बसंत ऋतु में आती है रोहड़ू मेले की चमक

By: Aug 7th, 2019 12:18 am

सर्वत्र प्रकृति की काया पूरे यौवन पर होती है। परिंदे भी बसंत ऋतु के आगमन पर अपने गीत गुनगुनाने लगते हैं। फूलों की सौंधी-सौंधी खुशबू आमजन मानस को मदहोश कर देती है। इसी बीच यह मेला भी लोगों के बीच काफी ख्याति प्राप्त है। बसंत ऋतु में रोहड़ू मेले की रौनक चमचमाती नजर आती है। स्थानीय कलाकारों के हुनर व बाहरी राज्यों एवं जिलों से आने वाले कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का सुअवसर मिलता है…

गतांक से आगे …

रोहड़ू मेला :

सर्वत्र प्रकृति की काया पूरे यौवन पर होती है। परिंदे भी बसंत ऋतु के आगमन पर अपने गीत गुनगुनाने लगते हैं। फूलों की सौंधी-सौंधी खुशबू आमजन मानस को मदहोश कर देती है। इसी बीच यह मेला भी लोगों के बीच काफी ख्याति प्राप्त है। बसंत ऋतु में रोहड़ू मेले की रौनक चमचमाती नजर आती है। स्थानीय कलाकारों के हुनर व बाहरी राज्यों एवं जिलों से आने वाले कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का सुअवसर मिलता है। खेल-खिलाड़ी को अपना खेल दिखाने का अवसर प्रदान होता है। मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रहती है। हजारों लोगों के बीच देवता शिकडू महाराज का नृत्य अजब कौतुहल पैदा करता है। रथ पर सवार होकर देवता लयबद्ध नृत्य देखते ही बनता है। बहरहाल राज्य स्तरीय रोहड़ू मेला वक्त के साथ हालांकि फीका तो पड़ता जा रहा है, मगर लोगों के उत्साह में मेले के प्रति कोई कमी नहीं आई है।

रिवालसर मेला : निम्न हिमालयी भाग का बैसाखी (13 अप्रैल) के दिन और पिछली रात मनाया जाने वाला यह प्रसिद्ध मेला है, जो मंडी जिला की रिवालसर झील के स्थान पर मनाया जाता है। इस झील में नलों के टिब्बे आर से पार स्वयंमेव तैरते रहते हैं, जिनमें तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार करने वाले पद्मसंभव ने अपने जीवन के अंतिम दिनों यहां तपस्या की थी-इसलिए यह बौद्धों का भी तीर्थ बन गया। बैसाखी में पिछली रात को हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं और सारी रात नाचते-गाते रहने के बाद प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में झील में स्नान करते हैं। इस स्नान का करना पुण्य माना जाता है। रिवालसर सभी हिंदुओं, सिखों तथा बौद्धों का तीर्थ स्थान है। यहां पर मंदिर, गुरुद्वारा तथा बौद्ध मंदिर भी स्थित है। यहां की सुंदरता का व्याख्यान करना एक कठिन कार्य है।

मार्कंडा मेला :  यह जिला बिलासपुर में मार्कंड नामक तीर्थ पर (जुखाला के पास) ठीक रिवालसर के मेले की भांति पिछली रात को मनाया जाने वाला प्रसिद्ध मेला है। मार्कंड स्थान पर मार्कंडेय ऋषि द्वारा तपस्या की गई थी। किसी समय इस स्थान से ब्यास गुफा (बिलासपुर) तक भूमिगत सुरंग का होना बताया जाता है। जिसके द्वारा मार्कंडेय ऋषि सतलुज नदी में स्नान करने जाते थे। यह तीर्थ भी लोगों की मनोकामनाओं को पूरा करने वाला माना जाता है।

-क्रमशः


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