कुंडलिनी शक्ति पर बहुत कम अनुसंधान

By: Aug 3rd, 2019 12:05 am

कुंडलिनी शक्ति पर अभी तक बहुत कम अनुसंधान हुआ है। यह ज्ञान योगियों, संतों और कुछ ग्रंथों तक ही सीमित है। आज के आधुनिक युग में यह अनुभव का विषय है। जो थोड़े-बहुत परीक्षण किए गए, उनसे पता चलता है कि कुछ योगी हृदय की धड़कन को 72 बार प्रति मिनट से 30-35 बार प्रति मिनट तक कर सकते हैं। भू-समाधि लेने वाले योगी काफी समय तक ऑक्सीजन की कमी के बावजूद शांत और ध्यानस्थ रहते हैं। कोठारी, बोर्डिया और गुप्त के एक अध्ययन से पता चला कि आठ दिन तक भू-समाधि लेने वाले योगी अपने हृदय की विद्युत शक्ति को रोक देते हैं। यह कैसे संभव हुआ, इस विषय में वैज्ञानिक मौन हैं…

-गतांक से आगे…

कुंडलिनी शक्ति पर अनुसंधान

कुंडलिनी शक्ति पर अभी तक बहुत कम अनुसंधान हुआ है। यह ज्ञान योगियों, संतों और कुछ ग्रंथों तक ही सीमित है। आज के आधुनिक युग में यह अनुभव का विषय है। जो थोड़े-बहुत परीक्षण किए गए, उनसे पता चलता है कि कुछ योगी हृदय की धड़कन को 72 बार प्रति मिनट से 30-35 बार प्रति मिनट तक कर सकते हैं। भू-समाधि लेने वाले योगी काफी समय तक ऑक्सीजन की कमी के बावजूद शांत और ध्यानस्थ रहते हैं। कोठारी, बोर्डिया और गुप्त के एक अध्ययन से पता चला कि आठ दिन तक भू-समाधि लेने वाले योगी अपने हृदय की विद्युत शक्ति को रोक देते हैं। यह कैसे संभव हुआ, इस विषय में वैज्ञानिक मौन हैं। इससे सामान्यतः एक निष्कर्ष यह अवश्य निकाला गया कि योगीजन शरीर की उन क्रिया-प्रक्रियाओं पर भी नियंत्रण करने में समर्थ होते हैं जो स्वाभाविक और अनियंत्रित मानी जाती है अर्थात जिन्हें ‘अनैच्छिक क्रिया’ कहा जाता है। कुंडलिनी जाग्रत हो जाने पर व्यक्ति के ज्ञान का कितना विस्तार हो जाता है, इसके कई विलक्षण प्रमाण उपलब्ध हैं। स्टेनफोर्ड अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने यूरी गेलर को एक कमरे में बंद कर दिया। कमरे की दीवारों पर धातु की चादरें लगी थीं। इस कमरे में बाहर की रेडियो तरंगों एवं ध्ननि आदि का आना असंभव था। बाहर किसी ने कुछ शब्द-चित्र बनाए। कमरे में बंद गेलर ने कुंडलिनी जगाकर वैसे ही शब्द-चित्र बना दिए। बाद में देखा गया तो सभी शब्द और चित्र समान थे। इस पर अमरीकी अंतरिक्ष यात्री कैप्टन मिशेल ने कहा, ‘गेलर की अतींद्रिय शक्ति एक प्रमाण है। इस शक्ति के रहस्य का पता लगाना चाहिए।’ कोलकाता के एक भूतपूर्व न्यायाधीश सर जॉन वुडरफ ने भारतीय दर्शन पर कई ग्रंथ लिखे हैं। एक ग्रंथ में उन्होंने लिखा है कि ताजमहल होटल के लाउंज में मैं बंगाल के एक अधिवक्ता के साथ बैठा था। हमारी बातचीत अतींद्रिय शक्ति पर होने लगी। अधिवक्ता ने कहा कि सामने जो बीस लोग बैठे हैं, उनमें से जिसे आप कहें, मैं उसे उठा-बैठा सकता हूं। मैंने एक व्यक्ति की ओर संकेत किया। तब अधिवक्ता ने अपनी अतींद्रिय शक्ति का प्रयोग किया। इसके फलस्वरूप वह व्यक्ति तत्काल अपने स्थान से अकारण ही उठ खड़ा हुआ, कुछ इधर-उधर घूमा और फिर अपने स्थान पर जाकर बैठ गया।

 


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