पशाकोट मंदिर टिकन
मंडी की चौहार घाटी भी देवी-देवताओं के मंदिरों से भरी पड़ी है। चौहार घाटी में देवता हुरंग नारायण देवादिदेव माने जाते हंै, वहीं देवता पशाकोट को बजीर माना जाता है। देवादिदेव हुरंग नारयण की भांति इस देवता का भी विशेष स्थान है। इस देवता का मुख्य मंदिर देवगढ़ गांव में करीब 600 साल पुराना है। यह सारा मंदिर लकड़ी का बना है। देव पशाकोट को सर्प के रूप में माना जाता है। देव पशाकोट मंदिर से एक पुरातन कथा जुड़ी हुई है। बरसात के समय देवता सर्प रूप में बैठे थे। तभी नदी में एक लड़की बाढ़ में बहती हुई गांव टिकन में आई। लड़की बेहोश हो गई थी। देव पशाकोट ने लड़की को बहते हुए देखा, तो पानी में जाकर लड़की को किनारे ले आए। लड़की बहुत सुंदर थी। उसकी सुंदरता देखकर देवता ने लड़की से शादी करने का मन बनाया। देवता ने सर्प रूप त्याग कर मनुष्य भेश धारण किया और उस लड़की से शादी करके वहां रहने लगे। जहां अब मंदिर बना है। यहीं उस लड़की से पशाकोट को तीन पुत्र मिले। तीनों सांप ही थे। यहीं रहते हुए देव पशाकोट लोगों की मुरादे पूरी करने लगे। इसी देवता को सर्प विष से मुक्ति दिलाने वाले के साथ हुरंग नारायण की तरह पुत्र देने वाला देवता भी माना जाता है। इस देवता के मंदिर में साल में कई मेले लगते हैं, लेकिन इसका एक मेला तीन साल बाद मसाड़ गांव में लगता है। मसाड़ गांव को देवता पशाकोट की सुसराल माना जाता है। तीन साल बाद देवता टिकन से मसाड़ गांव में अपने कारकरिंदो तथा बजंतरियों के साथ आते हैं। टिकन और मसाड़ गांव के रास्ते में ग्यारह गांव पड़ते हैं। गांव के हर घर में एक व्यक्ति को देवता के साथ जाना पड़ता है। यदि कोई व्यक्ति देवता के साथ नहीं जाता, तो उसे देवता का कोपभाजन बनना पड़ता है और दंड भी भुगतना पड़ता है। गांव में पहुंचने पर देवता का स्वागत होता है। यहां देवता को धाम भी देते हैं और चढावा भी चढ़ाते हैं। मसाड़ मेले के बाद देवता अपने निवास स्थान टिकन में आ जाते हैं। यह देवता भी तंबाकू तथा चमड़े के सामान से नफरत करता है। यह पुत्र दाता के रूप में जाने जाते हैं। दूर-दूर से लोग देवता के पास मनौतियां मांगने आते हैं।
– सुशील लोहिया, देहरीधार
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