पुराने भारत के मायने

By: Jun 29th, 2019 12:07 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

वह पुराने वाले भारत के लिए छटपटा रहे हैं। इसमें कोई बुरी बात नहीं, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह कौन सा पुराना वाला भारत चाहते हैं? कांग्रेस राज वाला भारत या उससे भी पहले वाला अंग्रेजी राज वाला भारत या फिर उससे भी पहले मुगलों के राज वाला भारत। गुलाम नबी राजनीति और कूटनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। वह 2014 से पहले सोनिया कांग्रेस द्वारा शासित भारत तो  बिलकुल नहीं चाहते होंगे, क्योंकि वह जानते हैं कि हाल ही में जनता ने इस शाही परिवार को आम चुनावों में हरा दिया है। सत्ता वापसी भारत की जनता ही करवा सकती है और उसने बुरी तरह सोनिया के कुनबे को पराजित करवा दिया…

सोनिया और राहुल गांधी की पार्टी के एक बहुत बड़े नेता हैं- गुलाम नबी। वह जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं। मां-बेटे की पार्टी में उनकी ऊंची पहुंच है। उतनी ही ऊंची, जितनी अहमद पटेल की है। सैम पित्रोदा भी उनसे कम पड़ते हैं। वैसे इस पार्टी में एक से एक नायाब लोग हैं, लेकिन नाम थोड़े असामान्य होने के कारण उच्चारण में मुश्किल आती है। पहली बार सुनने पर गांव देहात के लोग सैम पित्रोदा से भी चौंकते हैं। सोनिया की एक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद होती थी। उसका दर्जा सरकारी था। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि मनमोहन सिंह का मंत्रिमंडल था और सोनिया गांधी की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद थी, लेकिन यह परिषद सदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल पर भारी पड़ती थी। गुलाम नबी शायद सलाहकार परिषद के सदस्य नहीं रहे, लेकिन वह मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल के सदस्य थे, परंतु वह ऐसे सदस्य थे, जो सोनिया के प्रतिनिधि के नाते मनमोहन के सामने बैठते थे। भारतीय साहित्य में ऐसे अनेक पात्र हैं, जिनमें सामने वाले की आधी ताकत आ जाती थी। सोनिया के वरद् हस्त के कारण गुलाम नबी में भी मनमोहन सिंह की आधी ताकत आ जाती थी। ऐसे समय मनमोहन सिंह प्रायः असहाय हो जाते थे।

संजय बारू ने ऐसे अनेक चमत्कारी पुरुषों का खुलासा किया है, लेकिन पिछले पांच साल से दरबार उजड़ गया है। न सलाहकार परिषद रही और न ही मनमोहन सिंह का मंत्रिमंडल। सबसे बड़ी बात, सोनिया के भीतर की वह ताकत, जो पानी को भी पेट्रोल बना देती थी, वह समाप्त हो गई। भारत की  जनता ने वह ताकत छीन ली थी, क्योंकि उसे लगता था जो पेट्रोल बनता है, वह कुछ खास लोगों की गाडि़यों में ही भरा जा रहा था, लेकिन अनेक गुलाम नबियों ने अभी आशा नहीं छोड़ी थी। उन्हें लगता था यह संकटकाल भी कट जाएगा। सूखा समाप्त हो जाएगा और गुलाम नबियों के आंगन फिर हरे-भरे हो जाएंगे। मां-बेटे में चमत्कारी शक्तियां हैं । वे जब भारत में घूमेंगे, तो भारत के लोग भेड़ों की तरह उनके पीछे चल पड़ेंगे। फिर पुरानी सलाहकार परिषदें हरी-भरी हो जाएंगी। गुलाम नबी फिर सत्ता के सिंहासनों पर सुख भोगेंगे, लेकिन भारत के लोग बहुत निर्दय सिद्ध हुए। उन्होंने मां-बेटे के चमत्कार का पर्दाफाश कर दिया। मां ने तो घबराहट में अपनी बेटी को भी रणभूमि में उतार दिया। ढोल बजाने वालों ने ठीक माप-तोल कर चिल्लाना शुरू कर दिया, शक्ल बिलकुल दादी से मिलती है। नाक तो हू-ब-हू दादी जैसी। अब भाजपा के होश ठिकाने आ जाएंगे। भाजपा के होश तो क्या ठिकाने आते, स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को ही अमेठी में पटकनी दे दी।  सोनिया गांधी के परिवार की सारी रहस्यवादी शक्तियां भारत की जनता ने अपनी फूंक से उड़ा दीं। तब गुलाम नबी को लगने लगा कि कांग्रेस के भीतर का यह सूखा लंबी देर तक चलने वाला है। इसलिए अब गुलाम नबी गली-गली गाते घूम रहे हैं कि हमें पुराने वाला भारत चाहिए। वह पुराने वाले भारत के लिए छटपटा रहे हैं। इसमें कोई बुरी बात नहीं, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह कौन सा पुराना वाला भारत चाहते हैं? कांग्रेस राज वाला भारत या उससे भी पहले वाला अंग्रेजी राज वाला भारत या फिर उससे भी पहले मुगलों के राज वाला भारत। गुलाम नबी राजनीति और कूटनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। वह 2014 से पहले सोनिया कांग्रेस द्वारा शासित भारत तो  बिलकुल नहीं चाहते होंगे, क्योंकि वह जानते हैं कि हाल ही में जनता ने इस शाही परिवार को आम चुनावों में हरा दिया है। सत्ता वापसी भारत की जनता ही करवा सकती है और उसने बुरी तरह सोनिया के कुनबे को पराजित करवा दिया। अब बचा अंग्रेजों वाला भारत। क्या गुलाम नबी उसकी कामना कर रहे हैं? उसमें बार-बार जनता से पूछने की तो जरूरत नहीं थी। बस एक बार कंपनी बहादुर खुश, तो सत्ता पक्की। कंपनी बहादुर हटा, तो विलायत के राजा-रानी हो गए। जिस पर गोरी सरकार खुश, वही हिंदुस्तान में किसी न किसी  छोटी-मोटी गद्दी से गोंद की तरह चिपक गया। कोई रायबहादुर, कोई राय साहिब।

गोरी हुकूमत के वे गोरे दिन कितने अच्छे थे। सभी आपस में प्यार से रहते थे। भाई-भाई की तरह। गोरा भाई और भूरा भाई। गुलामी के वे दिन कितने सुंदर थे। भारत में भाजपा की सरकार आ जाने के कारण गुलाम नबी पुराने दिनों की आशा में व्याकुल हुए जा रहे हैं। सलाहकार परिषद में भी कुछ पुराने दिनों वाले लोग थे, लेकिन जनता की सुनामी ने सब कुछ मटियामेट कर दिया। इसलिए गुलाम नबी पुराने दिनों के लिए इबादत कर रहे हैं। सोनिया गांधी भी देख-सुन ही रही होंगी। लेकिन हो सकता है गुलाम नबी के पुराने दिनों को लेकर किया गया मेरा अनुमान सही न हो। कहीं वह उससे भी पुराने वाले भारत की कामना तो नहीं कर रहे?

मुगलों के अधीन रहा हुआ भारत। यदि गुलाम नबी उसकी कामना में हलकान हुए जा रहे हैं, तो सचमुच चिंता का विषय है। वैसे इस बात के इक्का-दुक्का संकेत मिलते रहते हैं कि हिंदुस्तान में कुछ लोग अभी भी उस पुराने भारत के लिए छटपटाते रहते हैं। कुछ साल पहले एक शख्स ने, जिसे हिंदुस्तान की जनता ने सिर पर बिठाया हुआ था, अचानक अपने बेटे को तैमूर बताना शुरू कर दिया था। दिल्ली में अभी भी अनेक सड़कें बाबर, शाहजहां, अकबर, हुमांयू, औरंगजेब के नाम पर हैं। जब भारत के लोग उन सड़कों के नाम बदलने की कोशिश करते हैं, तो आजाद हो चुके अनेक लोग भी उस पुराने भारत के लिए मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं। गुलाम नबी भी पुराने भारत को याद करने लगे हैं। लगता है मां-बेटे की पार्टी में आ गए सूखे के कारण अनेक लोगों का मुलम्मा उतरने लगा है।

ई-मेल- kuldeepagnihotri@gmail.com


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