विवेक चूड़ामणि

By: Nov 30th, 2019 12:25 am

गतांक से आगे…

ब्रह्माभिन्नत्वविज्ञानं भवमोक्षस्य कारणम।

येनाद्वितीयतानंद ब्रह्म संपद्यते बुधैः।।

ब्रह्म और आत्मा के अभेद ज्ञान ही भवबंधन से मुक्त होने का कारण है,जिसके द्वारा बुद्धिमान पुरुष अद्वितीय आनंदस्वरूप ब्रह्मपद को प्राप्त कर लेता है।

ब्रह्मभूतस्तु संसृत्यै विद्वान्नावर्तते पुनः।

विज्ञातव्यमतः सम्यग्ब्रह्मा भिन्नत्वमात्मनः।।

ब्रह्मभूत हो जाने पर विद्वान फिर जन्म-मरण संसार चक्र में नहीं पड़ता इसलिए आत्मा का ब्रह्म से अभिन्नत्व अर्थात आत्मा ब्रह्म से अलग नहीं है, इसे भली प्रकार से जान लेना चाहिए।

सत्यं ज्ञानमनंतं ब्रह्म विशुद्धं परं स्वतः सिद्धम।

नित्यानंदैकरसं प्रत्यगभिन्नं निरंतरं जयति।।

ब्रह्म सत्य ज्ञानरूवरूप और अनंत है,वह शुद्ध,परम,स्वतःसिद्ध,नित्य,एकमात्र आनंदस्वरूप,प्रत्यक और अभिन्न है तथा निरंतर विजयी होता है।

सदिदं परमाद्वैतं स्वस्मादन्यस्य वस्तुनोऽभावात।

न ह्यन्यदस्ति किंचित्सम्यक्परमार्थ तत्त्वबोधे हि।।

यह परमाद्वैत ही एकमात्र सत्य पदार्थ है,क्योंकि इस स्वात्मा से अतिरिक्त और कोई वस्तु है ही नहीं। इस परमार्थ तत्त्व का सम्यक रूप से, पूर्ण बोध हो जाने पर और कुछ भी जानना शेष नहीं रहता।

यदिदं सकलं विश्वं प्रतीतमज्ञानात।

तत्सर्वं ब्रह्मैव प्रत्यस्ता शेषभावनादोषम।।

यह संपूर्ण विश्व, जो अज्ञान से नाना प्रकार का प्रतीत हो रहा है, समस्त भावनाओं के दोष से रहित अर्थात निर्विकल्प ब्रह्म ही है।

मृत्कार्यभूतोऽपि मृदो न भिन्नः कुंभोऽस्ति सर्वत्र तु मृत्स्वरूपात।

न कुंभरूपं पृथगस्ति कुंभः कुतो मृषा कल्पितनाममात्रः।।

मिट्टी का कार्य होने पर भी घड़ा उससे पृथक नहीं होता,क्योंकि सब ओर से मृत्तिका रूप होने के कारण घड़े का रूप मृत्तिका से पृथक नहीं है,अत मिट्टी में मिथ्या कल्पित नाममात्र घड़े की सत्ता ही भला कहां है।

केनापि मृदभिन्नत्या स्वरूपं घटस्य संदर्शयितुं न शक्यते।

अतो घटःकल्पित एव मोहान मृदेव सत्यं परमार्थभूतम।।

मिट्टी से अलग घड़े का रूप कोई भी नहीं दिखा सकता,इसलिए घड़ा तो मोह से ही कल्पित है, वास्तव में सत्य तो तत्त्वस्वरूप मृत्तिका ही है।

सदब्रह्मकार्य सकलं सदैव तन्मात्रमेतन्न ततोऽन्यदस्ति।

अस्तीति यो वक्ति तस्य मोहो विनिर्गतो निद्रितवत्प्रजल्पः।

सत ब्रह्म का कार्य यह सकल प्रपंच भी तो सत्स्वरूप ही है, कारण यह संपूर्ण वही तो है,उसमें भिन्न कुछ भी नहीं है। जो कहता है कि उससे पृथक भी कुछ है,अभी तक उसका मोह दूर नहीं हुआ है, उसका यह कथन सोए हुए पुरुष के प्रलाप के समान है।

ब्रह्मवेदं विश्वमित्येव वाणी श्रोती ब्रूतेऽथर्वनिष्ठा वरिष्ठा।

तस्मादेतद ब्रह्ममात्रं हि विश्वं नाधिष्ठानादभिन्नतारोपितस्य।।

यह संपूर्ण विश्व ब्रह्म ही है,ऐसा अति श्रेष्ठ अर्थव श्रुति कहती है,इसलिए यह विश्व ब्रह्ममात्र ही है,क्योंकि आरोपित वस्तु की अधिष्ठान से स्वतंत्र सत्ता हुआ ही नहीं करती।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App