समता, ममता और महिलाएं

By: Nov 7th, 2019 12:07 am

पीके खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

‘राष्ट्रीय एकल नारी अधिकार मंच’ नामक इस संगठन की सदस्या महिलाओं में विधवाएं, परित्यक्ताएं, तलाकशुदा महिलाएं व ऐसी अविवाहित महिलाएं शामिल हैं जो अपने परिवार और समाज से उपेक्षापूर्ण व्यवहार का दंश झेल रही हैं। इनमें से अधिकांश ग्रामीण पृष्ठभूमि की साधनहीन महिलाएं हैं जिनके पास अपनी कठिनाइयां बताने का कोई उपाय नहीं था। यह संगठन ऐसी महिलाओं के अधिकारों की वकालत ही नहीं करता बल्कि उन्हें अधिकारों के प्रति शिक्षित भी करता है…

देश में महिला अधिकारों के पक्षकार संगठनों की कमी नहीं है, पर हाल ही में मुझे एक और ऐसे संघ की सदस्याओं से मिलने का मौका मिला जिसने मुझे महिलाओं की एक और समस्या पर फिर से सोचने के लिए विवश किया। देश की राजधानी दिल्ली के लिए यह कोई नई बात नहीं है कि किसी संगठन के लोग विरोध प्रदर्शन के लिए आएं या मीडिया कर्मियों से मिलकर अपनी समस्याओं का बखान करें। महिलाओं के इस संगठन की प्रकृति और इसके उद्देश्य ने सचमुच मेरी आंखें खोली हैं। ‘राष्ट्रीय एकल नारी अधिकार मंच’ नामक इस संगठन की सदस्या महिलाओं में विधवाएं, परित्यक्ताएं, तलाकशुदा महिलाएं व ऐसी अविवाहित महिलाएं शामिल हैं जो अपने परिवार और समाज से उपेक्षापूर्ण व्यवहार का दंश झेल रही हैं। इनमें से अधिकांश ग्रामीण पृष्ठभूमि की साधनहीन महिलाएं हैं जिनके पास अपनी कठिनाइयां बताने का कोई उपाय नहीं था। यह संगठन ऐसी महिलाओं के अधिकारों की वकालत ही नहीं करता बल्कि उन्हें अधिकारों के प्रति शिक्षित भी करता है। इससे भी बड़ी बात, यह सिर्फ  ऐसी वंचिता महिलाओं के अधिकारों की वकालत करने के साथ-साथ उनके ससुराल पक्ष के परिवारों को काउंसिलिंग के माध्यम से उनके बीच की गलतफहमियां दूर करके परिवारों को जोड़ने का प्रयत्न भी करता है। यानी, ‘राष्ट्रीय एकल नारी अधिकार मंच’ अधिकारों की वकालत करते हुए सिर्फ झगड़ा बढ़ाने का ही काम नहीं करता, बल्कि झगड़ा निपटाने का रचनात्मक प्रयत्न भी करता है। अपने ममतामयी दृष्टिकोण के लिए जानी जाने वाली महिलाएं विपरीत स्थितियों में खुद कितनी उपेक्षा का शिकार होती हैं, इसकी कहानी सचमुच अजीब है। पुरुष प्रधान समाज में अकेली महिलाओं की स्थिति अकसर शोचनीय होती है और उन पर कई और नए बंधन लाद दिए जाते हैं। विधवा महिलाएं ससुराल में शेष सदस्यों के अधीन हो जाती हैं, परित्यक्ताएं और तलाकशुदा महिलाएं तो कई बार अपने मायके में भी दूसरे दर्जे की नागरिक बनकर रह जाती हैं।

घर में सारा दिन काम करते रहने पर भी उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता, स्वतंत्रता नहीं मिलती और अपेक्षित सम्मान नहीं मिलता। विधवाओं की कठिनाइयों के बारे में तो फिर गाहे-बगाहे बात होती रहती है, लेकिन परित्यक्ताओं, तलाकशुदा एकल महिलाओं, किसी भी विवशतावश अथवा अपनी इच्छा से अविवाहित रह गई महिलाओं की समस्याओं के बारे में हम शायद ज्यादा जागरूक नहीं हैं। एकल महिलाओं को हिंसा, शोषण, उपेक्षा, तिरस्कार, अवैतनिक कामकाज के अलावा यौन शोषण की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गांवों में उन्हें सहारा देने वाला कोई नहीं होता, समाज की रूढि़वादिता और संस्कार उन्हें विरोध करने से रोकते हैं और वे असहाय पिसती रह जाती हैं। सन 2011 की जनगणना के अनुसार ऐसी महिलाओं की संख्या पांच करोड़ साठ लाख के आसपास थी और इनमें से अधिकांश विधवाएं थीं। खेद का विषय है कि ऐसी महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यही नहीं, जिन परिवारों में मर्द लोग कामकाज के सिलसिले में शहर से बाहर रहने को विवश हैं। वहां उनकी पत्नियां घर में अकेली पड़ जाती हैं और कई तरह की समस्याएं झेलती हैं, लेकिन जुबान नहीं खोल पातीं। घर से बाहर रह रहा मर्द अगर कठिनाइयां झेल कर पैसे कमाता है तो घर में अकेली पड़ गई उसकी पत्नी भी कई तरह से अपमान और उपेक्षा का शिकार  हो सकती है। महिलाओं की शारीरिक बनावट के कारण उनकी समस्याएं अलग हैं। यही नहीं, उनकी भावनात्मक सोच भी पुरुषों से अलग होती है और अकसर पुरुष उसे नहीं समझ पाते। इसके कारण भी कई बार महिलाओं को कई तरह की कठिनाइयां झेलनी पड़ती हैं। भौगोलिक दूरी के कारण अलग-अलग स्थानों पर रह रहे पति-पत्नी में पत्नी इसलिए मुरझा जाती है कि वह पति के संसर्ग और सहारे, दोनों से वंचित रह जाती है और कुछ बोल भी नहीं पाती। इससे भी ज्यादा बड़ी समस्या तब आती है जब रोजगार के सिलसिले में मर्द शहर से बाहर जाता है और वहीं पर दूसरा विवाह कर लेता है। ऐसे बहुत से पुरुष अपनी पहली पत्नी को अकसर पूरी तरह से बिसरा देते हैं।

‘राष्ट्रीय एकल नारी अधिकार मंच’ की सदस्याएं महिलाओं की इस व्यथा का बखान करते हुए कहती हैं कि हिमाचल प्रदेश में रोजगार की बहुलता न होने के कारण मर्दों का राज्य से बाहर प्रवास जितना आम है, नए शहर में बस कर आधुनिक महिलाओं अथवा महिला सहकर्मियों से दूसरी शादी भी कम आम नहीं है। हिमाचल प्रदेश जैसे कम आबादी वाले छोटे से राज्य से ही ‘राष्ट्रीय एकल नारी अधिकार मंच’ की सदस्याओं की संख्या 12,000 से कुछ ही कम है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितनी बड़ी संख्या में महिलाएं शोषण और उपेक्षा का शिकार हो रही हैं। महिलाओं की एक अन्य समस्या को भी पुरुष अकसर नहीं समझ पाते और अकसर उसका परिणाम यह होता है कि पूरा परिवार बिखर जाता है। करियर के जाल में फंसा पुरुष वर्ग पत्नी और परिवार की उपेक्षा की गंभीरता को समझ ही नहीं पाता, कई बार तो तब तक जब परिवार टूट ही न जाए या टूटने के कगार पर ही न पहुंच जाए। तब भी पुरुष लोग यह नहीं समझ पाते कि वे कहां गलत थे। वे तो तब भी यही मान रहे होते हैं कि वे जो कुछ भी कर रहे थे वह परिवार की भलाई, खुशी और समृद्धि के लिए ही था। यहां पतियों और पत्नियों का नजरिया एकदम अलग-अलग नजर आता है। पत्नियां पैसा कम और पति का साथ ज्यादा चाहती हैं और पति यह मानते रह जाते हैं कि यदि उनके पास धन होगा तो वे पत्नी के लिए सारे सुख खरीद सकेंगे। बिना यह समझे कि उनकी पत्नी की भावनात्मक आवश्यकताएं भी हैं और उनकी पूर्ति के लिए उन्हें पति के पैसे की नहीं, बल्कि पति के संसर्ग और भावनात्मक सहयोग की आवश्यकता है। हमारा देश तेजी से विकास कर रहा है, हमारे जीवन स्तर में सुधार हो रहा है। अब समय आ गया है कि हम पुरुष समाज को महिलाओं की आवश्यकताओं के बारे में शिक्षित करें और महिलाओं के प्रति ज्यादा सौहार्दपूर्ण रवैया अपनाएं ताकि समाज के दोनों अंगों का समान विकास संभव हो सके और समाज में संतुलन बना रहे।

ई-मेलः indiatotal.features@gmail


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