स्थानीय विस्थापितों को ही आरक्षण नहीं

By: Jul 2nd, 2019 12:01 am

नौणी विश्वविद्यालय का एक और नया कारनामा

सोलन  —डा. वाईएस परमार विश्वविद्यालय नौणी में विस्थापितों के लिए दो सीटों का आरक्षण खत्म कर दिया गया है। विडंबना यह है कि नौणी विश्वविद्यालय में बागबानी व वानिकी विषय में बीएससी करने वाले कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्यों व आईसीएआर के लिए तो कुछ सीटें आरक्षित हैं, परंतु विश्वविद्यालय की स्थापना के वक्त यहां से उजड़े परिवारों का अब करीब 30 वर्षों से चला आ रहा कोटा खत्म हो गया है। प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डा. यशवंत सिंह परमार ने 1985 में नौणी विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी थी तथा उससे पूर्व यह संस्थान 1973 में कृषि विश्वविद्यालय के रूप में विख्यात था। इस संस्थान की स्थापना के तुरंत बाद क्षेत्र के विस्थापित परिवारों के लिए बीएससी बागबानी व वानिकी विषय में अध्ययन करने के लिए दो सीटें आरक्षित रखी गई थीं। उस समय नौणी व आसपास के क्षेत्र के किसानों की 6500 बीघा भूमि को अधिगृहित किया गया। इस विश्वविद्यालय को स्थापित करने के लिए उस समय करीब 200 परिवारों को उजड़ना पड़ा था।  प्रमुख पहलू यह है कि उन विस्थापित परिवारों में 85 प्रतिशत परिवार अनुसूचित जाति व निर्धन तबके के थे। उस समय यह तर्क दिया गया था कि इन परिवारों के विद्यार्थी यदि उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं, तो बिना मैरिट में आए भी एक सीट बागबानी व एक सीट वानिकी विषय में आरक्षित की जाएगी। जानकारी के मुताबिक करीब तीन दशक से ऊपर के कार्यकाल तक विस्थापित परिवारों को यह आरक्षण की सुविधा प्राप्त होती रही, परंतु अचानक विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस आरक्षण को बंद कर दिया है। काबिलेगौर है कि इस विश्वविद्यालय में इस वर्ष भी कश्मीर व पूर्वोत्तर राज्यों के विद्यार्थियों के अध्ययन करने के लिए आरक्षण का कोटा निर्धारित है, लेकिन अपने ही प्रदेश के उजड़े हुए व निर्धन परिवारों से यह सुविधा छीन ली गई। क्षेत्र के समाजसेवी व स्थानीय ग्राम पंचायत के प्रधान बलदेव ठाकुर ने इस प्रकरण को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि पहले मुख्यमंत्री ने यहां के विस्थापितों को यह समझौते के तहत आरक्षण दिया था। उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग की है कि विस्थापित परिवारों के बच्चों के लिए आरक्षित कोटे को बहाल किया जाए।


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