कौसरनाग यात्रा रोकने में कश्मीरियत
डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री
वरिष्ठ स्तंभकार
कश्मीर घाटी को नाग भूमि भी कहा जाता है, जिसके कारण घाटी के अनेक तीर्थ पर्यटन स्थलों का नाम नाग शब्द से मिलता है। यह झील दो मील लंबी और तकरीबन आधा मील चौड़ी है। पीर पंजाल की शृंखलाओं में स्थित यह झील समुद्र तल से लगभग चार किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह तीर्थ स्थल विष्णुपाद के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थल पर भगवान विष्णु के पद चिन्ह विद्यमान हैं…
कश्मीर घाटी में अनेक पर्यटन स्थल हैं। कुछ ज्यादा ज्ञात हैं और कुछ अल्प ज्ञात हैं। इनमें से एक पर्यटन स्थल कुलगाम जिले में स्थित कौसरया कोणसर नाग झील है। ध्यान रहे कश्मीर घाटी को नाग भूमि भी कहा जाता है, जिसके कारण घाटी के अनेक तीर्थ पर्यटन स्थलों का नाम नाग शब्द से मिलता है। यह झील दो मील लंबी और तकरीबन आधा मील चौड़ी है। पीर पंजाल की श्रृंखलाओं में स्थित यह झील समुद्र तल से लगभग चार किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह तीर्थ स्थल विष्णुपाद के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थल पर भगवान विष्णु के पद चिन्ह विद्यमान हैं। पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर में सीपीएम के एकमात्र विधायक ने सुझाव दिया था कि कौसर नाग झील को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिएं ताकि प्रदेश की आय में वृद्धि हो सके। हिंदुओं के लिए विष्णु के नाम से संबंधित होने के कारण यह स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता है।
जुलाई मास में इस तीर्थ स्थान पर पूजा- अर्चना के लिए कश्मीर के हिंदू एकत्रित होते रहे हैं। देश के अन्य स्थानों से भी कुछ थोड़ी संख्या में श्रद्धालु इस तीर्थ यात्रा के लिए आते हैं। लेकिन अब वे सब पुरानी यादें हैं। जब से कश्मीर घाटी पर आतंकवादियों का प्रभाव बढ़ा और राज्य सरकार ने उनके सामने अपनी ही योजना से या फिर विवशता में आत्मसमर्पण कर दिया, तब से यह तीर्थ यात्रा बंद पड़ी है। उसके बाद का अध्याय तो और भी दुखद है। आतंकवादियों ने कश्मीर घाटी में से छह लाख हिंदू सिक्खों को निकाल बाहर किया और घाटी को मुस्लिम घाटी बनाने में सफलता प्राप्त कर ली। उसके बाद से शेख अब्दुल्ला परिवार और उनकी पार्टी नेशनल कान्फें्रस लगातार घडियाली आंसू बहाती रही कि हम हर हालत में हिंदुओं को घाटी में वापिस लायेंगे। पिछले छह साल से जम्मू-कश्मीर में सरकार भी नेशनल कान्फ्रेंस की ही रही और महरूम शेख अब्दुल्ला के पौत्र उमर अब्दुल्ला ही प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
वे दिन रात अपने अब्बूजान और दादाजान के नाम ले लेकर मीडिया को अपने परिवार के पंथनिरपेक्ष होने के बारे में कहानियां सुनाते रहते हैं। अब्दुल्ला व उनकी पार्टी ने जम्मू के हिंदुओं और लद्दाख के बौद्धों व शियाओं को अपने पक्ष में करने के लिए जाल फेंकना था इसलिए उन्होंने ‘हिन्दुओं घाटी में लौट आओ’ की माला कुछ ज्यादा तेजी से जपना शुरू कर दी है। कश्मीर घाटी के कुछ हिंदु सचमुच उनके झांसे में आ गए। जुलाई का मास आया तो उन्हें कुलगाम के कौसरनाग की परंपरागत तीर्थ यात्रा का ध्यान आया होगा। पच्चीस तीस कश्मीरी हिंदुओं ने इस बार जुलाई मास में कौसरनाग झील पर पहुंच कर पूजा अर्चना करने का निर्णय किया। लेकिन जैसे ही ये तीर्थ यात्री पूजा अर्चना के लिए कौसरनाग झील की ओर रवाना होने लगे अलगाव और आतंकवाद के मिले जुले प्रभाव का प्रतिनिधित्व करने वाली हुर्रियत कान्फें्रस ने इसका विरोध ही नहीं किया बल्कि आतंकवादियों ने घाटी में बंद का भी आह्वान कर दिया। इस आह्वान में कश्मीर घाटी की बार एसोसिएशन भी शामिल हो गई। श्रीनगर के कुछ हिस्सों में दुकानें बंद भी रहीं। लेकिन अभी सबसे बड़ा आश्चर्य तो प्रकट होने वाला था। यात्रा के विरोध में तर्क देते हुए हुर्रियत कान्फ्रेंस के नेताओं, जिनमें से अधिकांश सैयद हैं, ने कहा कि यात्रा का यह प्रयास घाटी की जनसंख्या अनुपात बदलने का षड्यंत्र है। ये लोग घाटी में हिंदुओं की संख्या बढ़ाना चाहते हैं। यह यात्रा घाटी पर हिंदु सांस्कृतिक आक्रमण है। लेकिन कौसरनाग की तीर्थ यात्रा पर जाने वाले इन पच्चीस तीस यात्रियों के मन में अभी भी यह आशा बची हुई थी कि राज्य सरकार उनकी सहायता करेगी और इस यात्रा का विरोध कर रह ेअलगाववादियों के इस दुष्प्रयास का खंडन करेगी कि यह यात्रा घाटी पर हिंदू सांस्कृतिक आक्रमण है और इससे घाटी का जनसंख्या अनुपात बदल जाएगा। दरअसल इस पूरे घटनाक्रम में आतंकवादियों को दोष दिया जा सकता है, हुर्रियत को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, लेकिन अब्दुल्ला परिवार के फारूक या उनके बेटे उमर को दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि अब्दुल्ला परिवार अपने जनक शेख अब्दुल्ला के समय से ही कश्मीर घाटी को मुस्लिम बहुल बनाने के लिए ही नहीं बल्कि किसी भी तरीके से घाटी में से गैर मुसलमानों को बाहर रखा जा सके, इसके लिए प्रयास रह रहा है ।
शेख अब्दुल्ला के अनेक पत्र उपलब्ध हैं जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा है कि वे कश्मीर के मुस्लिम बहुल चरित्र की हर हालत में रक्षा करेंगे और गैरमुसलमान यदि घाटी में आते हैं तो उन्हें यहां बसने नहीं देंगे। यही कारण था कि दिन रात महाराजा हरि सिंह को गालियां देने वाले शेख ने महाराजा के राज्य के स्थायी निवासी के प्रावधान को बहुत बुरी तरह संभाल कर रखा और उसकी आड़ में घाटी में हिंदू सिखों के आने परपाबंदी लगा दी। शेख दरअसल कश्मीर को इस्लामी प्रांत बनाना चाहते थे और उसके लिए वे जीवन भर प्रयासरत रहे। इसे उन्होंने कभी छिपाया भी नहीं। उसी परंपरा का निर्वाह उनका परिवार अभी तक कर रहा है। तब अब्दुल्ला को कहना तो यह चाहिए था कि कुछ लोग कौसरनाग झील पहुंच कर पूजा अर्चना करते हैं तो यह हिंदू सांस्कृतिक आक्रमण कैसे हो गया? उन्हें विरोध तो हुर्रियत की इस गैरभारतीय मानसिकता का और अलगाववादी सोच का करना चाहिए था।
लेकिन परोक्ष रूप से वे खुद ही इस गिरोह में शामिल हो गए और इन के पास अपनी सरकार का मुआफीनामा दाखिल करवाने लगे कि सरकार ने इस तीर्थ यात्रा की अनुमति नहीं दी। वैसे उमर साहिब को हर जरूरी गैरजरूरी मसले पर ट्वीट यानी चीं-चीं करने की आदत है, लेकिन इस बार वे आश्चर्य जनक रूप से चुप थे। हुर्रियत कान्फ्रेंस जो बातें अब कहती रही है, कश्मीर घाटी के बारे में अब्दुल्ला परिवार की नेशनल कान्फ्रेंस पिछले छह दशकों से वही बातें कह रही हैं। अंतर केवल इतना है कि हुर्रियत कान्फ्रेंस की बात कहने की शैली अलग है और नेशनल कान्फ्रेंस की बात कहने की शैली अलग है। भाव दोनों का एक ही है।
ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com
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