क्यों गिर रहा है रुपया?

By: Sep 3rd, 2019 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

 

वर्तमान समय में जो रुपए में गिरावट आ रही है इसका एक प्रमुख कारण तेल के बढ़ते आयात हैं। हमारी ऊर्जा की जरूरतें बढ़ रही हैं और तदानुसार हमें तेल के आयात अधिक करने पड़ रहे हैं। इस समस्या को और गहरा बना दिया है ईरान के विवाद ने। अमरीका ने पूरी ताकत लगा रखी है कि दुनिया के सभी देश ईरान से तेल न खरीदें। ईरान से तेल न खरीदने के कारण विश्व बाजार में ईरान द्वारा सप्लाई किए जाने वाले तेल की मात्रा उपलब्ध नहीं है…

बीते साल अक्तूबर में रुपया लुढ़क कर 74 रुपए प्रति डॉलर के न्यूनतम स्तर पर आ गया था। इसके बाद कुछ समय के लिए सुधार हुआ और वर्तमान में यह पुनः 73 रुपए के पास लुढ़क गया है। विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में यह पचहत्तर रूपए प्रति डालर या उससे भी कम कीमत पर गिर सकता है। बताते चलें की 75 रुपए प्रति डालर का अर्थ हुआ कि रुपए कमजोर है। चूंकि एक डालर खरीदने के लिए आपको 75 रूपए देने पड़ते हैं यानी रूपए की कीमत कम है। 80 रुपए प्रति डालर का अर्थ हुआ कि रुपए इससे भी ज्यादा कमजोर है चूंकि एक डालर खरीदने के लिए अब आपको 80 रुपए देने पड़ते हैं। किसी भी मुद्रा का मूल्य अंततः उस देश की प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति से निर्धारित होता है, जैसे मान लीजिए किसी खिलौने के उत्पादन में भारत में लागत 73 रुपए पड़ती है। उसी खिलौने के उत्पादन में अमरीका में एक डालर का खर्च आता है।

ऐसे में एक भारतीय रुपए का मूल्य 73 रुपए प्रति डालर हो जाएगा। यदि हम उस खिलौने को तिहत्तर के स्थान पर साठ रुपए में उत्पादित करने लगें तो हमारी मुद्रा का मूल्य भी 73 से बढ़कर 60 रुपए प्रति डालर हो जायेगा। जैसे-जैसे देश की कुशलता बढ़ती है अथवा उसकी प्रतिस्पर्धा करने की शक्ति बढ़ती है वैसे-वैसे उसकी मुद्रा ऊपर उठती है। प्रतिस्पर्धा शक्ति को निर्धारित करने में अभी तक बुनियादी संरचना का बहुत योगदान माना जाता था। अपने देश में बिजली, सड़क, टेलीफोन, हवाई अड्डे इत्यादि की व्यवस्था लचर होने से माल के आवागमन में अथवा सूचना के आदान-प्रदान में खर्च ज्यादा आता था जिससे हमारी उत्पादन लागत ज्यादा होती थी। बीते पांच वर्षों में एनडीए सरकार ने बुनियादी संरचना में विशेष सुधार किए हैं। आज लगभग पूरे देश में बिजली का गुल होना समाप्त प्रायः हो गया है, तमाम हाई-वे बन गए हैं, हवाई यात्रा सुगम हो गई है इत्यादि।

इसलिए हमारी प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति का निर्धारण अब बुनियादी संरचना के कारण नहीं होता है, ऐसा हम मान सकते हैं। प्रतिस्पर्धा शक्ति के निर्धारित होने का दूसरा कारण संस्थाएं हैं जैसे न्याय की संस्थाएं, पुलिस की संस्थाएं एवं नौकरशाही की संस्था और इन संस्थाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार। अपने देश में यदि हमको माल सस्ता बनाना है तो उद्यमी को त्वरित न्याय, पुलिस से संरक्षण एवं भ्रष्टाचार से मुक्ति देनी होगी। तब ही हमारी प्रतिस्पर्धा शक्ति बढ़ेगी और रुपए का मूल्य स्वयं उठने लगेगा। यह दीर्घ कालीन परंतु असली बात है। वर्तमान समय में जो रुपए में गिरावट आ रही है इसका एक प्रमुख कारण तेल के बढ़ते आयात हैं। हमारी ऊर्जा की जरूरतें बढ़ रही हैं और तदानुसार हमें तेल के आयात अधिक करने पड़ रहे हैं। इस समस्या को और गहरा बना दिया है ईरान के विवाद ने। अमरीका ने पूरी ताकत लगा रखी है कि दुनिया के सभी देश ईरान से तेल न खरीदें। ईरान से तेल न खरीदने के कारण विश्व बाजार में ईरान द्वारा सप्लाई किए जाने वाले तेल की मात्रा उपलब्ध नहीं है। विश्व बाजार में तेल की उपलब्धता कम हुई है और तदानुसार तेल के मूल्यों में वृद्धि हो रही है। इस समस्या का हल सार्वजनिक यातायात को बढ़ावा देना है। जैसे मेट्रो अथवा बस से यात्री को गंतव्य स्थान पर ले जाने में प्रति व्यक्ति तेल की खपत कम होती है। निजी कार से जाने में तेल की खपत अधिक होती है, इसलिए यदि हमें रुपए की कीमत को उठाना है तो हमें सार्वजनिक यातायात की व्यवस्था में सुधार करना होगा जिससे लोगों के लिए निजी कार का उपयोग करना जरूरी न रह जाए। साथ-साथ हमें मैन्युफेक्चरिंग के स्थान पर सेवा क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। मैन्युफेक्चरिंग में ऊर्जा की खपत ज्यादा होती है, सेवा क्षेत्र में उर्जा की जरूरत कम पड़ती है। सेवा क्षेत्र के आधार पर यदि हम आर्थिक विकास हासिल करेंगे तो हमें तेल के आयात कम करने से तदानुसार हमारा रुपया नहीं गिरेगा। ध्यान दें कि जब हम तेल का आयात अधिक करते हैं उसके लिए हमें डॉलर में पेमेंट अधिक मात्रा में करना होता है। इन अधिक मात्रा में डालर को अर्जित करने के लिए हमें निर्यात अधिक करने पड़ते हैं। निर्यात अधिक करने के दबाव में हमें अपना माल सस्ता बेचना पड़ता है जिसके कारण हमारा रुपया टूटता है, रुपए के गिरने का तीसरा कारण हमारे द्वारा मुक्त व्यापार को अपनाना है।

जैसा ऊपर बताया गया है कि हमारे न्याय, पुलिस एवं नौकरशाही की संस्थाओं के भ्रष्टाचार के कारण अपने देश में माल के उत्पादन में लागत ज्यादा आती है। ऐसे स्थिति में यदि हम मुक्त व्यापार को अपनाते हैं तो दूसरे देशों से माल का आयात अधिक होता है क्योंकि वहां पर न्याय, पुलिस एवं भ्रष्टाचार की स्थिति हमारी तुलना में उत्तम है। वहां के उद्यमी को माल के उत्पादन में लागत कम आती है और वह अपने माल को हमारे देश में सस्ता बेच सकता है। इस परिस्थिति में हमारे सामने दो रास्ते खुले हैं या तो हम अपनी न्याय, पुलिस एवं भ्रष्टाचार की व्यवस्थाओं को सुधारें अथवा हम बाहर से आने वाले माल पर आयात कर बढ़ा दें। मान लीजिए किसी खिलौने की चीन में उत्पादन लगत 60 रुपए आती है जबकि भारत में 73 रुपए आती है ऐसे में हमारा माल चीन से पिटता है। हमारी उत्पादन लागत में यदि 13 रुपया न्याय, पुलिस एवं भ्रष्टाचार का हिस्सा है तो इनके सुधार करने से हमारी उत्पादन लागत 60 रुपए हो जाएगी।

तब हम चीन में उत्पादित उसी खिलौने से प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे। लेकिन वर्तमान में हमारी लागत ज्यादा है, फिर भी हम चीन के माल को मुक्त रूप से अपने देश में प्रवेश करने दे रहे हैं, इसलिए 60 रुपए में बना चीन का खिलौना अपने देश में प्रवेश कर रहा है, हमारे आयात बढ़ रहे हैं, हमारे निर्यात दबाव में हैं और हमारा रुपया टूट रहा है। इस परिस्थिति में यदि हम अपनी संस्थाओं का सुधार नहीं कर सकते हैं तो हमें आयातित माल पर आयात कर बढ़ाने होंगे। किसी भी देश की मुद्रा का मूल्य अंततः उस देश की प्रतिस्पर्धा शक्ति से निर्धारित होता है। यदि उस देश में माल का उत्पादन कुशल रूप से हो रहा है, माल के उत्पादन में लागत कम लगती है तो वह देश अपना माल पूरे विश्व में सस्ते में बेचता है और उसकी मुद्रा का मूल्य बढ़ जाता है। अतः हमें अपनी न्याय, पुलिस एवं भ्रष्टाचार की व्यवस्थाओं को सुधारना होगा, तभी रुपए का मूल्य सुधरेगा।       

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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