धन-शक्ति का खेल बनी राजनीति
प्रो. एनके सिंह
अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार
यह आदर्शवाद व विचारधारा के अंत का एक विचित्र प्रदर्शन है, जब इस तरह की असमान सोच वाले लोग पिछली पृष्ठभूमि को भूलकर केवल भौतिक लाभ के लिए एक साझे राजनीतिक दुश्मन को हराने के लिए इकट्ठा होते हैं। कोई भी विचारधारा केवल धन शक्ति नहीं है, जो नए भौतिकवादी लक्ष्यों के साथ पार्टियों को प्रभावित करती है। मेरे लिए सबसे बड़ा नुकसान आशा की क्षति है, जो मुझे मोदी से थी…
महान ब्रिटिश दार्शनिक बर्ट्रेंड रसेल ने एक बार टिप्पणी की थी कि कला, वास्तुकला बन गई है, संस्कृति को कृषि के रूप में छोड़ दिया गया है और अन्य कोई विचारधारा नहीं बची है। हम दिन-प्रतिदिन भौतिकवादी होते जा रहे हैं, यह हम जानते हैं लेकिन महसूस नहीं करते हैं। मैं केवल यह कह सकता हूं कि भारतीय राजनीति में आज कोई विचारधारा नहीं बची है, केवल धन-शक्ति को छोड़कर। हम विचारधारा से युक्त कब थे? वर्तमान समय में निश्चित रूप से जब हम आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे, तो हमारे पास देशभक्ति और स्वतंत्रता की विचारधारा थी, जो पुरुषों और महिलाओं को राष्ट्रीय हित के लिए अपने हित का त्याग करने के लिए प्रेरित करती थी। स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद जब राष्ट्रीय सेवा की आवश्यकता थी, तो हमने राष्ट्र द्वारा पोषित मूल्यों के लिए अपने स्वार्थ छोड़ने की भावना प्रदर्शित की।
लेकिन दुख की बात है कि देश का विभाजन तब हुआ जब मानवता ने अपने पोषित मूल्यों का त्याग किया। लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए और विक्षिप्त सांप्रदायिक संघर्ष में इनसान की मृत्यु होने लगी। राष्ट्रवाद, स्वतंत्रता और सामाजिक भलाई की विचारधारा कहीं नहीं थी। विभाजन उन लोगों की पशु वृत्ति को बंधन से मुक्त कर देता है जो जीवित रहने और लूटने की पागल भीड़ में हैं। इनसान को मारने और लूटने के लिए दौड़ाया गया। सच्चाई और अच्छाई को धूल में मिला दिया गया। सभी संबंधों और वफादारी का अवमूल्यन हो गया। इस तरह के एक विनाशकारी भ्रष्टाचार के बाद एक मौका आया जब गांधी जी ने दूसरों का दर्द समझने के लिए ‘पीर पराई जाने रे’ को बयां किया।
इसकी अवहेलना होने के कारण उन्होंने मानवीय पीड़ाओं की देखभाल और संवेदनशीलता को पुनर्जीवित करने के लिए इस उक्ति को चरितार्थ किया। किसी ने भी उनकी बात पर आचरण नहीं किया क्योंकि उनकी अपनी पार्टी ने ही देश को विभाजित करने के लिए जिन्ना के साथ समझौता किया था और स्वराज की उनकी अवधारणा को अराजकतावाद के रूप में देखा गया। जब तक हम सन् 2000 तक पहुंचे, तब तक भ्रष्टाचार और धोखेबाजी राष्ट्रीय पहचान के उत्कर्ष तक पहुंच चुके थे। मेरा बेटा जो सेना में था और कारगिल का युद्ध लड़ा था, उचित पुरस्कार न मिलने की स्थिति में निराश हो गया।
वह कनाडा में बसने के लिए और अधिक ईमानदार वातावरण की तलाश में जुट गया और अलविदा नोट में वह यह लिखने के लिए मजबूर हो गया कि ‘मोदी आओ और यहां फैली गंदगी को साफ करो’। उस समय मोदी का चुनाव होना बाकी था और उसके बाद वह पीएम बने। बाद में मोदी ने ऐसे लाखों लोगों की इच्छाओं के अनुरूप विजय प्राप्त की, जिन्होंने सोचा था कि वह अच्छे दिनों की शुरूआत करेंगे, लेकिन अफसोस कि पूर्व और महाराष्ट्र के ताजा चुनावों में राजनीतिक जोड़-तोड़ के साथ अब जो कुछ हुआ है, उससे यह उम्मीद धुंधली हुई है कि देश सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। जब वह इस तरह की भ्रष्ट गड़बड़ी के मुहाने पर पहुंचे, तब तक भारत काफी कुछ बदल चुका था और हमें लगा कि अब सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिए कोई मसीहा आ गया है। उनके पास एक महान नेता की पूरी साख थी और देश को भ्रष्टाचार और विश्वासघाती राजनीति से मुक्त करने के लिए सही कदम उठाए गए। महाराष्ट्र में पार्टी की पहली चाल ने मोदी और उनके लोगों को सही सोच वाले लोगों की नजर में ऊंचा कर दिया। उन्होंने कहा कि हमें अपने साथी से धोखा मिला है और हमारे पास कोई भी बहुमत नहीं है। यह ईमानदार स्वीकारोक्ति थी। हमने प्रशंसा की क्योंकि हमने सोचा कि बहुमत जुटाने के लिए अब खरीद-फरोख्त नहीं होगी। बाद में मोदी को कोई श्रेय नहीं गया। भाजपा ने बेहतर किया है जैसे कि हम उनकी जीती 105 सीटों का विश्लेषण करते हैं, जिसमें उनका लगभग 70 प्रतिशत का स्ट्राइक रेट था।
कांग्रेस का स्ट्राइक रेट मात्र 29.9 प्रतिशत था, जबकि शिवसेना का 45 प्रतिशत था। भाजपा ने शिवसेना के साथ सीटें साझा कीं और 2014 के पिछले चुनाव की तुलना में यह कम संख्या थी जब वे सभी सीटों पर अलग-अलग लड़े थे। यह एक विश्वसनीय प्रदर्शन था और दुख की बात नहीं है। यदि उन्होंने राष्ट्रपति शासन के बाद फिर से लड़ने का विकल्प लिया होता तो वे निर्णायक रूप से जीत जाते, लेकिन सत्ता के लिए लड़ाई शक्ति और धन के गठजोड़ के साथ लड़ी जा रही थी। शरद पवार ने अपनी शर्तों पर समझौता करने के लिए कुछ प्रलोभन दिए, किंतु मोदी ने इनकार कर दिया और यह फिर से सराहनीय था। लेकिन अजित पवार के साथ गठजोड़ करना उपयुक्त नहीं था और इसके कारण अपमान के सबसे शर्मनाक कृत्य का सामना करना पड़ा जो सभी के लिए एक अपमानजनक बात थी।
यह आदर्शवाद व विचारधारा के अंत का एक विचित्र प्रदर्शन है, जब इस तरह की असमान सोच वाले लोग पिछली पृष्ठभूमि को भूलकर केवल भौतिक लाभ के लिए एक साझे राजनीतिक दुश्मन को हराने के लिए इकट्ठा होते हैं। कोई भी विचारधारा केवल धन शक्ति नहीं है, जो नए भौतिकवादी लक्ष्यों के साथ पार्टियों को प्रभावित करती है। मेरे लिए सबसे बड़ा नुकसान आशा की क्षति है, जो मुझे मोदी से थी। मेरे जैसे हजारों स्वतंत्र लेखक या पाठक जिन्होंने मोदी को भ्रष्टाचार से मुक्त माना, उनकी आशाएं अब धूमिल होने लगी हैं।
क्या मोदी के लिए यह संभव होगा कि वह आदर्शवादी विचारधारा, भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन, राष्ट्रवाद और सामूहिक आध्यात्मिक व यौगिक लक्ष्यों को प्राप्त कर पाएंगे तथा लोगों का विश्वास बहाल कर पाएंगे? मुझे अब भी आशा है कि मोदी के नेतृत्व में अच्छे दिन जरूर आएंगे।
ई-मेलः singhnk7@gmail.com
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