जी भर के जियो

By: Sep 19th, 2019 12:06 am

पीके खुराना

वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार

जीवंत जीवन जीने के लिए आवश्यक है कि हम खुद से ज्यादा प्यार करना सीखें। खुद से प्यार करने का मतलब है कि हम अपनी सेहत पर फोकस करें, सच्चे रिश्ते बनाएं और अपना ज्ञान बढ़ाते रहें। सेहत पर फोकस में फिर तीन और नुक्ते हैं, इनमें से पहला है भोजन, दूसरा है व्यायाम और तीसरा है तनावरहित खुशी भरा मन। भोजन में ज्यादा नमक, चीनी और संस्कारित भोजन की जगह हरी सब्जियां, सलाद संतुलित भोजन हमारे स्वास्थ्य में बड़ी भूमिका निभाता है…

यह एक सच है कि यदि हम मानसिक रूप से सीखने के लिए तैयार हों तो हम नई बातें फटाफट सीख जाते हैं। एक और बड़ा सच यह है कि हमने जो सीख लिया वह ऐसा खजाना है कि हमेशा हमारे साथ रहता है, कोई उसे हमसे छीन नहीं सकता। सीखने की प्रक्रिया कभी नहीं रुकती, बुढ़ापे में भी, बशर्ते कि हम सीखने के लिए तैयार हों। हाल ही में मैंने कुछ नई बातें सीखी हैं। मैं शुरू से ही कुछ-कुछ लापरवाह और खिलंदड़ा रहा हूं। मैं उदास नहीं होता, अकसर खुश रहता हूं पर मैंने मन में कई ग्रंथियां पाल रखी थीं। मेरे मन में दुनिया भर के प्रति शिकायतें थीं और मैं समझता था कि दुनिया को वह समझना चाहिए जो मैं समझता हूं जबकि सच यह है कि खुद मुझे बहुत कुछ समझने की आवश्यकता थी।

जीवंत जीवन जीने के लिए आवश्यक है कि हम खुद से ज्यादा प्यार करना सीखें। खुद से प्यार करने का मतलब है कि हम अपनी सेहत पर फोकस करें, सच्चे रिश्ते बनाएं और अपना ज्ञान बढ़ाते रहें। सेहत पर फोकस में फिर तीन और नुक्ते हैं, इनमें से पहला है भोजन, दूसरा है व्यायाम और तीसरा है तनावरहित खुशी भरा मन। भोजन में ज्यादा नमक, चीनी और संस्कारित भोजन की जगह हरी सब्जियों, सलाद, दाल की प्रचुरता वाला फाइबर और प्रोटीन युक्त ताजा और संतुलित भोजन हमारे स्वास्थ्य में बड़ी भूमिका निभाता है। थोड़े से योग और व्यायाम का मिला-जुला रूप शरीर के लिए आदर्श है।

तनाव रहित खुशी भरा मन कहने में जितना आसान दिखता है, करने में यह उतना ही कठिन है। यह एक लंबी मानसिक और आध्यात्मिक यात्रा है, पर इसकी शुरुआत हर उम्र में संभव है। मानसिक शांति और संतुलन की बहुत छोटी सी और आसान शुरुआत तो सिर्फ  यहां से हो सकती है कि हम हर तीन घंटे बाद आराम से बैठ कर लंबे सांस लेने की आदत डालें और जब कभी तनाव या चिंता में हों तो बैठ जाएं और गहरे लंबे सांस लें। श्वसन की इस प्रक्रिया से तनाव दूर हो जाता है। इस तरह शरीर में ज्यादा आक्सीजन जाती है और हमारी मांसपेशियों को नया जीवन मिलता है। ऐसा ही एक और आसान तरीका है उबासी लेना।

तनाव अथवा उदासी की स्थिति में यह एक रामबाण औषधि है। उबासी लेते समय आपका पूरा ध्यान उबासी की तरफ  हो जाता है, शेष चिंताओं से आपका ध्यान हट जाता है और आपकी मांसपेशियों को अतिरिक्त ऊर्जा मिलती है। हम में से बहुत से लोगों को अकसर रात में नींद न आने की समस्या से गुजरना पड़ता है। जब कभी अनिद्रा की शिकायत हो, कुछ पढ़ने लग जाएं, या किसी गतिविधि में व्यस्त हो जाएं। महिलाओं के लिए बरतन साफ  करना, उन्हें करीने से सजाना एक आसान उपाय है। सच तो यह है कि हम पुरुष भी इसे आजमा सकते हैं। इस सुझाव पर हंसें नहीं, आजमाएं, और आप पाएंगे कि यह जादू की तरह काम करता है और जल्दी ही आप महसूस करते हैं कि आप नींद के लिए तैयार हैं। जी भर के जीने की यह साधारण सी दिखने वाली कलाएं असल में बहुत असाधारण हैं। तनाव रहित जीवन जीने और खुश रहने में हमारी मानसिकता की भूमिका बहुत ज्यादा है।

अपनी आदतें बदलना एक लंबी यात्रा हो सकती है, थोड़ी सी कठिन हो सकती है पर कुछ ही अभ्यास से हम ऐसा कर सकते हैं। दरअसल यह ‘करने’ और ‘होने’ का फर्क है, यह ‘डूइंग’ और ‘बीइंग’ का फर्क है। एक उदाहरण से मैं अपनी बात स्पष्ट करना चाहूंगा। शुरू-शुरू में जब मैं खुश रहने और खुश रखने की कला पर वर्कशॉप संचालित किया करता था तो मैं वर्कशॉप के प्रतिभागियों को डेल कार्नेगी की प्रसिद्ध पुस्तक ‘लोक व्यवहार’ हाउ टू मेक फे्रंड्स एंड इन्फ्लुएंस पीपल भी बांटा करता था। एक बार मेरी वर्कशॉप में एक ग्रामीण दंपति भी भाग ले रहे थे। रूटीन के मुताबिक वह पुस्तक मैंने उन्हें भी दी। कुछ दिन बाद जब उनसे दोबारा मुलाकात हुई और मैंने पूछा कि पुस्तक पढ़ी या नहीं, तो उनका उत्तर था कि ‘यह किताब तो चालाकियों से भरी हुई है’।

आज जब मैं उस घटना पर विचार करता हूं तो मुझे समझ आता है कि उस ग्रामीण दंपति ने कितनी सरलता से एक बहुत बड़े सच का खुलासा किया था। यदि हम किसी को पसंद नहीं करते, और उसकी प्रशंसा करते हैं तो हम काम तो अच्छा कर रहे हैं, पर हम खुद अच्छे नहीं बन पाए हैं। इससे हमारे मन-मस्तिष्क में तनाव रहता है, जो कई रोगों का कारण बनता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक एडवाइजरी जारी करके बताया है कि अगले 8 सालों में यानी सन 2025 तक 87 फीसदी भारतीय कैंसर के मरीज हो जाएंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में बिकने वाला 68.7 प्रतिशत दूध सिंथेटिक या मिलावटी होता है, जो हमारी सेहत के लिए बहुत बड़ा खतरा है।

चिकित्सकों की दृष्टि से देखें तो यह एक सच्चाई है, पर जरा और गहराई में जाएं तो हमें सीखने के लिए बहुत कुछ मिल सकता है। हमारा देश इस समझ झगड़ालू प्रवृत्ति और मानसिक तनाव में जीने वाले लोगों का देश बन गया है। स्वास्थ्य विज्ञान का यह मानना है कि तनाव, कैंसर का सबसे बड़ा कारण है, जबकि अध्यात्म का मानना है कि कैंसर का एकमात्र कारण तनाव ही है। हमें बीमार करने वाले जितने भी कारण हों, चाहे वह वायरस है या गलत खान-पान या खराब जीवन शैली, हमारा शरीर उनसे निपट सकता है, पर तनाव एक ऐसा रोग है जिसकी कोई काट नहीं है और इसके परिणामस्वरूप शरीर अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त हो जाता है। लब्बोलुबाब यह कि हम खुद से प्यार करें। स्वास्थ्यवर्धक भोजन लें, व्यायाम के लिए समय निकालें, किसी की प्रशंसा करने से पहले उसकी अच्छाइयों की तरफ  ध्यान दें, अपने मन में उसके लिए प्रेम जगाएं, फिर हमें झूठी प्रशंसा की आवश्यकता नहीं रहेगी और अपने मन में कोई तनाव भी नहीं रहेगा। इससे सच्चे रिश्ते बनेंगे जो जीवन भर हमारा साथ देंगे। गहरे लंबे सांस, उबासी और किसी गतिविधि में व्यस्तता के साथ अपने बाकी जीवन में परिवर्तन लाएं ताकि जब तक जीवित रहें, जीवंत रहें।             

ई-मेलःindiatotal.features@gmail


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