जल विद्युत का सूर्यास्त 

By: Sep 24th, 2019 12:07 am

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

सौर ऊर्जा जल विद्युत की तुलना में बहुत ही सस्ती पड़ती है। लेकिन समस्या यह है कि सौर ऊर्जा का उत्पादन दिन के समय होता है जबकि बिजली की अधिक जरूरत सुबह, शाम एवं रात में होती है, जिसे पीकिंग पावर कहा जाता है। देश की विद्युत ग्रिड को स्थिर रखने के लिए जरूरी है कि सुबह, शाम एवं रात को बिजली का उत्पादन जरूरत के अनुसार बढ़ाया जा सके। जल विद्युत का विशेष लाभ यह है कि जिस  समय बिजली की मांग बढ़ती है उसी समय हम एकत्रित पानी को छोड़ कर बिजली का उत्पादन कर सकते हैं। इसलिए सरकार ने सस्ती सौर ऊर्जा के साथ-साथ महंगी जल विद्युत ऊर्जा को भी बढ़ाने का निर्णय लिया है…

केंद्र सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा अथवा रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा दिया है। मुख्य कारण है कि कोयले से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है। तेल का हमें आयात करना पड़ता है और वह भी महंगा पड़ता है। परमाणु ऊर्जा भी हमारे लिए कठिन है क्योंकि रिहायशी इलाकों में इन संयंत्रों को लगाने में खतरा रहता है और हमारे पास इन्हें चलाने के लिए यूरेनियम पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है। इन सभी कारणों को देखते हुए सरकार ने सौर ऊर्जा और जल विद्युत को बढ़ावा देने का निर्णय किया है। इनके वर्तमान दाम में मौलिक अंतर है। आज नए सौर ऊर्जा संयंत्रों से बिजली की उत्पादन लागत दो से चार रुपए प्रति यूनिट आती है, जबकि जल विद्युत से उत्पादन लागत सात से 11 रुपए प्रति यूनिट आती है। सौर ऊर्जा जल विद्युत की तुलना में बहुत ही सस्ती पड़ती है। लेकिन समस्या है कि सौर ऊर्जा का उत्पादन दिन के समय होता है जबकि बिजली की अधिक जरूरत सुबह, शाम एवं रात में होती है जिसे पीकिंग पावर कहा जाता है। देश की विद्युत ग्रिड को स्थिर रखने के लिए जरूरी है कि सुबह, शाम एवं रात को बिजली का उत्पादन जरूरत के अनुसार बढ़ाया जा सके। जल विद्युत का विशेष लाभ यह है कि जिस  समय बिजली की मांग बढ़ती है उसी समय हम एकत्रित पानी को छोड़ कर बिजली का उत्पादन कर सकते हैं। इसलिए सरकार ने सस्ती सौर ऊर्जा के साथ-साथ महंगी जल विद्युत ऊर्जा को भी बढ़ाने का निर्णय लिया है, पहाड़ी इलाकों में एक कृत्रिम तालाब नीचे और एक कृत्रिम तालाब ऊपर बनाया जा सकता है।

दिन के समय जब सौर ऊर्जा उपलब्ध हो तो नीचे के तालाब से पानी को पंप करके ऊपर के तालाब में डाला जा सकता है। सुबह और शाम जब बिजली की जरूरत हो तो ऊपर के तालाब से पानी छोड़ करके और बिजली बनाते हुए उस पानी को पुनः नीचे के तालाब में लाया जा सकता है। जैसे हलवाई दूध को ऊपर और नीचे फेंटता है, उसी प्रकार हम पानी को दिन के समय ऊपर ले जाकर और जरूरत के समय नीचे लाकर अपनी बिजली की जरूरत पूरी कर सकते हैं। भारत सरकार की संस्था सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथारिटी के अध्यक्ष के अनुसार दिन की सौर ऊर्जा को सुबह और शाम को पीकिंग ऊर्जा में बदलने में केवल 30 से 50 पैसा प्रति यूनिट का खर्च आता है। इस प्रकार यदि हम मानें कि आज सौर ऊर्जा के उत्पादन के मूल्य 4 रुपए है तो इसे पीकिंग पावर में 4.50 रूपए में उपलब्ध कराया जा सकता है जबकि वही पीकिंग पॉवर जल विद्युत से 8 से 11 रुपए प्रति यूनिट में पड़ रही है।

इसलिए पीकिंग पावर के तर्क के आधार पर जल विद्युत का समर्थन नहीं किया जा सकता। सौर ऊर्जा में दूसरी समस्या बिजली के ग्रिड की स्थिरता का है। पूरे देश की बिजली की व्यवस्था आपस में जुड़ी हुई है। इस ग्रिड पर हर क्षण जितनी बिजली की जरूरत है उतना ही उत्पादन होना चाहिए जिससे की ग्रिड का वोल्टेज बराबर बना रहे। यदि बिजली का उत्पादन अधिक होता है तो ग्रिड का वोल्टेज बढ़ेगा और यदि बिजली की मांग अधिक होती है तो ग्रिड का वोल्टेज गिरेगा। ग्रिड की स्थिरता को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि बिजली की मांग और आपूर्ति का संतुलन निरंतर बना रहे। सौर ऊर्जा से ग्रिड अस्थिर हो जाती है। जैसे यदि बादल आ गए तो सौर ऊर्जा का उत्पादन एकाएक कम हो जाता है। यदि बादल आ जाते हैं और सौर ऊर्जा का उत्पादन गिरता है तो बिजली की सप्लाई कम हो जाती है और ग्रिड का वोल्टेज गिरने लगता है इसलिए बिजली इंजीनियर सौर ऊर्जा को पसंद नहीं करते हैं।

लेकिन मैंने पाया कि ग्रिड की अस्थिरता का दूसरा कारण बिजली का व्यापार है। वर्तमान में देश में इंडिया एनर्जी एक्सचेंज नाम से एक बिजली का बाजार प्रचलित है। बिजली का व्यापार इन 96 हिस्सों में किया जाता है जैसे घरेलू कामवाली अथवा फिजियोथैरेपिस्ट निर्धारित समय पर आपको सेवा सप्लाई करता है। कोई खरीददार एक्सचेंज पर बुधवार को सायं 7ः00 से 7ः15 के समय अमुक यूनिट बिजली खरीदने का सौदा कर सकता है। इस कारण हर 15 मिनट पर बिजली की आपूर्ति और मांग में परिवर्तन होता रहता है। जैसे बुधवार को सायं काल 7ः15 बजे नए बिजली के उत्पादक ने अपने संयंत्र चालू करके ग्रिड में बिजली को सप्लाई करना चालू किया और दूसरी तरफ  नए खरीदार ने ग्रिड से बिजली को खींचना चालू किया। इस परिवर्तन में जरूरी नहीं कि उसी क्षण बिजली की सप्लाई एवं खपत उसी क्षण परिवर्तित हो। बताते चलें कि कुछ देशों में 40 प्रतिशत बिजली  सौर ऊर्जा से बन रही है। यदि ग्रिड अस्थिर होती तो ऐसा नहीं हो पाता। सौर ऊर्जा में दूसरी समस्या सोलर पैनल से होने वाले प्रदूषण की है। सोलर पैनल के उपयोगी न रह जाने के बाद इसे समाप्त नहीं किया जा सकता। यह बायोडिग्रेडेबल नहीं है। यह प्रकृति में समाता नहीं है। यूरोपीय यूनियन ने इस समस्या के निदान के लिए सोलर पैनल बनाने वालों के लिए अनिवार्य किया है कि वे पुराने सोलर पैनल को खरीदकर इनका पुनरुपयोग करेंगे। इससे सोलर बिजली का दाम वर्तमान में 4 रुपए से कुछ बढ़ सकता है लेकिन यह समस्या हल्की जा सकती है। जल विद्युत के पक्ष में आखरी तर्क यह है कि हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों द्वारा जल विद्युत भारी मात्रा में उत्पादित की जा रही है जो कि वर्तमान में सस्ती पड़ रही है। यह बात सही है, लेकिन ये संयंत्र आज से 20 से 30 वर्ष पूर्व लगे थे जिस समय इनकी लागत कम  थी और उस समय सौर ऊर्जा भी बहुत महंगी थी। उस समय सौर ऊर्जा का दाम 20 रूपए प्रति यूनिट था। आज परिस्थिति बदल गई है। वर्तमान में नई जल विद्युत परियोजनाओं का दाम बहुत अधिक है। हमें आज की परिस्थिति में आगे बढ़ना होगा। इन सभी कारणों को देखते हुए समय आ गया है कि हम जल विद्युत को पीछे करें और अपनी नवीकरणीय ऊर्जा की जरूरत के लिए सौर ऊर्जा के साथ पंप स्टोरेज परियोजना को बढ़ावा दें।

ई-मेलः bharatjj@gmail.com


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