भी मिलता रहता है, लेकिन जब यह नया शगूफा चला कि इस्लाम पंथी भारतीयों के लिए बैंक में पैसा निवेश करना हराम है, तो अनेक भोले-भाले लोग उस प्रचार के शिकार हो गए। शातिर और बदमाश जानते हैं कि प्रचार को प्रभावी बनाने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करना जरूरी होता है। कर्नाटक में कुछ शातिर लोगों ने यही व्यवस्था इस्लाम पंथी भारतीयों के लिए तैयार कर दी। उसका सरगना है मोहम्मद मंसूर खान। उसने अपने सात साथियों, नासिर हुसैन, निजामुद्दीन असीमुद्दीन, नावेद अहमद, अरशाद खान, अनवर पाशा, दादा पीर, वसीम के साथ मिल कर आईएमए के नाम से एक  कंपनी बना ली। इस कंपनी का दावा था कि इसमें निवेश किया गया पैसा इस्लामी निवेश है। शुरू में कंपनी ने निवेशकर्ताओं को कुछ लाभ भी दिया, जिससे कुछ गैर इस्लामियों ने भी कुछ निवेश किया।

यह कंपनी पिछले तेरह साल से सक्रिय थी। जब पैसा हजारों करोड़ में चला गया, तो कंपनी का मालिक मोहम्मद मंसूर खान लोगों की जमापूंजी समेट कर भारत छोड़ गया। पहले उसने अपने परिवार को बाहर भेज दिया और फिर एक दिन खुद भी रफूचक्कर हो गया। वहां से उसने भारत के उन इस्लाम पंथियों को, जिन्होंने उसकी कंपनी में इस्लामी निवेश किया था, एक संदेश प्रसारित किया कि मेरे पास आत्महत्या करने के सिवा कोई चारा नहीं था, क्योंकि सोनिया गांधी की पार्टी के विधायक रोशन बेग ने लोकसभा चुनावों के लिए कंपनी से चार सौ करोड़ रुपया उधार लिया था, लेकिन अब पार्टी की हार के बाद पैसा लौटाने से इनकार कर दिया। यह अलग बात है कि इस रहस्योद्घाटन के बाद मंसूर खान ने तो आत्महत्या नहीं की, अलबत्ता निवेशकर्ताओं को आत्महत्या के रास्ते पर जरूर डाल दिया। मंसूर खान के भाग जाने के बाद 46000 से भी ज्यादा लोग सामने आ चुके हैं, जिनका पैसा इस्लामी ढंग से लेकर कंपनी भाग गई है। आश्चर्य की बात है कि हजरत टीपू सुल्तान अमन फाउंडेशन ने भी अपना बेतहाशा पैसा इस कंपनी में निवेश किया हुआ था। फाउंडेशन भी शायद बैंक में पैसा जमा कराने को हराम मानता हो।

कर्नाटक की सिविल सोसायटी के कुछ लोग दिल्ली आकर सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि इस कंपनी की जांच की जानी चाहिए कि कहीं यह पैसा आतंकवादी गतिविधियों के लिए तो प्रयोग नहीं किया जा रहा था। रोशन बेग का नाम चर्चा में आ जाने के बाद सोनिया गांधी की पार्टी के कुछ और लोगों के नाम भी कर्नाटक के मीडिया में आने लगे हैं, जिनके मंसूर खान से घनिष्ठ रिश्ते हैं। इनमें एक-दो मंत्रियों के नाम भी सुने जा रहे हैं। सोनिया गांधी की पार्टी ने डैमेज कंट्रोल के लिए रोशन बेग को पार्टी से फिलहाल निलंबित कर दिया है। जिन लोगों की सारी जमापूंजी डूब गई है, वे मांग कर रहे हैं कि सारे घोटाले की जांच सीबीआई से करवाई जाए, लेकिन सीबीआई तभी जांच कर सकती है, यदि राज्य सरकार केस की जांच सीबीआई को सौंप दे।

राज्य सरकार इसके लिए तैयार नहीं है, क्योंकि जिन लोगों को मंसूर खान के नजदीकी माना जा रहा है, उनमें से कुछ सोनिया गांधी की पार्टी के भी हैं। कोई और रास्ता न देख कर कुछ प्रभावित लोग हाई कोर्ट में यह दरखास्त लगा रहे हैं कि जांच सीबीआई को दी जाए। देखना होगा कोर्ट क्या कहता है, लेकिन ममता बनर्जी के बंगाल में शारदा चिट फंड घोटाले के बाद यह शायद सबसे बड़ा घोटाला है। अंतर केवल इतना ही है कि इसमें शातिरों ने लूट की स्कीम पर मजहब की चाशनी लगा कर लूटा है, लेकिन एक बात समझ से परे है कि बंगाल में ममता बनर्जी जांच में रोड़े अटका रही है और बंगलुरू में भी वहां की सरकार ही रोड़ा बन रही है।

ई-मेल- kuldeepagnihotri@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App