बिन मौसम के मेहमान
सुरेश सेठ
साहित्यकार
‘भूख और प्यास की मारी हुई इस दुनिया में इश्क की एक हकीकत नहीं कुछ और भी है।’ अपने चाक दामन और दागदार उजाले में जिस शायर ने हमें यह सुनाया, बेशक वह साहिर लुधियानवी नहीं थे। आजकल मुर्दा इश्क की छांव में कोई उजाला दागदार नहीं होता, बल्कि अब तो लगता है जमाने की बदलती हवाओं ने कुछ शब्दों को मौत दे दी। जैसे राह चलती दुपट्टों की नकाब में लिपटी नायिकाओं को देख कर प्रेम रस मरा, अब करुणा रस जागता है। ऐसी डरी हुई लड़कियों से भला कोई इश्क करने के बाद में सोच भी कैसे सकता है। डर लगे तो गाना गाए एक पुरानी हिंदी फिल्म गाती थी, लेकिन आज के गाने उफ तौबा! कभी रैप सांग सुना है, जैसे कोई फ्रंटियर मेल धड़धड़ाती हुई आपके सामने से गुजर गई हो। भाई फ्रंटियर मेल तो पुराना प्रतीक हो गया। आजकल तो बुलेट ट्रेन का जमाना है, सेमी बुलेट ट्रेन तो भारत में चलने भी लगी। अभी ऐसी ही एक ट्रेन दिल्ली से बनारस के लिए चली थी। आठ घंटे में अपने गंतव्य तक पहुंचने का लक्ष्य था। आते-जाते दो बार बिगड़ी, फिर अगले दिन स्टार्ट लेने में ही दो घंटे की देर लगाई। अपने राम भी ऐसे ही फिसड्डी हैं। गाना गाते हुए रैप सांग कैसे हो गए। यहां तो गले का यह हाल है कि तीन कनस्तर पीट-पीट कर गला फाड़ कर चिल्लाना यार मेरे मत बुरा मान यह गाना है, न बजाना है। फिर ऐसे गले से दुपट्टे को नकाब बना डरती-कांपती लड़कियों से इश्क का इजहार कैसे किया जा सकता है। इनके साथ तो हम प्लेटानिक इश्क भी फरमा नहीं सकते कि बस मीठी-मीठी फिलॉस्फराना बातों से इन्हें मुग्ध कर लो। ऐसी बातें करने के लिए बाग-बागीचा चाहिए। हरी घास पर क्षण भर ठिठकने की फुर्सत हो। आकाश में उठी घटाएं घिर कर आएं और गुलाब के फूलों पर तितलियां मंडराने से परहेज न करें, लेकिन आजकल दिल्ली-यमुना एक्सप्रेस सड़क हो गई जिंदगी में फुर्सत किसके पास है, बाग-बागीचे भू-माफिया की भेंट हो गए। हरी घास को पर्यावरण प्रदूषण ने निगल लिया। उठी घटाएं कह कर इन तड़ातड़ बरसने वाले बादलों को शर्मिंदा करें। आजकल यह कभी समय पर नहीं आते। अयाचित मेहमान की तरह बेमौसम आते हैं। कोयल की कुहक, पपीहे की पी कहां इनका स्वागत नहीं कर पाती। इनके इंतजार में थक कर किसी और देश सिधार गईं। अब बे-मौसम आए मेहमान की आगवानी में मोर कैसे नाचें, ये बादल तो रास्ते भूले पथिकों की तरह आते हैं, गुस्से से भरे हुए। अपने साथ हवा के झोंके, सुहावने बयार नहीं लाते, बाढ़ की चेतावनी लाते हैं। इस चेतावनी के सामने दांदुर मोर और पपीहों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है। सीवरेज प्रणाली फेल होकर शहर की सड़कों के छप्पड़ हो जाने का नजारा पेश करती है। आइए इस नजारे की आगवानी करें।
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