कामादि-संहरण के बिना योग साधना नहीं

By: Jul 27th, 2019 12:05 am

रुद्रयामल तंत्र में क्रमशः साधना करते हुए भक्षण-नियम, अभक्षण-त्याग, पयो-भक्षण, आसन एवं कालनिर्णय आदि महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान करने तथा यौगिक कर्मों का निर्देश दिया गया है। यदि बालकपन से ही ब्रह्मचर्य का पालन किया जाए तो वह अग्रिमकाल में सुसाध्य बन जाता है क्योंकि कामादि-संहरण के बिना योग साधना में प्रवृत्त नहीं हुआ जा सकता। वायु के द्वारा ही षट्चक्रों की भावसिद्धि के निमित्त यजन किया जाता है। मूलाधार से लेकर आज्ञा तक के चक्रों में जो-जो दल हैं, उनके मध्य में अवस्थित कर्णिकाओं में भी अन्य चक्रों की भावना को यहां स्पष्ट किया गया है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्राणायाम का अतिक्रमण करते समय विघ्न करते हैं, किंतु कुंभक द्वारा अवरुद्ध हो जाने पर तत्काल सिद्धि प्रदान करते हैं…

-गतांक से आगे…

स्वाधिष्ठान चक्र के देवता बाल नामक लिंग तथा उनकी योगिनी राकिनी शक्ति है। मणिपूर चक्र के देवता रुद्र नामक सिद्ध लिंग तथा उनकी योगिनी लाकिनी शक्ति है। अनाहत चक्र के देवता बाण लिंग (पिनाकी सिद्ध लिंग) तथा उनकी योगिनी काकिनी शक्ति है। विशुद्ध चक्र के देवता छगलांड नामक शिवलिंग तथा उनकी योगिनी शाकिनी शक्ति है। आज्ञा चक्र के देवता महाकाल सिद्ध लिंग तथा उनकी योगिनी हाकिनी शक्ति है। इस प्रकार शरीर के समस्त चक्रों में शिव और शक्ति ही विद्यमान हैं। इसी प्रसंग से योग साधना करने का समय यज्ञोपवीत संस्कार के साथ माना गया, यथा :

प्राप्ते यज्ञोपवीते यः श्रीधरो ब्राह्मणोत्तमः।

योगाभायासं सद कुर्यात स भवेद् योगिवल्लभः।।

रुद्रयामल तंत्र में क्रमशः साधना करते हुए भक्षण-नियम, अभक्षण-त्याग, पयो-भक्षण, आसन एवं कालनिर्णय आदि महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान करने तथा यौगिक कर्मों का निर्देश दिया गया है। यदि बालकपन से ही ब्रह्मचर्य का पालन किया जाए तो वह अग्रिमकाल में सुसाध्य बन जाता है क्योंकि कामादि-संहरण के बिना योग साधना में प्रवृत्त नहीं हुआ जा सकता। वायु के द्वारा ही षट्चक्रों की भावसिद्धि के निमित्त यजन किया जाता है। मूलाधार से लेकर आज्ञा तक के चक्रों में जो-जो दल हैं, उनके मध्य में अवस्थित कर्णिकाओं में भी अन्य चक्रों की भावना को यहां स्पष्ट किया गया है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्राणायाम का अतिक्रमण करते समय विघ्न करते हैं, किंतु कुंभक द्वारा अवरुद्ध हो जाने पर तत्काल सिद्धि प्रदान करते हैं। हालांकि इस पुस्तक का विषय योग नहीं, बल्कि तंत्र है, फिर भी हम यह बता देना चाहते हैं कि ओउम हंसः ओउम परमपदं तर्पयामि ओउम फट् मंत्र का निरंतर जप करने से षट्चक्रों का भेदन होता है। योग और तंत्र दोनों का उद्देश्य यही तो है। मुख्यतः वायुसिद्धि का भी यही मंत्र है। षट्चक्र भेदन के लिए खान-पान का संयम, विभिन्न आसन, काल, क्रिया एवं शिव साधन आदि का ध्यान साधक को विशेष रूप से रखना चाहिए। जिस तरह योग के प्रकारों में हठयोग, राजयोग, मंत्रयोग और लययोग पृथक-पृथक होते हुए भी मिश्रित रूप में प्रयुक्त होते हैं, उसी तरह चक्र एवं उनकी साधना में भी इन सबका उभयविध प्रयोग होता है।      


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App