विधायकों की इंक्रीमेंट का औचित्य

By: Sep 3rd, 2019 12:06 am

विपन शर्मा

लेखक, चंबा से हैं

अब माननीयों का वार्षिक यात्रा भत्ता 25 हजार से बढ़ाकर चार लाख कर दिया गया है। इस तरह अपने वेतन-भत्तों में वृद्धि का फैसला खुद ही माननीयों ने ले लिया है। और हो भी क्यों न, आखिर यह मंत्रियों सहित प्रदेश के 68 विधायकों की सुख-सुविधा बढ़ाने का सवाल था…

यह पूछने पर कि उस विधयेक का नाम बताएं, जो विधानसभा में हमेशा चंद मिनटों में ध्वनि मत से पारित हो जाता है। साधारण से साधारण व्यक्ति का भी जवाब होगा, विधायकों-मंत्रियों के वेतन-भत्तों में वृद्धि वाला संशोधन विधेयक  भले ही मजाक प्रतीत होता हो मगर यथार्थ में भी देश की संसद और हर राज्य की विधानसभा में सदस्यों की वेतन वृद्धि के समय पक्ष-विपक्ष में  ऐसा ही खुशनुमा समन्वय देखने को मिलता है, जबकि ऐसे  कितने ही जन-कल्याण व विकास से जुड़े विधयेक शोर-शराबे तथा दलगत राजनीति की भेंट चढ़ कर संसद व विधानसभा के पटल पर लंबित पड़े रहते है।  कुछ ऐसा ही नजारा हिमाचल प्रदेश विधान सभा में करीब तीन साल बाद फिर दृष्टिगोचर हुआ जब मानसून सत्र के अंतिम दिन शनिवार को विधानसभा सदस्य और मंत्रियों के भत्ते व पेंशन अधिनियम 1971 संशोधन विधयेक सर्वसम्मति से कुछ ही क्षणों में मेजें थपथपा कर पास कर दिया गया। अब माननीयो का वार्षिक यात्रा भत्ता 25 हजार से बढ़ाकर चार लाख कर दिया गया है।

इस तरह अपने वेतन भत्तों में वृद्धि का फैसला खुद ही माननीयों ने ले लिया  है। और हो भी क्यों न आखिर यह मंत्रियों सहित प्रदेश के 68 विधायको की सुख-सुविधा बढ़ाने का सवाल था, पर इससे पूर्व 2016 में ही माननीयों को इंक्रीमेंट मिली थी और वर्तमान एक विधायक का मासिक वेतन 2.10 लाख है, जिसमे 55,000 बेसिक सैलरी, 90,000 चुनाव क्षेत्र भत्ता, 5,000 कम्प्यूटर, भत्ता 15,000 टेलीफोन भत्ता यद्यपि आज 1000-1200 रुपए में असीमित काल, इटरनेट डाटा  उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त 30,000 आफिस भत्ता और 15,000 डाटा एंट्री आपरेटर  अलाउंस शामिल है जबकि विधानसभा की समितियों में भाग लेने के लिए टीए और विधासभा के सत्र में भाग लेने के लिए दैनिक भत्ता अलग से मिलता है, इसके अतरिक्त माननीयों को  मिलने वाली मुफ्त की ढेर सारी सुविधायों पर भी नजर दौड़ा लेते हैं। प्रदेश के प्रत्येक विधायक को मुफ्त आवास सुविधाएं, चिक्तिसा सुविधाएं, मुफ्त टेलीफोन सुविधा,  3000 रुपए मासिक तक मुफ्त बिजली पानी की सुविधाएं। एक परिवार के सदस्य या अन्य किसी सहायक सहित प्रदेश की परिवहन की बसों तथा ट्रेनों में मुफ्त यात्रा सुविधाएं, भूतपूर्व  होने पर चाहे कितनी भी कम अवधि के लिए विधायक रहा हो 78,000 रुपए मासिक पेंशन इत्यादि कई सुविधाओं का लाभ उठा कर हमारे विधायक जन सेवा करते हैं और हर दो-तीन साल बाद फिर से अपने वेतन-भत्तों को बढ़ा लेते है। माननीयों के वेतन-भत्तों में अप्रैल 2016 को ही पिछली वृद्धि की गयी थी पर  तीन वर्ष बाद ही एक और वृद्धि कर अपनी झोली भरने का जुगाड़ माननीय विधायकों ने सर्व सम्मति से कर लिया है ऐसा नहीं है कि जन प्रतिनिधियों को अच्छे वेतन भत्ते या सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए परतुं उन्हें निर्धारित या वृद्धि करने का अधिकार खुद विधयकों के पास न होकर अन्य संस्थाओं या वेतन आयोग के पास होना चाहिए जो यह सुनिश्चित करे कि विधायकों को इतना वेतन और सुविधाएं न दी जाएं जिससे लोग उसे अपना करियर बनाने का प्रयास करें और न ही उन्हें इतना कम वेतन दिया जाए जिससे उनके कर्त्तव्य निर्वहन में बाधा पहुंचे । मगर पचास हजार करोड़ के कर्ज से परेशान हिमाचल जैसे कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य में इस प्रकार थोड़े-थोड़े अंतराल में माननीयों के वेतन भत्तों व सुविधाओं में भारी वृद्धि को किसी भी कोण से तर्कसंगत नहीं मना जा सकता है। हमारे  माननीय  विधायक  हर दो तीन  साल में खुद ही अपने वेतन-भत्ते बढ़ा लेने के पीछे ताबड़तोड़ बढ़ रही महंगाई  का तर्क देते हैं तो प्रश्न उठता  है, क्या आम जनता  बढ़ती महगाई से त्रस्त नही है? एक दैनिक भोगी मजदूर जिसे मात्र 225 रुपये दिहाड़ी मिलती है, सरकार ने  उसकी दिहाड़ी में  केवल 25 रुपये की वृद्धि की है, इस नगन्य  दिहाड़ी  वृद्धि से कैसे  एक मजदूर सुरसा की भांति मुंह फाड़ रही महंगाई से पार पाएगा? उसको  माननीय  विधायकों की तरह ढेर सारी मुफ्त  सुविधाएं तो मिलती नही है।

इसी प्रकार प्रदेश में वित्तीय स्थिति  खराब होने के कारण एमओ  के नाम पर  सरकार  कर्मचारियों को  कांट्रैक्ट  पर नियुक्त करके नाम मात्र का वेतन दे रही है,  2003 के बाद से सभी कर्मचारियों की पेंशन बंद कर दी है। पुरानी पेंशन बहाली के लिए प्रदेश के लाखों कर्मचारी लगातार आंदोलन कर रहे हैं, ओउटसोर्से कर्मचारी शोषित हो रहे है, हर वर्ष उधार ले कर बजट घाटे का प्रबंधन किया जा रहा है। मौसम की मार व प्राकृतिक आपदा झेल रहे किसानो को उचित मुआवजा  देने के लिए  सरकार के पास  पैसे नही है तो  प्रदेश में कई  स्कूल  एक-एक  अध्यापक  के  हवाले है। दूसरी तरफ  मंत्रियों के  लिए  30 से  35 लाख की नई गाडि़यों  तथा जम्बो  स्टाफ सहित वेतन- भत्तों में हर तीसरे वर्ष वृद्धि करने के लिए  खजाने  को  खोल रही है। हालांकि यह केवल वर्तमान सरकार या पार्टी विशेष की सरकार की कार्यप्रणाली की बात नहीं, पिछली सरकार में और भी स्थिति बदतर थी, शायद इसीलिए सारभौम जनता ने नई सरकार इस उम्मीद के साथ चुनी की चीजें बदलेंगी मगर गाड़ी उसी ढर्रे पर न चल पड़े, इस बात का ध्यान रखना होगा। सरकार केवल जन-प्रतिनिधि, विधायक, मंत्री कल्याण तक सीमित न हो बल्कि एक जन कल्याणकारी सरकार बने  तभी सर्वे भवंतु सुखिनारू सर्वेरू संतु निरामया का सपना साकार होगा। 


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