डगमगाती कांग्रेस के सामने विकल्प

By: Aug 23rd, 2019 12:07 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

कांग्रेस को राष्ट्रीय परिदृश्य का नेतृत्व करने की हेकड़ी को छोड़ते हुए जहां रणनीति बनती है, वहां समविचारक दलों से गठजोड़ कर लेना चाहिए। बेशक पंजाब अभी भी उसके प्रभाव में है, किंतु यह कैप्टन अमरेंद्र सिंह के कारण संभव हो पा रहा है। वहां पर नवजोत सिंह सिद्धू कैप्टन के नेतृत्व के लिए कुछ परेशानियां खड़ी करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अमरेंद्र सिंह ने निपुणता के साथ इस मसले को हल कर लिया है तथा सिद्धू को शांत करवा दिया है। अहम बात यह है कि सिद्धू को केंद्रीय नेतृत्व का समर्थन हासिल था…

दिन-प्रतिदिन कांग्रेस एक डूबता जहाज बनती जा रही है। यह मां और बेटे के मध्य घिसटती जा रही है। बुरी स्थिति यह है कि इसे विपक्ष का सहयोग नहीं मिल पा रहा है। कर्नाटक में उसकी शर्मनाक पराजय हुई जहां वह फ्लोर टेस्ट में हार गई। इसके बाद लोकसभा में तीन विधेयकों पर भी वह अपने पक्ष में समर्थन नहीं जुटा पाई। राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के चुनावों में उसे मिली विजय से पार्टी की रगों में जो उत्साह का नया खून दौड़ने लगा था, वह दिन अब चले गए हैं। इन राज्यों में जीत से उत्साहित होकर पार्टी ने राहुल गांधी के नेतृत्व में भाजपा पर हमले बोलने शुरू कर दिए थे। महाराष्ट्र के नगर निगम चुनावों में हार के बाद यह पार्टी इसी राज्य में राज्यसभा चुनावों में भी बुरी तरह हार गई, जबकि वह विधानसभा में जीत गई थी।

अब यह स्पष्ट हो चुका है कि कांग्रेस अपने बूते पर जीत की कोई संभावना नहीं रखती है, क्योंकि उसके शिकंजे से वोट खिसकते जा रहे हैं। कांग्रेस को राष्ट्रीय परिदृश्य का नेतृत्व करने की हेकड़ी को छोड़ते हुए जहां रणनीति बनती है, वहां समविचारक दलों से गठजोड़ कर लेना चाहिए। बेशक पंजाब अभी भी उसके प्रभाव में है, किंतु यह कैप्टन अमरेंद्र सिंह के कारण संभव हो पा रहा है। वहां पर नवजोत सिंह सिद्धू कैप्टन के नेतृत्व के लिए कुछ परेशानियां खड़ी करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अमरेंद्र सिंह ने निपुणता के साथ इस मसले को हल कर लिया है तथा सिद्धू को शांत करवा दिया है। अहम बात यह है कि सिद्धू को केंद्रीय नेतृत्व का समर्थन हासिल था, इसके बावजूद मामले को निपटा दिया गया है और अब कैप्टन के नेतृत्व पर कोई सवाल बाकी नहीं बचा है। कैप्टन ने सिद्धू को किनारे करते हुए केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप को भी असंभव बना दिया क्योंकि कांग्रेस पहले ही कर्नाटक संकट का सामना कर रही थी।

कर्नाटक में सरकार बचाने के लिए कांग्रेस ने सिर-धड़ की बाजी लगा दी थी, परंतु अंततः वह इसमें विफल रही। मध्यप्रदेश व राजस्थान राज्य कमजोर कडि़यां हैं क्योंकि उनका मार्जिन छोटा है तथा पार्टी के भीतर नेतृत्व की लड़ाई भी पार्टी को नुकसान पहुंचा रही है। जब मैंने अपनी पुस्तक ‘कारपोरेट सोल’ लिखी थी तो मैंने भारत में सैकड़ों संगठनों का अध्ययन किया था। इस अनुसंधान से यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया था कि किसी भी संगठन के लिए सफलता का मूल कारक संगठन का मिशन ही होता है। इसमें महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मिशन ही किसी संगठन के नेतृत्व को निर्देशित करता है। जो संगठन विफल रहे, उनके पास सही निर्देशन की कमी थी तथा उनके मिशन भी उदासीनता लिए हुए थे। हमने ऐसे संगठनों को मिशन डिसओरिएंटिड संगठन कहा। जहां कहीं भी हम सीखने के लिए गए, हमने संगठन में लोगों की साझा शिकायत यह पाई कि वे यह नहीं जानते थे कि वे कहां जा रहे हैं।   इसी तरह हमने कांग्रेस के वर्करों से भी पूछा कि पार्टी क्यों विफल हो रही है। इसका जो जवाब सुनने को मिला, वह यह था कि वर्कर नहीं जानते थे कि उनका नेतृत्व कौन कर रहा है तथा उन्हें कहां जाना है। हर समय पर कांग्रेस अस्पष्ट रही, जब तक कि आम चुनावों में एनडीए को शानदार जीत हासिल नहीं हुई और चुनाव में बेहतर करने की आशा रखने वाली कांग्रेस की शर्मनाक हार नहीं हुई। राहुल गांधी ने इस बार हार की जिम्मेवारी ली और इस्तीफा दे दिया। यह एक सामान्य जवाबदेही थी, किंतु क्या वह नेतृत्व कर रहे थे? उन्होंने कई रैलियों को संबोधित किया, किंतु जब परिणाम नकारात्मक रहे तो उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर आरोप लगा डाला कि उन्होंने मोदी के खिलाफ छेड़े अभियान में उनका साथ नहीं दिया। यह सही बात है कि ऐसे कई कांगे्रस नेता थे जो अपनी संतानों को प्रोमोट करने में ही व्यस्त रहे, किंतु यही सब कुछ सोनिया गांधी भी गांधी परिवार के लिए कर रही थीं। कांग्रेस में हर किसी का अपना-अपना मिशन था, जबकि पार्टी के लिए साझे मिशन की जरूरत थी। केवल नेता ही लोगों को किसी मिशन से जोड़ता है, किंतु अगर वे अनुगमन नहीं करते हैं, तो यह उसके नेतृत्व की भी विफलता मानी जाती है। इसलिए पार्टी को सबसे पहले किसी विश्वसनीय नेता के बारे में प्राथमिकता से फैसला लेना चाहिए।

आपका नेता ऐसा नहीं होना चाहिए जो उभरने के लिए इंकुबेशन चैंबर में इंतजार कर रहा हो। दुर्भाग्य से कांग्रेस सच्ची चुनाव प्रणाली का अनुगमन नहीं करती है, इसलिए पार्टी में भीतरी लोकतंत्र मर चुका है। इसका फैसला करने के लिए पार्टी में एक मंडली (कोटरी) है, अभी तक ऐसा ही चल रहा है, लेकिन अब जबकि पार्टी गंभीर चुनौती का सामना कर रही है, उसे नवाचार के नजरिए से सोचना चाहिए तथा सफलता को सुनिश्चित बनाना चाहिए। नेता का चयन पार्टी के समक्ष मिशन पर निर्भर करता है। इसकी प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। क्या पार्टी गांधी परिवार को बचाना चाहती है अथवा वह सोचती है कि इसके सिवा अन्य कुछ भी संभव नहीं है। अगर ऐसा है, तो उसे इस पर काम शुरू कर देना चाहिए। किंतु क्या पार्टी का मिशन राजनीतिक ताकत को जीतना तथा छीनना है, यह वह मिशन होना चाहिए, इस बात को किनारे करते हुए कि कौन परिवार को डिलीवर करेगा अथवा कोई बाहरी व्यक्ति, किंतु विजेता को निर्वाचित जरूर होना चाहिए। अगर मिशन स्पष्ट हो तो पार्टी कोई भी निर्णायक फैसला करने में सक्षम हो सकती है, बजाय इसके कि फैसला जनता पर छोड़ दिया जाए। पार्टी एक चुनाव परिषद का गठन कर सकती है जिसमें उन सभी मुख्यमंत्रियों को सदस्य बनाया जा सकता है जो इस समय सत्ता में हैं।

इतनी ही संख्या में अन्य सदस्य आउटगोइंग लीडर की ओर से चुने गए हो सकते हैं। पार्टी के समक्ष चुनौतियों व भविष्य की जरूरतों पर बहस के बाद इस निकाय में गुप्त मतदान चुनाव प्रणाली अपनानी चाहिए। भविष्य की जरूरत के लिए पार्टी स्वतंत्र सलाहकारों अथवा विशेषज्ञों की ओर से किए गए अनुसंधान के आधार पर एक फैक्चुअल पेपर तैयार कर सकती है। भविष्य में पार्टी को किस तरह संचालित करना है, इसके निर्देशन के लिए पार्टी को ताकतवर व दूरदर्शी विजन वाले नेताओं के साथ सामने आना चाहिए। यह निश्चित नहीं है कि पार्टी तार्किक और तर्कसंगत प्रणाली का अनुगमन करेगी क्योंकि पसंद को लेकर ज्यादातर यह बात स्पष्ट है कि चयन गांधी परिवार से ही होगा। इसलिए हमारे समक्ष तीन विकल्प हैं, एक :  पार्टी में चुनाव प्रणाली का अनुगमन करना, दो : चुनाव परिषद का विकल्प तथा तीन ः गांधी परिवार की नियुक्तियों को जारी रखना। पार्टी को अगर अधोगति से बचाना है तो उसे इन तीन विकल्पों में से किसी एक को योग्यता के आधार पर प्राथमिकता से चयन करना होगा। 

ई-मेल :  singhnk7@gmail.com


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