ढांचागत सुधार हटाएंगे भ्रष्टाचार

By: Aug 6th, 2019 12:07 am

डा. भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

सुझाव है कि जवाबदेही बढ़ाई जाए। वर्तमान में सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही या तो मंत्रियों के प्रति होती है या सीएजी (कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) के प्रति। यह जवाबदेही ठोस नहीं रहती है। अकसर मंत्री और अधिकारियों के बीच में एक अपवित्र गठबंधन होता है। ये मिलकर देश को लूटते हैं। इसलिए मंत्री के प्रति जवाबदेही निष्फल है। सीएजी के कर्मचारी भी मूल रूप से सरकारी कर्मचारी होते हैं और उनकी वर्ग चेतना सरकारी कर्मियों को संरक्षित करने की होती है, जैसे कहा जाता है कि चोर-चोर मौसेरे भाई। इसलिए वर्तमान में सरकारी कर्मी जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं। इस समस्या का निदान हो सकता है, यदि हर सरकारी अधिकारी का पांच वर्ष में एक बार जनता द्वारा गुप्त मूल्यांकन कराया जाए। जैसे बिजली बोर्ड के अधिशाषी अभियंता के बारे में पांचवें वर्ष उन लोगों से विचार मांगे जाएं, जो उसके डिवीजन के उपभोक्ता थे…

मेरे व्यक्तिगत अनुभव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईमानदार व्यक्तियों को शीर्ष पदों पर नियुक्त किया है, लेकिन जमीनी स्तर पर अनुभव बताता है कि भ्रष्टाचार में वृद्धि ही हुई है। आम जनता में त्राहि-त्राहि मची हुई है। प्रधानमंत्री को चाहिए कि भ्रष्टाचार निवारण के लिए ढांचागत सुधारों को लागू करें। ऐसी व्यवस्था बना दें कि भ्रष्ट व्यक्ति का स्वयं ही पर्दाफाश हो जाए। यह अच्छी बात है कि उनके द्वारा पुरानी व्यवस्था में ही ईमानदार व्यक्तियों को नियुक्त किया गया है, परंतु यह पर्याप्त नहीं होगा। आने वाले समय में यदि पुनः भ्रष्ट व्यक्तियों को नियुक्त कर दिया गया, तो वर्तमान में दिख रहा सुधार फिसल जाएगा, जैसा कि एमर्जेंसी के बाद हुआ था। अतः जरूरत इस बात की है कि ढांचागत सुधार कर दिए जाएं, जिससे कि आने वाले समय में भी कोई भ्रष्ट व्यक्ति उच्च पद पर पहुंच ही न सके। इसके लिए कुछ सुझाव नीचे देना चाहता हूं। पहला सुझाव है कि संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों के दावेदारों की पात्रता पर सार्वजनिक बहस होनी चाहिए, जैसे सेंट्रल विजिलेंस कमिशनर, चीफ इलेक्शन कमिशनर, कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल, चीफ इन्फार्मेशन कमिशनर इत्यादि की नियुक्ति पर। इन पदों पर नियुक्त व्यक्ति देश की जमीनी व्यवस्था को नियंत्रण में रखते हैं। वर्तमान में इनकी नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है, यद्यपि विपक्ष के नेता को नियुक्ति समिति में रखा जाता है।

जनता की पैठ नहीं होती है। हमें इस दिशा में अमरीका से सबक लेना चाहिए। वहां संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों के लिए राष्ट्रपति किसी व्यक्ति को नियुक्त करते हैं। उसके बाद सांसद की कमेटी द्वारा उनका साक्षात्कार लिया जाता है, जो कि कैमरे में सार्वजनिक होता है। इस साक्षात्कार के समय उनसे कठिन से कठिन सवाल पूछे जाते हैं। यदि संसद की कमेटी ने उनकी नियुक्ति को स्वीकार नहीं किया, तो राष्ट्रपति को दूसरे व्यक्ति को नियुक्त करना पड़ता है। अपने देश में व्यवस्था बनाई जा सकती है कि संवैधानिक पदों की नियुक्ति की पुष्टि संसद की समिति द्वारा की जाए। दावेदारों के रिज्यूमे को वेब साइट पर डाला जा सकता है और जनता से उनकी पात्रता या पूर्व के कार्यकलापों के आकलन के सुझाव मांगे जा सकते हैं। दूसरा सुझाव है कि जवाबदेही बढ़ाई जाए। वर्तमान में सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही या तो मंत्रियों के प्रति होती है या सीएजी (कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) के प्रति। यह जवाबदेही ठोस नहीं रहती है। अकसर मंत्री और अधिकारियों के बीच में एक अपवित्र गठबंधन होता है। ये मिलकर देश को लूटते हैं। इसलिए मंत्री के प्रति जवाबदेही निष्फल है। सीएजी के कर्मचारी भी मूल रूप से सरकारी कर्मचारी होते हैं और उनकी वर्ग चेतना सरकारी कर्मियों को संरक्षित करने की होती है, जैसे कहा जाता है कि चोर-चोर मौसेरे भाई। इसलिए वर्तमान में सरकारी कर्मी जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं। इस समस्या का निदान हो सकता है, यदि हर सरकारी अधिकारी का पांच वर्ष में एक बार जनता द्वारा गुप्त मूल्यांकन कराया जाए। जैसे बिजली बोर्ड के अधिशाषी अभियंता के बारे में पांचवें वर्ष उन लोगों से विचार मांगे जाएं, जो उसके डिवीजन के उपभोक्ता थे। अथवा जैसे किसी सरकारी विद्यालय के प्रिंसीपल के विषय में उस विद्यालय के छात्रों के अभिभावकों से गुप्त मूल्यांकन कराया जाए। ऐसा करने से अधिकारियों को आम जनता से भय बनेगा और उनकी आम जनता के प्रति जवाबदेही बनेगी। इस दिशा में कौटिल्य से हमें सबक लेना चाहिए। कौटिल्य ने कहा था कि राज्य के कर्मियों द्वारा भ्रष्टाचार का पता लगाना उतना ही कठिन है, जितना यह पता लगाना कि तालाब में मछली ने कितना पानी पिया। कौटिल्य ने कहा था कि राजा को एक जासूस व्यवस्था बनानी चाहिए, जो स्वयं सरकारी अधिकारियों का गुप्त मूल्यांकन करे। बताया जाता है कि पूर्व में राजा गुप्त रूप से अपने राज्य में घूमते थे। उसी प्रकार सरकार को एक विशेष संस्था बनानी चाहिए, जिसके व्यक्ति स्वयं पूरे देश में फैल कर सरकारी कर्मियों का गुप्त मूल्यांकन करें। कौटिल्य ने यह भी कहा था कि इन जासूसों पर नजर रखने के लिए एक दूसरी जासूस व्यवस्था बनानी चाहिए, जिससे कि इन जासूसों द्वारा सही सूचना ही दी जाए। हमारी वर्तमान शासन प्रणाली में पुलिस द्वारा भ्रष्टाचार का संज्ञान तभी लिया जाता है, जब दोनों में से कोई एक पार्टी शिकायत करे। यदि भ्रष्टाचार दोनों की मिलीभगत से होता है, तो सरकार उसका सज्ञान नहीं लेती है। इस दुष्चक्र को तोड़ने की जरूरत है।

सुझाव है सरकारी विभागों का भी बाहरी ऑडिट कराया जाना चाहिए। फिलहाल सरकारी विभगों का ऑडिट सीएजी के सरकारी कर्मियों के द्वारा ही किया जाता है।  सरकारी कर्मियों की मिलीभगत से तमाम गड़बडि़यां, गलतियां उजागर नहीं होती हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि कम से कम पांच वर्ष में एक बार हर सरकारी विभाग का बाहरी ऑडिट हो और उसे सार्वजनिक किया जाए। इस प्रकार के ढांचागत सुधार यदि प्रधानमंत्री लागू कर देते हैं, तो आने वाले समय में चाहे किसी की सरकार बने, सरकारी अधिकारी जनता के प्रति जवाबदेह ज्यादा होंगे और देश को सुशासन उपलब्ध होने की संभावना बढ़ेगी। चौथा सुझाव है कि सूचना के अधिकार की तर्ज पर जवाब का अधिकार कानून बनाना चहिए।

सूचना के अधिकार में आप सरकारी अधिकारियों से वह सूचना मांग सकते हैं, जो फाइलों में उपलब्ध हो अथवा फाइलों का निरीक्षण कर सकते हैं, लेकिन आप कोई प्रश्न नहीं पूछ सकते हैं। जैसे यदि सरकार ने निर्णय लिया कि सड़क दस मीटर चौड़ी बनेगी, तो आप सूचना के अधिकार में यह मांग सकते हैं कि दस मीटर चौड़ी सड़क के ठेके की प्रतिलिपि दी जाए अथवा दस मीटर चौड़ाई तय करने के मानक बता दिए जाएं, लेकिन आप सरकार से यह नहीं पूछ सकते कि दस के स्थान पर आठ अथवा 12 मीटर की सड़क क्यों नहीं बनाई गई। इसी प्रकार आप सरकार से यह नहीं पूछ सकते कि किसी विद्यालय में केवल तीन छात्र हैं, तो उसे बंद क्यों नहीं किया जाता। अथवा आप सरकार से यह नहीं पूछ सकते कि कोई कर्मी अपने पद पर 15 वर्ष से क्यों विद्यमान है, उसका तबादला क्यों नहीं हुआ है। इस प्रकार के तमाम प्रश्नों को पूछने का जनता को अधिकार होना चाहिए। इसके लिए जवाब के एक अधिकार का कानून बनाना चाहिए।

 ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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