कांग्रेस ने दी पाक को संजीवनी
डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री
वरिष्ठ स्तंभकार
अभी तक पाकिस्तान, अनुच्छेद 370 की व्याख्या यह कह कर करता था कि भारत स्वयं भी जम्मू-कश्मीर को अपना स्थायी हिस्सा नहीं मानता, इसीलिए उसने अपने संविधान में इस राज्य की व्यवस्था के लिए यह विशेष अनुच्छेद बनाया हुआ है और न ही भारत का संघीय संविधान प्रदेश पर पूरी तरह लागू होता है…
भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 की सर्वाधिक जरूरत पाकिस्तान को थी । यही कारण है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कह रहे हैं कि अनुच्छेद 370 के मामले पर उनका देश किसी भी हद तक जा सकता है । उसने कहा है कि अब फिर से पुलवामा जैसे आतंकी आक्रमण हो सकते हैं। पाकिस्तान ने सीमा पर युद्धास्त्र लाने शुरू कर दिए हैं। आतंकियों को वह भारत में घुसाने की फिराक में है। समझौता एक्सपे्रस और स्ती की बस वापिस आ गई हैं। इस्लामाबाद ने 13 भारतीय राजनयिकों को वापिस भेज दिया है और भारत से राजनयिक समबंधों का दर्जा कम कर दिया है ।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान को जम्म-ू कश्मीर में अनुच्छेद 370 बना रहने से कितना राजनीतिक, कूटनीति और सामरिक लाभ मिलता होगा, जिसके छिन जाने से वह इतना बौखलाया हुआ है। पाकिस्तान इस अनुच्छेद की व्याख्या से जम्मू-कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित क्षेत्र सिद्ध करता था । अब यदि यह प्रदेश देश के बाकी प्रदेशों या केंद्रशासित क्षेत्रों की तरह हो जाता है तो पाकिस्तान के बीच विवाद का विषय तो इतना ही बचता है कि 1947 में जब पाकिस्तान ने भारत पर सैनिक हमला करके जम्मू- कश्मीर के जिस एक-तिहाई हिस्से पर कब्जा कर लिया था, उस पर दोनों देश आपस में बातचीत करें । अभी तक पाकिस्तान, अनुच्छेद 370 की व्याख्या यह कह कर करता था कि भारत स्वयं भी जम्मू-कश्मीर को अपना स्थायी हिस्सा नहीं मानता, इसीलिए उसने अपने संविधान में इस राज्य की व्यवस्था के लिए यह विशेष अनुच्छेद बनाया हुआ है और न ही भारत का संघीय संविधान प्रदेश पर पूरी तरह लागू होता है । अभी तक जम्मू- कश्मीर के लिए यह व्यवस्था थी कि वहां के भूगोल में संसद दखलंदाजी नहीं कर सकती थी । शेष सभी प्रांतों का पुनर्गठन हो सकता था और होता भी रहा है लेकिन जम्मू- कश्मीर के भूगोल को छेड़ा तक नहीं जा सकता था । लेकिन अनुच्छेद 370 के प्रावधान बदल जाने के कारण संसद ने जम्मू- कश्मीर राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित कर उसे दो केंद्र शासित क्षेत्रों में तब्दील कर दिया है। पाकिस्तान का अपना हित इसी में था कि जम्मू- कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू रहे और उसी के आधार पर इसे विवादित हिस्सा सिद्ध किया जाता रहे । यह स्थिति वहां के कुछ राजनीतिक दलों को अनुकूल पड़ती थी और वहां की सेना को भी अनुकूल थी । दरअसल जम्मू-कश्मीर का विवादित बने रहना पाकिस्तान के राष्ट्रीय हितों और सामरिक हितों के लिए लाभदायक है । लेकिन भारत के लिए यह स्थिति धीरे-धीरे आत्मघाती बनती जा रही थी । जाहिर था पाकिस्तान अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के प्रश्न को लेकर दुनिया भर में शोर मचाता और उसने मचाया भी । उसे आशा रही होगी कि अमरीका और ब्रिटेन, जो अब तक पाकिस्तान का उपयोग भारत के खिलाफ अपने हितों की पूर्ति के लिए करते आए हैं, अब भी इस नए मामले में उसका समर्थन करेंगे । पाकिस्तान को आशा रही होगी कि अमरीका आजकल अफगानिस्तान में फंसी अपनी पूंछ छुड़ाने के लिए तालिबान के साथ बातचीत कर रहा है । पूंछ छुड़ाने में उसे पाकिस्तान की सहायता की जरूरत पड़ेगी। इसलिए पाकिस्तान अमरीका पर दबाव बना लेगा। यूएई ने तो स्पष्ट ही कहा कि यह भारत का आंतरिक मामला है । रूस ने भी यही दोहराया। चीन लद्दाख के मुद्दे पर जरूर कुछ खांसता रहा लेकिन कुल मिला कर वह द्विपक्षीय बातचीत के गिर्द घूमने लगा। यहां तक कि एक भी अरब देश ने इस मामले पर पाकिस्तान का समर्थन करना उचित नहीं समझा।
मोटे तौर पर वर्तमान अंतरराष्ट्रीय राजनीति की विवशताएं या यथार्थ के चलते पाकिस्तान इस मामले में अकेला रह गया है । कोई भी देश आखिर यह कैसे कह सकता है कि भारतीय संसद अपने संविधान में वैधानिक ढंग से हस्तक्षेप नहीं कर सकती । इसी प्रकार के तर्क लेकर एक सज्जन अनुच्छेद 370 की घर वापिसी के लिए उच्चतम न्यायालय तक जा पहुंचे हैं । वे न्यायालय से गुहार लगा रहे थे कि उनकी याचिका को आपातकालीन मान कर तुरंत सुनवाई की जाए । वैसे भी अब वे दिन हवा हो गए हैं जब भारत कमजोर की जोरू सब की भाभी हुआ करती थी। अंतरराष्ट्रीय परिदृष्य में पाकिस्तान अकेला पड़ गया था कि तभी उसे एक ऐसे इलाके से सहायता मिली जिसकी उसने कल्पना भी न की होगी। पाकिस्तान को सहायता या कुमुद पहुंचाने वाला यह समूह सोनिया कांग्रेस का पाकिस्तान सैल कहा जा सकता है।
अपनी भाषा में पार्टी शायद उसे अपना अंतरराष्ट्रीय सैल ही कहती होगी। लेकिन लगता है उसकी पूरी रणनीति इस संकट काल में किसी भी तरह पाकिस्तान को अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर निरंतर सहायता पहुंचाते रहना है ताकि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कहीं पाकिस्तान निराश होकर अनुच्छेद 370 का मुद्दा छोड़ न दे । इस अभियान की शुरुआत स्वयं राहुल गांधी ने की । उन्हें इसके लिए सहायता बीबीसी इत्यादि ने मुहैया करवाई । बीबीसी इस समय पूरी निष्ठा से ये अफवाहें फैलाने में लगा हुआ है। न्यूयार्क टाईम्स यही काम अपने संपादकीय लेखों के माध्यम से कर रहा है। सरकार वहां लोगों का दमन कर रही है। चिदंबरम ने इस मामले को और आगे बढ़ाया। उसने कहा कि जम्मू-कश्मीर यदि हिंदू बहुल होता तो मोदी सरकार उस ओर देखती भी न। जम्मू- कश्मीर को इसलिए निशाना बनाया जा रहा है कि वहां मुसलमान रहते हैं । उनके अनुसार कश्मीर में तानाशाही है और लोकतंत्र का गला लगभग दबा ही दिया गया है। दिग्विजय उससे भी आगे गए । उनका भारतीय मीडिया पर विश्वास नहीं है । पाकिस्तान जिस सहायता के लिए दुनिया भर में गुहार लगा रहा था और वह उसे मिल नहीं रही थी, वही सहायता उसे भारत के ही सबसे पुराने राजनीतिक दल से प्राप्त हुई । अंधा क्या मांगे दो आंखें।
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