एक केंद्रित जीवन प्रक्रिया

By: Aug 3rd, 2019 12:02 am

सदगुरु  जग्गी वासुदेव

अभी हाल ही में, एक महिला मुझे बता रही थी कि कैसे वह कुछ खास ऊर्जा को महसूस कर पाती है और कैसे अलग-अलग लोग, विभिन्न प्रकार के रूप और कई खास स्थान आप पर प्रभाव डालते हैं। प्राण-प्रतिष्ठा करने के लिए सबसे अच्छी सामग्री तो मनुष्य ही है क्योंकि इस धरती पर जीवन के जितने भी रूप हैं, उन सब में वही सर्वाधिक विकसित है। मनुष्य ही सबसे ज्यादा आसानी से प्राण-प्रतिष्ठित किया जा सकता है, लेकिन मनुष्यों के साथ समस्या यह है कि हर कुछ मिनटों में वे यू-टर्न ले लेते हैं। आप उन्हें अभी प्राण-प्रतिष्ठित कर सकते हैं पर कल सुबह वे कैसे होंगे, ये हमें नहीं मालूम। तो सबसे बड़ा मुद्दा खास तौर पर आज की दुनिया में ये है कि जो उन्हें आज दिया जा रहा है, क्या वे उसके साथ पूरी तरह से प्रतिबद्ध होंगे? इसी कारण हम अन्य रूपों को प्राण-प्रतिष्ठित करते हैं। आज, आधुनिक विज्ञान अब भी भौतिक वस्तुओं का ही अध्ययन कर रहा है। आप में जो भी भौतिक है, वह सब बाहर से इकट्ठा किया गया है। आप जिसे ‘मेरा शरीर’ कहते हैं वह तो इस धरती का बस एक टुकड़ा है। आप ने इसको उस भोजन से एकत्रित किया है, जो आप खाते आए हैं। आप में जो भी भौतिक है, उसे बस आपने बाहर से इकट्ठा किया है तो फिर वह आप तो नहीं हो सकते। आप क्या हैं? निश्चित रूप से भौतिकता से परे भी कोई आयाम है। आप अगर उसे अनदेखा करेंगे, तो कोई जीवन ही नहीं होगा, लेकिन अभी तो परिस्थिति ये है कि मानवीय तर्क बुद्धि, जो अपने आप को वैज्ञानिक मानती है, अभी उस स्तर पर है, जहां वह ये निष्कर्ष निकालती है कि जो उपकरणों से मापा न जा सके, उसका अस्तित्व ही नहीं है। इस तरह देखें तो अभी आप सबका कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि आप को मापा नहीं जा सकता। किसी बाध्यता के करण मुझे एक ऐसे संस्थान में जाना पड़ा। उन्होंने मेरे शरीर में 14 इलेक्ट्रोड्स लगाए और फिर कहा, आप ध्यान कीजिए। मैंने उत्तर दिया, मैं नहीं जानता ध्यान कैसे किया जाता है? वे चौंके और बोले, आप तो सब को ध्यान करना सिखाते हैं। मैंने कहा, मैं ऐसा इसलिए करता हूं क्योंकि वे स्थिर बैठना नहीं जानते। उनकी समस्या यह थी कि वे बस एक नाम और एक प्रक्रिया चाहते थे, जिसके परिणाम को वे नाप सकें।


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