प्रधानमंत्री का ‘निष्पक्ष’ मंत्र

By: Jun 19th, 2019 12:04 am

नई सरकार और नई लोकसभा बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने एक सकारात्मक आह्वान किया है कि अब पक्ष और विपक्ष को छोड़ दें और निष्पक्ष भाव से जन-कल्याण के लिए काम करें। प्रधानमंत्री ने सक्रिय और सशक्त विपक्ष को लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त माना है और विपक्ष को सुझाव दिया है कि नंबर की चिंता न करें। विपक्ष का प्रत्येक शब्द मूल्यवान है। यह नए मोदी की राजनीतिक सोच है कि वह विपक्ष के सार्थक सहयोग की अपेक्षा कर रहे हैं, ताकि एकजुट होकर देशहित में संसद निर्णय ले सके। वैसे किसी भी संसद सत्र के पहले लोकसभा अध्यक्ष और संसदीय कार्य मंत्री, सदन की सुचारू कार्यवाही के लिए सभी पक्षों के सहयोग की अपील करते रहे हैं। यह कड़वा यथार्थ है कि विपक्ष उनकी अपील को अनसुना करता रहा है। नतीजतन एक लंबे समय से संसद के भीतर शोर-शराबा, नारेबाजी और हंगामे के स्वर ही सुनाई देते रहे हैं। कई बिलों को पारित करने की महज औपचारिकता निभाई जाती है, क्योंकि वे बिना बहस के ध्वनिमत से पारित किए जाते रहे हैं। सवाल दोनों पक्षों पर हैं, बेशक विपक्ष में एनडीए रहा हो अथवा यूपीए…! पहली बार प्रधानमंत्री ने पक्ष, विपक्ष और निष्पक्षता की बात कही है। दरअसल हमारे राजनीतिक दलों के बीच इतने गहरे और बेमानी अंतर्विरोध रहे हैं कि निष्पक्षता की कल्पना तक नहीं की जा सकती। 17वीं लोकसभा का पहला सत्र शुरू हुआ है। पिछले कार्यकाल के दौरान जो 46 बिल रद्द हो गए थे और जो 10 अध्यादेश पारित किए गए थे, इस सत्र में उन्हें नए सिरे से पारित कराने की जिम्मेदारी मोदी सरकार पर ही है। लोकसभा में ऐसा प्रचंड जनादेश है कि सरकार कोई भी सामान्य बिल या संविधान संशोधन पारित करा सकती है, लेकिन राज्यसभा में अब भी भाजपा-एनडीए अल्पमत में हैं। सपा और तृणमूल कांग्रेस के 13-13 राज्यसभा सांसद हैं, जो सरकार-विरोधी पक्ष हैं। सवाल है कि प्रधानमंत्री मोदी ने निष्पक्षता का मंत्र राज्यसभा में अल्पमत के मद्देनजर दिया है? निष्पक्षता की कलई तो तभी खुल गई, जब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के सांसद के तौर पर शपथ लेने के दौरान कांग्रेस समेत विपक्ष ने खूब हंगामा मचाया। उन्हें साध्वी के नाम पर आपत्ति थी, क्योंकि वह अपने नाम के साथ आध्यात्मिक गुरु का नाम भी जोड़ना चाहती थीं। बहरहाल वे दृश्य अप्रत्याशित थे और निष्पक्षता के भाव को खंडित करते थे। लोकसभा में किसी विवादास्पद बिल का मुद्दा नहीं था। भोपाल से पहली बार सांसद चुनी गईं साध्वी प्रज्ञा का शपथ लेना उनका संवैधानिक अधिकार था। फिर भी विपक्षी हंगामे का औचित्य…? इसके अलावा 20 जून को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करेंगे। उसके बाद धन्यवाद ज्ञापन प्रस्ताव के तहत एक लंबी बहस होगी। प्रधानमंत्री उसका जवाब देंगे। उस दौरान भी स्पष्ट हो जाएगा कि विपक्ष कितना निष्पक्ष रहेगा? दरअसल प्रधानमंत्री मोदी इस लोकसभा में एक बदले रूप में सामने आना चाहते हैं और वाकई ‘सबका विश्वास’ अर्जित करना चाहते हैं, लेकिन पहले ही दिन सदन में वह हुआ, जो आज तक नहीं देखा गया था। प्रधानमंत्री सांसद के तौर पर शपथ ले रहे थे और भाजपा-एनडीए के सांसद मेजें थपथपाते हुए ‘मोदी, मोदी…’ के नारे लगा रहे थे। वह लोकसभा थी, भाजपा की किसी जनसभा का आयोजन-स्थल नहीं था। ऐसी प्रवृत्ति संसद में निष्पक्षता के भाव को ‘विभाजित’ करती है। संसद की कार्यवाही सालभर में औसतन 60-65 दिन ही चल पाती है और वह भी हंगामों के साथ…। लंबे समय से मांग की जाती रही है कि कमोबेश 100 दिन तो संसद की कार्यवाही चलनी चाहिए, लेकिन किसी भी पक्ष के सरोकार इतने गंभीर नहीं रहे हैं कि जितने दिन भी संसद चले, उस दौरान तो निष्पक्षता से काम किया जाना चाहिए। अंततः संसद की गरिमा और प्रतिष्ठा का सवाल है। इस बार 277 सांसद पहली बार चुनकर लोकसभा में पहुंचे हैं और 147 सांसद दूसरी बार चुने गए हैं। प्रधानमंत्री का निष्पक्षता का आह्वान उनके लिए उदाहरण बन सके, लिहाजा खुद प्रधानमंत्री मोदी को निष्पक्ष पहल करनी होगी। वह कई संदर्भों में पूर्वाग्रही रहे हैं। अब वह देश के 134 करोड़ लोगों के प्रधानमंत्री हैं। अब वह बिलों को लेकर, संसद की स्थायी समितियों को लेकर, विपक्ष के आग्रहों को लेकर समावेशी बनने की पहल करेंगे, तो संसद निष्पक्ष हो सकती है। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि पिछला कार्यकाल, सरकार और विपक्ष के लिहाज से नकारात्मक रहा था। कमोबेश प्रधानमंत्री को गालियां देने या नफरत करने की राजनीति को संसद से दूर ही रखा जाना चाहिए।


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