इन्वेस्टर मीट से पहले

By: Sep 24th, 2019 12:05 am

हिमाचल सरकार के प्रयत्नों से पहली बार प्रदेश इस हैसियत की तरफ अग्रसर है कि आने वाले समय में निवेश के जरिए निजी क्षेत्र का रुतबा बढ़ेगा। मंडी से धारा-118 की ऑनलाइन मंजूरी का बटन दबाते मुख्ममंत्री जयराम ठाकुर, उन तमाम अंदेशों को मिटाने का उदाहरण पेश करते हैं, जो गाहे-बगाहे निवेश को प्रदेश से विमुख करते रहे है। धारा-118 का सदुपयोग हमेशा राजनीतिक दुरुपयोग करता रहा या सियासी ‘सदुपयोग’ ने इसका व्यावहारिक दुरुपयोग किया है। यानी जहां चाह वहां राह के बजाय, इसकी परिधि केवल मुद्दा बनकर रह गई। कोशिशें कमोबेश हर सरकार ने कीं और अनुमतियां भी सियासी कलश उठाकर मिलीं, लेकिन कोई पारदर्शी व्यवस्था कायम नहीं हुई। उम्मीद है इन्वेस्टर मीट से पहले इस दिशा में पारदर्शी व्यवस्था के तहत जयराम सरकार निवेशक का भरोसा अर्जित करेगी। इस बीच निजी तौर पर जमीन अगर बाहरी निवेशक को बिक्री के लिए उपलब्ध हो रही है, तो परियोजनाओं के दायरों का वर्णन भी स्पष्ट होना चाहिए। करीब दो सौ लोग सरकार के अभियान में अपनी जगह दे रहे हैं, तो इस मायने में निवेश का शृंगार अपनी खासियत के साथ हाजिरी लगा रहा है। यह एक तरह से हिमाचल के आर्थिक व्यवहार में आ रहा परिवर्तन है और इस आयोजन के प्रति सकारात्मक संकेत भी। बाहरी निवेश के फलक पर खुद को आजमाने में हिमाचल कितना कामयाब होता है, इससे पहले सारी तैयारियों का संबंध हिमाचली निवेशक से भी होना चाहिए। हिमाचल का आर्थिक व वित्तीय व्यवहार जिस तीव्रता से हिमाचली युवाओं को भविष्य दिखा रहा है, उसी परिप्रेक्ष्य में इन्वेस्टर मीट से पहले ऐसे सेमिनार होने चाहिएं। इससे हिमाचली निवेशक की पहचान तथा उसके योगदान का मूल्यांकन होगा। जिस तरह मनाली व शिमला में मीट से पहले इन्वेस्टर के लिए कानक्लेव रखे गए, उसी तर्ज पर हिमाचली निवेशक के लिए विभिन्न विभागों को अपने स्तर पर मिनी आयोजन करने चाहिएं। उदाहरण के लिए ट्रांसपोर्ट, होटल, मनोरंजन, हैल्थ, शिक्षा व लघु उद्योगों को लेकर हिमाचली निवेशक के योगदान व भविष्य की क्षमता का अवलोकन करने के लिए मिनी इन्वेस्टर बैठकों का आयोजन करना होगा। यहीं तक ही नहीं, बल्कि देशी निवेश के साथ सामूहिक दायित्व को जोड़ते हुए कमोबेश हर जिला के व्यापार मंडलों तथा व्यापारिक संस्थाओं की निवेश बैठकों का दौर चले, तो सरकार व स्थानीय स्वशासन के साथ कुछ जिम्मेदारियां बांटी जा सकती हैं। मसलन हर शहर के आकार व प्रारूप के अनुसार महत्त्वपूर्ण बाजारों में पार्किंग सुविधाओं या यातायात विकल्पों के प्रारूप में व्यापार मंडल या निजी तौर पर व्यापारियों को यह अवसर दिया जाए, ताकि वह ऐसी अधोसंरचना में सरकार के साथ भागीदारी निभा सकें। प्रदेश की प्रगति के सफर में स्थानीय उद्यमशीलता के लिए कुछ स्थान निर्धारित करना होगा। इन्वेस्टर मीट के हिसाब से हिमाचल की तैयारी के कई संदर्भ मिल जाएंगे, ेलेकिन माहौल की अनुगूंज में युवा उत्कंठा को परिष्कृत तथा प्रभावित करने की मंशा भी जागृत अवस्था में होनी चाहिए। इन्वेस्टर मीट के लक्ष्यों के बीच हिमाचली युवा के हाथ में फिलहाल स्वागत पट्टिका दिखाई नहीं दे रही, बल्कि सरकारी नौकरी के घाट पर वह प्यासा खड़ा है। हमारा मानना है कि हिमाचल के तमाम कालेजों, व्यावसायिक कालेजों, विश्वविद्यालयों तथा आईटीआई जैसे आदारों को भी इन्वेस्टर मीटर के बहाने युवाओं की तैयारी का रुख संभावित निवेश की ओर जोड़ना होगा। इन सभी शिक्षण संस्थानों के मार्फत युवाओं को स्वरोजगार, नवाचार, स्टार्ट अप, के जरिए निवेश हुनर को बल तभी मिलेगा, यदि पढ़ाई के दौरान ऐसा मनोबल भी तैयार हो।


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