खुशियों का खजाना

By: Dec 26th, 2019 12:06 am

पीके खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

मानसिक तनाव और गुस्सा बहुत बड़ी बीमारियां हैं और हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा तनावपूर्ण जीवन जीते हुए बीमार होता चल रहा है। तब मैंने इसके इलाज के लिए कुछ करने की ठान ली और परिणामस्वरूप मैंने ‘दि हैपी इंडिया फोरम’ की स्थापना की और इसके सदस्यों में खुश रहने के गुर बांटने का काम शुरू किया। यह मुख्यतः ह्वाट्सऐप पर आधारित लोगों का समूह था जहां सदस्यगण खुश रहने के गुर सिखाने के अलावा पारिवारिक चुटकुले भेजते थे…

पुरानी बात है। मैं किशोर वय का था जब डेल कार्नेगी द्वारा लिखित विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘लोक व्यवहार’ मेरे हाथ लगी। उसने मेरे सोचने का तरीका बदल दिया। उसके बाद उन्हीं की एक अन्य पुस्तक ‘चिंता छोड़ो, सुख से जियो’ ने तो मानो मुझमें क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया और मुझे हर हाल में खुश रहने का गुर सिखाया। मेरी खुशकिस्मती यह भी रही कि मेरे बचपन और किशोर वय का बड़ा हिस्सा छोटे कस्बे में बीता जहां पैदल चलना आम बात थी। इससे शारीरिक व्यायाम की आवश्यकता खुद-ब-खुद पूरी होती रही और मैंने एक स्वस्थ जीवन जिया। यह भी एक संयोग रहा कि मुझे अपने पेशेवर जीवन में जल्दी ही सफलता मिल गई। विभिन्न मीडिया घरानों में दो दशक के अनुभव के बाद मैं अंततः जनसंपर्क के व्यवसाय में रत हो गया। यहां भी मुझे सफलता, प्रसिद्धि और धन, तीनों की कमी नहीं रही। कुछ वर्ष पूर्व मैंने भोजन व्यवसाय में कदम रखा और शुरुआती सफलता ने मुझे थोड़ा अक्खड़ और गुस्सैल बना दिया। मैं स्वयं को तीसमारखां समझने लगा था लेकिन तभी असफलताओं का दौर शुरू हुआ, हालांकि यह असफलता सिर्फ भोजन व्यवसाय तक ही सीमित रही और जनसंपर्क का मेरा मुख्य व्यवसाय बदस्तूर आगे बढ़ता रहा। भोजन व्यवसाय में मिली असफलता ने मुझे आत्ममंथन के लिए विवश किया और मुझे समझ आ गया कि मेरा अहम और मेरा गुस्सा मेरी सफलता में रोड़े बन रहे थे। इस असफलता ने कुछ समय के लिए निराशा और तनाव भी दिया और मुझमें आत्म-ग्लानि की भावना घर कर गई। अब मैं बात-बात पर खीझने लगा, नाराज होने लगा, लोगों से कटने लगा। यह मेरे जीवन का एक कठिन दौर था। शीघ्र ही मैं फिर नींद से जागा और मैंने यह सोचना शुरू किया कि ऐसा क्यों हो रहा है कि अब मैं शिकायती स्वभाव वाला हो गया हूं? इधर-उधर सिर टकराने के बाद अंततः मुझे आत्म-ग्लानि, गुस्से और तनाव से मुक्ति पाने का एक अनुपम गुर मिला और उसने एक बार फिर मेरे जीवन में खुशियां भर दीं।

इस नई युक्ति को जीवन में उतारने के बाद मुझे समझ आया कि मानसिक तनाव और गुस्सा बहुत बड़ी बीमारियां हैं और हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा तनावपूर्ण जीवन जीते हुए बीमार होता चल रहा है। तब मैंने इसके इलाज के लिए कुछ करने की ठान ली और परिणामस्वरूप मैंने ‘दि हैपी इंडिया फोरम’ की स्थापना की और इसके सदस्यों में खुश रहने के गुर बांटने का काम शुरू किया। यह मुख्यतः ह्वाट्सऐप पर आधारित लोगों का समूह था जहां सदस्यगण खुश रहने के गुर सिखाने के अलावा पारिवारिक चुटकुले भेजते थे। लगभग एक वर्ष पूर्व मैंने इसे और आगे बढ़ाने की कोशिश शुरू की और मैंने कार्यशालाओं का आयोजन करना आरंभ कर दिया। मेरा पहला कार्यक्रम बंगलुरू में हुआ जहां मैंने अपने अनुभव बांटे और श्रोताओं को तनावमुक्त होकर खुश रहने के गुर समझाए। मेरा यह कार्यक्रम वस्तुतः मानसिक कचरा बीनने के बराबर का है जिसमें मैं श्रोताओं को तनाव से मुक्ति पाकर खुश रहने के भौतिक एवं आध्यात्मिक तरीके सिखाता हूं। बंगलुरू की कार्यशाला के लगभग तीन माह बाद मुझे अचानक बंगलुरू से एक पत्रकार का फोन आया जो मेरा इंटरव्यू करना चाह रहे थे। मैंने उनसे इंटरव्यू का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि आपके क्लब की सफलता को लेकर बात होगी।

मैं हैरान हो गया। तब उन्होंने बताया कि मेरी कार्यशाला के बाद उन श्रोताओं में से कुछ लोगों ने स्वतः स्फूर्त क्लब का गठन कर लिया था और वे माह में एक बार आपस में मिलकर एक-दूसरे की प्रगति पर चर्चा करते हैं और एक-दूसरे की समस्याएं समझ कर उनका समाधान भी करते हैं और उसमें नए-नए लोग जुड़ते जा रहे हैं। यह तो एक चमत्कार ही था। मैंने तो एक पौधा रोपा था जो अब वट वृक्ष बनने की दिशा में बढ़ रहा था। यह सचमुच चमत्कार ही है। इसी सप्ताह एक अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि आप अगर अपनी शारीरिक सेहत को लेकर सजग हैं, लेकिन मानसिक सेहत पर ध्यान नहीं देते तो वक्त आ गया है कि आप अपने मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना शुरू कर दें। ‘लैन्सेट साइकायट्री’ नाम की पत्रिका में प्रकाशित लेख के अनुसार देश में हर 7 में से एक भारतीय गंभीर मानसिक बीमारी से पीडि़त है। इस अध्ययन के मुताबिक 2017 में प्रत्येक सात में से एक भारतीय अलग-अलग तरह के मानसिक विकारों से पीडि़त रहा जिसमें अवसाद और व्यग्रता से लोग सबसे ज्यादा परेशान रहे। मानसिक विकार के कारण बीमारियों के बढ़ते बोझ में मानसिक विकारों का योगदान 1990 से 2017 के बीच दोगुना हो गया। इन मानसिक विकारों में अवसाद, व्यग्रता, विकास संबंधी अज्ञात बौद्धिक विकृति, आचरण संबंधी विकार आदि शामिल है। यह अध्ययन ‘इंडिया स्टेट लेवल डिजीज बर्डन इनिशिएटिव’ द्वारा किया गया जो ‘लैन्सेट साइकायट्री’ में प्रकाशित हुआ है। इसी सप्ताह सोमवार को प्रकाशित अध्ययन के परिणामों के मुताबिक 2017 में 19.7 करोड़ भारतीय मानसिक विकार से ग्रस्त थे जिनमें से 4.6 करोड़ लोगों को अवसाद था और 4.5 लाख लोग व्यग्रता के विकार से ग्रस्त थे। अवसाद और व्यग्रता सबसे आम मानसिक विकार हैं और उनका प्रसार भारत में बढ़ता जा रहा है और दक्षिणी राज्यों तथा महिलाओं में इसकी दर ज्यादा है। अध्ययन में कहा गया कि अधेड़ लोग अवसाद से ज्यादा पीडि़त हैं जो भारत में बुढ़ापे की तरफ  बढ़ती आबादी को लेकर चिंता को दिखाती है। साथ ही इसमें कहा गया कि अवसाद का संबंध भारत में आत्महत्या के कारण होने वाली मौतों से भी है।

कुल बीमारियों के बोझ में मानसिक विकारों का योगदान 1990 से 2017 के बीच दोगुना हो गया जो इस बढ़ते बोझ को नियंत्रित करने की प्रभावी रणनीति को लागू करने की जरूरत की तरफ  इशारा करता है। एम्स के प्रोफेसर एवं मुख्य शोधकर्ता राजेश सागर ने कहते हैं, ‘इस बोझ को कम करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य को सामने लाने के लिए सभी साझेदारों के साथ हर स्तर पर काम करने का वक्त है, इस अध्ययन में सामने आई सबसे दिलचस्प बात बाल्यावस्था में मानसिक विकारों के बोझ में सुधार की धीमी गति और देश के कम विकसित राज्यों में आचरण संबंधी विकार है जिसकी ठीक से जांच-पड़ताल किए जाने की जरूरत है। इस अध्ययन ने मेरे इस विश्वास को पुष्ट किया है कि अधिकांश व्याधियों की जड़ आत्म-ग्लानि, क्रोध या अस्त-व्यस्तता जनित तनाव ही है और हमें एक समाज के रूप में आगे बढ़कर इसके इलाज के लिए काम करने की आवश्यकता है। समस्या यह है कि चिकित्सा विज्ञान के पास इसका कोई पक्का इलाज नहीं है और इसके लिए जिस जानकारी की आवश्यकता है वह देश में कम ही लोगों के पास है। मुझे खुशी है कि बंगलुरू के अनुभव के बाद अब अन्य शहरों में भी हैपिनेस क्लब बनने शुरू हो गए हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि अंततः हम आत्म-ग्लानि, क्रोध और तनाव से मुक्ति की ओर मजबूत कदम बढ़ा सकेंगे और खुशियों का वह खजाना पा लेंगे जिसके हम अधिकारी हैं। 

ईमेलः indiatotal.features@gmail 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App