महिलाओं का घटता श्रम 

By: Sep 10th, 2019 12:07 am

. भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

 

2012 में 31 प्रतिशत एवं 2005 में 43 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत थीं। स्पष्ट है कि बीते पंद्रह साल में कार्यरत महिलाओं की संख्या में भारी गिरावट आई है, इस विषय के दो पक्ष हैं। एक पक्ष यह है कि नई तकनीकों ने गृह कार्य के लिए श्रम की आवश्यकता बहुत कम कर दी है। बिजली, नल से आने वाला पानी, गैस, फ्रिज और वाशिंग मशीन ने संभव बना दिया है कि एक महिला चंद घंटों में पूरे परिवार के गृह कार्य को निपटा दे। अतः अपने अतिरिक्त समय का उपयोग वह अन्य अपने विकास के लिए कर सकती है जैसे रोजगार करने में अथवा अध्यात्म में अथवा पेंटिंग आदि बना कर आत्मा विकास मे। विषय का दूसरा पक्ष है कि समय क्रम में नर और मादा का अंतर बढ़ता जाता ही दिखता है…

भारत सरकार द्वारा समय-समय पर श्रमिकों का सर्वेक्षण कराया जाता है। 2018 के सर्वेक्षण में पाया गया कि केवल 23 प्रतिशत महिलाएं ही कार्यरत हैं। इससे पूर्व यह संख्या अधिक थी। 2012 में 31 प्रतिशत एवं 2005 में 43 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत थीं। स्पष्ट है कि बीते पंद्रह साल में कार्यरत महिलाओं की संख्या में भारी गिरावट आई है, इस विषय के दो पक्ष हैं। एक पक्ष यह है कि नई तकनीकों ने गृह कार्य के लिए श्रम की आवश्यकता बहुत कम कर दी है। बिजली, नल से आने वाला पानी, गैस, फ्रिज और वाशिंग मशीन ने संभव बना दिया है कि एक महिला चंद घंटों में पूरे परिवार के ग्रह कार्य को निपटा दे। अब उसे सुबह से शाम तक इन कार्यों के लिए मशक्कत करना जरूरी नहीं रह गया है। अतः अपने अतिरिक्त समय का उपयोग वह अन्य अपने विकास के लिए कर सकती है जैसे रोजगार करने में, अध्यात्म में अथवा पेंटिंग आदि बना कर आत्मा विकास में, विषय का दूसरा पक्ष है कि समय क्रम में नर और मादा का अंतर बढ़ता जाता ही दिखता है।

किसी समय इवल एक कोषीय जीव होते थे जिन्हें गैमेट कहा जाता है। इनमें नर और मादा का अंतर नहीं होता था। फिर भी कोई तो ये दो गैमेट मिलकर नए गैमेट का प्रजनन करते थे। दोनों जनक गैमेट एक से होते थे। इनमें जो ताकतवर गैमेट होता था वह अपने स्थान पर बना रहता था और कमजोर गैमेट उससे जाकर जुड़ता था और तब दोनों के सहयोग से नए गैमेट उत्पन्न होते थे। समय क्रम में जो ताकतवर गैमेट था वह मादा बना और जो कमजोर गैमेट था वह नर बना। समय के साथ- साथ नर और मादा के बीच का यह अंतर बढ़ता गया। आज हम देखते हैं कि कुछ विशेष पौधों में जैसे पपीते अथवा आंवले के वृक्ष में नर और मादा वृक्ष अलग-अलग होते हैं लेकिन इनकी बनावट, आकार अथवा पानी की जरूरत में कोई अंतर नहीं होता है जैसे पपीते के नर और मादा पौधे की ऊंचाई और आकार एक सा होता है। उनमें अंतर केवल फूल के आकार, संख्या आदि में देखा जाता है। इससे आगे बढ़ें तो बंदरों में नर और मादा के शरीर के आकार में भी अंतर पैदा हो जाता है। नर और मादा के वजन में अंतर आने लगता है।

नर बंदर का वजन 6.8 से 10.0 किलो होता है जबकि मादा का वजन 4.1 से 9.1 किलो तक होता है। यानी नर और मादा का अंतर अब शारीरिक बनावट पर भी आ गया है। आगे चलें तो मनुष्य में नर और मादा के कार्य में भी विभाजन हो जाता है। महिला घर के कार्यों और बच्चों को पालने में अधिक समय देती है और पुरुष धन कमाने में। बंदरों में नर और मादा दोनों ही जंगल से अपना- अपना भोजन एकत्रित करते हैं। उनके शरीर का आकार अलग-अलग है, परंतु कार्य समान है। मनुष्यों में कार्य की भी भिन्नता पैदा हो जाती है। एक और अंतर महिला और पुरुष की मनोवैज्ञानिक बनावट का भी दिखता है। हमारे मेरुदंड में सात चक्र होते हैं। योग के जानकार बताते हैं कि महिला का विशुद्धि चक्र जो कि गले में होता है, वह ज्यादा ताकतवर होता गया जबकि पुरुष का मनिपुर चक्र जो कि नाभि के पीछे होता है वह ज्यादा ताकतवर होता है। विशुद्धि चक्र का कार्य एक ऐंटेना जैसा होता है। वह आसपास में हो रही घटनाओं को पकड़ लेता है, इसलिए महिलाएं रोते बच्चे के मनोभाव को शीघ्र पकड़ लेती हैं। मनिपुर चक्र संकल्प शक्ति का केंद्र होता है। इसलिए हमारी परंपरा में संकल्प को पौरुष अथवा पुरुषार्थ भी कहा जाता है। अतः हम देखते हैं कि मनुष्यों में महिला और पुरुष का अंतर केवल शारीरिक बनावट एवं कार्य विभाजन का नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक गुणों का भी हो गया है। इस प्रकार हम देखते हैं कि समय क्रम में नर और मादा के बीच अंतर बढ़ता जाता है। हमारे सामने दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियां हैं। एक तरफ तकनीकों ने महिला का गृह कार्य सरल बना दिया है जिससे महिला और पुरुष के बीच बराबरी की ओर हम बढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ महिला और पुरुष के बीच अंतर बढ़ता दिखता है। इन परस्पर विरोधी प्रवृत्तियों के महिलाओं पर प्रभाव अलग-अलग दिखते हैं। कई अध्ययनों में बताया गया कि वे महिलाएं जिनका एक स्वतंत्र आय का स्रोत होता है और जिनका परिवार के निर्णयों में दखल ज्यादा होता है, वे मनोवैज्ञानिक दृष्टि से स्वस्थ होती हैं। दूसरे अध्ययन बताते हैं कि कामकाजी महिलाएं गृह कार्य और कमाई का दोहरा वजन ढोती हैं।

कनाडा के एक अध्ययन में पाया गया कि कामकाजी महिलाएं गृह कार्य करने वाली महिलाओं की तुलना में 25 प्रतिशत कम सोती थीं, इस परिस्थिति में सुझाव दिया जाता है कि महिला और पुरुष के कार्यों का बराबर बंटवारा कर दिया जाए। पुरुष गृह कार्य में सहयोग करे और महिला भी बाहरी कार्य में प्रवेश करे। इस सुझाव में यह समस्या है कि नर और मादा में जो बढ़ता हुआ अंतर दिखता है यह सुझाव उस प्रवृत्ति के विपरीत है इसलिए इसके सफल होने की संभावना कम ही है, इस जटिल समस्या का एक उपाय यह हो सकता है कि महिलाओं को पार्ट टाइम कार्य के लिए अवसर उपलब्ध कराए जाएं जिससे कि वे तकनीकी सुधार के कारण गृह कार्य से बचे हुए समय का उपयोग धन कमाने अथवा अपने आत्म विकास के लिए कर सकें जैसे संगीत अथवा पेंटिंग करने के लिए।अतः श्रम सर्वेक्षण में जो कार्यरत महिलाओं के प्रतिशत में गिरावट आई है, उसके दो परस्पर विरोधी पक्ष हैं। एक तरफ  यह शुभ सूचना है कि महिलाओं पर गृह कार्य और कमाई का दोहरा भार कम हो रहा है। यह दोहरा वजन पहले 43 प्रतिशत महिलाएं ढोती थीं, आज केवल 23 प्रतिशत महिलाएं ढो रही हैं। दूसरी तरफ  कार्यरत महिलाओं के प्रतिशत में गिरावट इस संकट की ओर इंगित करता है कि महिलाओं के स्वतंत्र आय के स्रोत कम हो रहे हैं और उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने की संभावना है। इस समस्या का हल यही है कि महिलाओं को पार्ट टाइम कार्य के अवसर उपलब्ध कराए जाएं, तब उन पर गृह कार्य और कमाई का दोहरा भार नहीं पड़ेगा और स्वतंत्र आय का स्रोत भी बनेगा।

ई-मेलः bharatjj@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App