दुर्गा सिंह 11 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठे

By: Jul 24th, 2019 12:05 am

दलीप सिंह का पुत्र दुर्गा सिंह 1911 ई. में ग्यारह वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठा। इनका जन्म 12 दिसंबर, 1901 को हुआ था तथा शिक्षा अटसिंचन कालेज लाहौर से। इनका विवाह टीहरी गढ़वाल के राजा कीर्ति शाह की पुत्री कुमारी शशि प्रभा से हुआ था, जिनकी अप्रैल, 1947 में मृत्यु हो गई। 1919 ई. में दुर्गा सिंह को सरकार ने राज्य करने के अधिकार दिए और 1922 में उसे पूर्ण अधिकार सौंप दिए…

गतांक से आगे …

राणा महेंद्र सिंह (1839 ई.)

वर्ष 1901 के उपरांत राणा ने काफी सारी जमीन कालका-शिमला रेललाइन, सोलव कसौली कैंटोनमेंट तथा स्पाटू व डगशाई जल आपूर्ति के लिए हस्तांतरित कर दी थी। इन सभी लोकहितकारी कार्यों के कारण राज्य पर लगी 2000 रुपए राजकर की वाध्यता धीरे-धीरे कम कर दी गई और अंततः वर्ष 1931 में पूर्णतः समाप्त कर दी गई। बघाट के राणा की प्रशासनिक कार्यों में प्रांगीण था। राजा का छोटा भाई मियां अमर सिंह एक कुशल प्रशासक था जो राजा के लिए एक परसंपत्ति था। 1896 में राणा को की सीआईई उपाधि मिली। 1904 के तिब्बत मिशन में भी राणा ने अपनी सेवाएं प्रदान की थीं। राणा दलीप सिंह का विवाह ‘धामी, मांगल व सिरमौर’ की राजकुमारियों से हुआ था। दलीप सिंह ने 1911 के दिल्ली दरबार में भी भाग लिया था। वहां से वापस आने के बाद उसकी मृत्यु हो गई। दुर्गा सिंह ः दलीप सिंह का पुत्र दुर्गा सिंह 1911 ई. में ग्यारह वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठा इनका जन्म 12 दिसंबर, 1901 को हुआ था तथा शिक्षा अटसिंचन कालेज लाहौर से। इनका विवाह टीहरी गढ़वाल के राजा कीर्ति शाह की पुत्री कुमारी शशि प्रभा से हुआ था, जिनकी अप्रैल, 1947 में मृत्यु हो गई। 1919 ई. में दुर्गा सिंह को सरकार ने राज्य करने के अधिकार दिए और 1922 में उसे पूर्ण अधिकार सौंप दिए। 1924 से लेकर 1933 तक दुर्गा सिंह चैंबर आफ प्रिंसीज में शिमला की पहाड़ी रियासतों के प्रतिनिधि रहे। 1928 में रियासत के प्रशासन को कुशल तरीके से चलाने के लिए सरकार ने उसे ‘राजा’ की उपाधि से सम्मानित किया। दुर्गा सिंह आखिरी राजा थे जिन्हें ‘राजा’ की उपाधि के अलंकृत किया गया था। बघाट के पास 36 सशस्त्र पुलिस की इकाई थी। बहुत समय से शिमला की पहाड़ी रियासतों में प्रजामंडल का कार्य चल रहा था। 1939-40 के पश्चात इसकी गतिविधियां अधिक सुचारू रूप से चलाई जाने लगीं। 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात रियासती प्रजामंडलों ने पहाड़ी रियासतों को एक संगठन में लाने के लिए अपने आंदोलन तेज करने आरंभ किए। 1948 के जनवरी मास में बघाट का राजा दुर्गा सिंह दिल्ली में था। मंडी का राजा जोगेंद्र सेन भी इन्हीं दिनों दिल्ली में था। शिमला की पहाड़ी रियासतों के अन्य राजा और राणा भी दिल्ली में थे। बघाट और मंडी के राजाओं ने आपस में बात करके किसी प्रकार गांधी जी से भेंट की और उनके सामने पहाड़ी रियासतों की स्थिति रखी। गांधी जी ने उन्हें सलाह दी कि वे वापस जाकर प्रजामंडल और राजाओं के प्रतिनिधियों का सम्मेलन बुलाकर आपस में तय करें कि वे क्या चाहते हैं।                               


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