अर्थव्यवस्था में संशय

By: Nov 21st, 2019 12:07 am

पीके खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

एक समय ऐसा था जब भाजपा की आंतरिक रस्साकशी के चलते उन्हें गुजरात से दूर कर दिया गया था, लेकिन केशुभाई पटेल के मुख्यमंत्रित्व काल में जब गुजरात के हालात बिगड़े तो भाजपा हाईकमान ने उन्हें स्थिति संभालने के लिए कहा और गुजरात का उपमुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया। मोदी ने बिना समय गंवाए वह प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा कि यदि वे गुजरात जाएंगे तो मुख्यमंत्री बनकर ही जाएंगे…

हर देश में हर समय कोई न कोई व्यक्ति ऐसा होता है जिसे उसके आसपास के लोग सनकी मान लेते हैं, ये ऐसे लोग होते हैं जो कहीं न कहीं परपंरागत दृष्टिकोण से परे हट कर सोचते हैं, यथास्थिति से समझौता नहीं कर पाते। ये विद्रोही स्वभाव के लोग समाज में हलचल मचा देते हैं, कइयों को परेशान कर देते हैं क्योंकि वे चीजों को नए नजरिए से देखते हैं। वे तत्कालीन नियमों से सहमत नहीं होते और बदलाव की आंधी बन जाते हैं। यह तो संभव है कि आप उनकी बातें उद्धृत करें, उनका समर्थन करें या उनका विरोध करें, पर उनकी उपेक्षा करना कदापि संभव नहीं होता। नरेंद्र मोदी ऐसे ही शख्स हैं। एक समय ऐसा था जब भाजपा की आंतरिक रस्साकशी के चलते उन्हें गुजरात से दूर कर दिया गया था, लेकिन केशुभाई पटेल के मुख्यमंत्रित्व काल में जब गुजरात के हालात बिगड़े तो भाजपा हाइकमान ने उन्हें स्थिति संभालने के लिए कहा और गुजरात का उपमुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया।

मोदी ने बिना समय गंवाए वह प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा कि यदि वह गुजरात जाएंगे तो मुख्यमंत्री बनकर ही जाएंगे अन्यथा नहीं जाएंगे। एक ऐसा व्यक्ति जो कभी राज्यमंत्री भी न रहा हो, उसके लिए उपमुख्यमंत्री का पद बहुत बड़ी सौगात हो सकती है, लेकिन धुन के पक्के मोदी ने लालच नहीं दिखाया। अंततः भाजपा हाइकमान को उनकी शर्त माननी पड़ी और सन् 2002 में वह गुजरात के मुख्यमंत्री हो गए। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में भी वे हमेशा चर्चा में रहे। तब वह एक विपक्षी मुख्यमंत्री थे, लेकिन उन्होंने वाइब्रेंट गुजरात के माध्यम से शोहरत लूटी और फिर राज्य में शासन व्यवस्था का ऐसा दौर चला कि उसे ‘गुजरात मॉडल’ के नाम से जाना गया। गुजरात में उनके मुख्यमंत्रित्व काल के दस वर्ष होते न होते भाजपा कार्यकर्ताओं में सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे। हालांकि तब वह सिर्फ  एक राज्य के मुख्यमंत्री मात्र थे। तब भाजपा में लालकृष्ण आडवाणी ही नहीं बल्कि राजनाथ सिंह, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह, अरुण जेतली, सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी सरीखे नेता थे जिनकी राष्ट्रीय नेता के रूप में पहचान थी, लेकिन मोदी का जलवा ऐसा था कि एक अकेले लालकृष्ण आडवाणी को छोड़ दें तो भाजपा के किसी और तत्कालीन नेता का आभामंडल ऐसा नहीं था कि वे मोदी की बराबरी कर सकें।

यही नहीं, भाजपा कार्यकर्ताओं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तक में सबको यह स्पष्ट था कि यदि 108 साल पुरानी कांग्रेस का मुकाबला करना है तो सर्वाधिक विश्वसनीय नेता नरेंद्र मोदी ही हो सकते हैं। सन् 2014 के आम चुनाव तक आडवाणी भाजपा के सबसे बड़े नेता थे और उनके समर्थकों की भी कमी नहीं थी, यहां तक कि भाजपा के सहयोगी दलों में भी लालकृष्ण आडवाणी ज्यादा स्वीकार्य लगते थे, इसलिए आडवाणी को एकदम से परे करना संभव नहीं था तो संघ ने मोदी को भाजपा की चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया। यह ऐसी तिकड़म थी जिसे आडवाणी और उनके गुट के लोग तब नहीं समझ पाए। अंततः उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित किया गया तो उसका कारण यही था कि संघ तथा भाजपा कार्यकर्ताओं में वह सर्वाधिक लोकप्रिय थे, आडवाणी से कहीं ज्यादा। भाजपा का आम कार्यकर्ता मोदी को ही अपना नेता मानता था और मोदी से प्रेरित था। मोदी अंततः प्रधानमंत्री बने और लंबे समय के बाद किसी एक दल को केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का मौका मिला था। यह मोदी की वाकपटुता, उनकी छवि तथा मोदी और शाह की जोड़ी के आत्मविश्वास और रणनीति का ही नतीजा था कि केंद्र सरकार में भाजपा अपने बहुमत के बल पर सत्ता में आई। सरकार गठबंधन की अवश्य थी पर किसी सहयोगी दल को मोदी से आंख मिलाकर बात करने का साहस नहीं था, जिसने ऐसा किया उसका पत्ता कट गया। इसके बाद 2019 के आम चुनाव में एक बार फिर मोदी का जलवा परवान चढ़ा और वे पहले से भी ज्यादा सीटें लेकर प्रधानमंत्री बने। आज वह एक अत्यंत शक्तिशाली प्रधानमंत्री हैं और आज सरकार में उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। वह सर्वशक्तिमान हैं।

उद्यम जगत में यह स्पष्ट मान्यता है कि किसी कंपनी को चलाने के लिए कंपनी की मैनेजमेंट के पास विजन ‘दूरदर्शिता’, स्किल ‘कौशल’, इन्सेंटिव ‘प्रोत्साहन’, रिसोर्सेज ‘संसाधन’ तथा प्लान आफ  एक्शन ‘कार्य-योजना’ का होना अति आवश्यक है वरना उस कंपनी का भविष्य अंधकारमय होने की आशंका बनी रहेगी। यह स्पष्ट है कि यदि कंपनी के प्रबंधन के पास विजन न हो तो उनके हर काम में दिशाहीनता रहेगी, यदि अपेक्षित कौशल में कमी हो तो चिंता और तनाव का माहौल रहेगा, यदि कंपनी के कर्मचारियों को प्रेरित रखने के लिए किसी प्रोत्साहन का प्रावधान नहीं होगा तो कर्मचारियों की ओर से हर नए परिवर्तन को लेकर प्रतिरोध होता रहेगा और काम अपेक्षित गति से या अपेक्षित समय पर नहीं हो पाएगा। यदि कंपनी के पास आवश्यक संसाधन न हों तो भी कंपनी में हताशा की स्थिति होगी और यदि कोई लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्य योजना न बनी हो तो काम शुरू ही नहीं हो पाता या गलत तरीके से शुरू हो जाता है, गलत दिशा में शुरू हो जाता है। देश की अर्थव्यवस्था को लेकर इस समय मोदी सरकार की हालत ऐसी कंपनी के जैसी है जिसके पास न विजन, स्किल, रिसोर्सेज और प्लान आफ एक्शन का नितांत अभाव है। परिणाम यह है कि सरकार अपने ही विभागों के आंकड़ों को नकारती नजर आ रही है। इससे सरकार की विश्वसनीयता पर तो सवाल उठ ही रहे हैं, काम-धंधे भी लगातार चौपट होते चल रहे हैं। मोदी अभी भी इसी रणनीति पर चल रहे हैं कि धारा 370 हटा देने और पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक कर देने से उन्हें वोट मिलते रहेंगे। हां, यह संभव है कि अर्थव्यवस्था की बदहाली के बावजूद भाजपा चुनाव जीतती रहे, तो इसका श्रेय मोदी से भी ज्यादा विपक्ष को होगा जो मानो नींद में चल रहा है। महाराष्ट्र का नाटक ही यह सिद्ध करने के लिए काफी है कि विपक्ष कितना कमजोर और बिखरा हुआ है। समस्या यह है कि अर्थव्यवस्था की चिंता करना हमारा अधिकार तो है ही, कर्त्तव्य भी है और यही कारण है कि मोदी की छवि के बावजूद हम आर्थिक क्षेत्र में चल रहे संशय पर सवाल करने के लिए विवश हैं। काश, मोदी इस पर फोकस कर पाएं।

ई-मेलः indiatotal.features@gmail


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App