सत्ता की धुंध

By: Aug 2nd, 2019 12:05 am

अजय पाराशर

स्वतंत्र लेखक

धुंध चाहे मैदानों में छाए, पहाड़ों को ढके या फिर सत्ता के गलियारों में पसरे, आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत की तरह कभी अपना गुण-धर्म नहीं छोड़ती। छोड़ भी नहीं सकती, क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो विशाखदत्त की उस उक्ति का क्या होगा, जिसमें कहा गया है कि वह शख्स ही क्या, जिसे सत्ता मिले और उसका दिमाग खराब न हो। फिर हमारा देश तो सदा अपने अतीत पर ही जीता आया है। कभी भारतवर्ष में डाल-डाल पर सोने की चिडि़या बसेरा करती थी, शायद अब भी करती हो। यह तो बुरा हो उन वनकाटुओं का, जिन्होंने जंगल के जंगल निगल लिए। यह तो वन रक्षक होशियार सिंह की नादानी थी, जो बेचारा सोने की चिडि़यों को आसरा देने की चाहत में अपनी जान गंवा बैठा। अब भले ही उसके नाम से हैल्पलाइन काम करती हो, सोने की चिडि़यां तो बस बड़े-बड़े नेताओं, अफसरों, उद्योगपतियों और रसूखदारों के घरों में ही बसती हैं। रही बात सीबीआई की, तो जो बेचारी गुडि़या और होशियार सिंह कांड के कातिलों की नहीं ढूंढ पाई, वह सोने की चिडि़या कैसे ढूंढेगी। सोने की चिडि़या तो सीबीआई को हमेशा वहीं दिखती है, जहां सत्ता उसे देखने को कहती है। अब क्या करें, सत्ता की धुंध है ही ऐसी। सत्ता तो लोगों के सिर पर ऐसी सवार होती है कि उनकी आंखों में मोतिया उतर आता है और ऐसा उतरता है कि सत्ता छिनने पर ही गायब होता है। सत्ता की धुंध में न जाने का नशा कैसा होता है कि साहिब का चपरासी उनसे ज्यादा हांकता नजर आता है। यही हाल नेताओं के पिट्ठुओं का है। धुंध में कोई ईमानदारी से चले, तो दूसरे से टकराना लाजिमी है। इसीलिए राजनीति का पहला उसूल है, बेईमान हो जाओ। फिर जो बेईमान होगा, वह बेशर्म भी होगा। जब बेशर्म होगा, तो जाहिर है बहरा और बेरहम भी होगा। ईमानदार तो बेखबर किसी कोने में आंसू टपकाता रहेगा। विपक्ष तो बेचारा बनकर कभी सत्ता का प्रतिकार नहीं करेगा। सत्ता का तिलिस्म भला किस युग में टूटा है, जो अब टूटेगा। अगर कोई सुकरात या जस्टिस लोया हो भी गया, तो जहर पीएगा या फिर संदेहास्पद परिस्थितियों में मृत पाया जाएगा। रही बात सत्ता की धुंध की, तो उसमें हुक्मरान जो देखना चाहेंगे, वहीं देखेंगे। सापेक्षता के सिद्धांत की तरह सत्ता की धुंध कभी नहीं छंट सकती। चाहे कितनी भी कोशिश की जाए, आत्मा की तरह अग्नि उसे जला नहीं सकती, तलवार काट नहीं सकती और न उसे जल में डुबोया जा सकता है। जब धुंध अटल, अजर, अमर है, तो सत्ता के गलियारों में मस्ती मारने वालों से शिकायत कैसी? वे तो आत्मा के चोले की तरह बदलते रहते हैं। उसूल तो सुविधानुसार ही देखे और बरते जाते हैं। तभी तो पचहत्तर का आंकड़ा कभी सत्ता छीनने के लिए प्रयोग होता है, तो कभी सत्ता बनाए रखने के लिए।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App