सोलन का क्षेत्र छोटे सामंतों में बंटा था

By: Jun 19th, 2019 12:02 am

बसंत पाल धारा नगरी (धरानगिरी) से आकर जिस स्थान पर बसा उस स्थान का नाम उसने बसंतपुर रखा। अब यह क्षेत्रवासी कहलाता है। यह स्थान आज के सोलन नगर से कोई दस-बारह किलोमीटर की दूरी पर है। उस समय यह क्षेत्र छोटे-छोटे सामंतों में, जिन्हें मावी कहते हैं, बंटा हुआ था। बसंत पाल के पुत्र वक्षपाल ने बांसल, भोचली और भरोली के परगनों को जीतकर अपने अधीन किया था…

गतांक से आगे …

शिमला हिल स्टेट्स गजिटीयर में दिए गए कुछ नामः-

  1. बसंत पाल, 2. बकश पाल, 4. भवानी पाल, 16. इंद्र पाल, 58. जन्मी पाल, 70. सारंग पाल, 71. फतह पाल, 72. रघुनाथ पाल, 73. दलीप सिंह, 74. महेंद्र सिंह (मृ. 1839), 75. विजय सिंह (मृ. 1849), 76. उमेद सिंह (मृ. 1851), 77. दलीप सिंह (1852-1911), 78. दुर्गा सिंह ( 1911-),

बसंत पाल धारा नगरी (धरानगिरी) से आकर जिस स्थान पर बसा उस स्थान का नाम उसने बसंतपुर रखा। अब यह क्षेत्रबासी कहलाता है। यह स्थान आज के सोलन नगर से कोई दस-बारह किलोमीटर की दूरी पर है। उस समय यह क्षेत्र छोटे-छोटे सामंतों में, जिन्हें मावी कहते हैं, बंटा हुआ था। बसंत पाल के पुत्र वक्षपाल ने बांसल भोचली और भरोली के परगनों को जीतकर अपने अधीन किया था। आठ पीढ़ी पश्चात भवानी पाल ने बछरंग परगना और कसौली के क्षेत्र को वहां के राणा से हथियाकर अपने क्षेत्र में मिला ये उस समय पटियाला राज्य के अंग थे। सोलहवीं पीढ़ी में राणा इंद्रपाल ने बासल, घार, टकसाल के परगनों पर अधिकार करके उन्हें अपने राज्य में मिला लिया। इस राणा ने अपने राज्य को बघाट कर नाम दिया। बघाट के पड़ोसी राज्य सिरमौर, बाघल, नालागढ़ और कहलूर प्रभावशाली राज्य थे। इनकी आपसी प्रतिद्वंद्विता का प्रकोट बघाट पर पड़ता रहा, परंतु इस घटनाओं का क्रमबद्ध इतिहास कोई नहीं मिलता। इस रियासत का नाम बघाट, इंद्रपाल ने रखा था जो इसके हिमाचल में विलय तक जारी रहा। ग्यारहवीं शताब्दी के पश्चात से उत्तर पश्चिमी छोर से मुसलमानों के आक्रमण आरंभ हुए। इन आक्रमणों के कारण मैदानी भाग में बहुत से लोग भय और अपने धर्म की रक्षा के लिए बाघल और बघाट के क्षेत्रों में आकर बस गए। दिल्ली के न किसी सुल्तान शासक ने और न ही किसी मुगल बादशाह ने इस बारह और अठारह ठकुराइयों के क्षेत्र में सेना लेकर प्रवेश करने की ओर ध्यान दिया, क्योंकि वे जानते थे कि पहाड़ी जमींदारों (राजों) के पास ऐसा कुछ नहीं जिसे वे उनसे ले सकें। हां वे उनसे नाममात्र का खिराज अपने प्रांतीय सूबेदारों के द्वारा अवश्य वसूल करते थे। बघाट सरहिंद के सूबेदार के द्वारा सात सौ पचास रुपए देता था। सैनिक अभियान के समय वह शाही सेना की सहायता के लिए छह सौ सशस्त्र सैनिक बेगारी प्राप्त करता था।

                            


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