पर्वत सेन ने लगाया था पुरोहित पर झूठा आरोप

By: Dec 18th, 2019 12:23 am

पर्वत सेन ने अपने एक पुरोहित पर झूठा आरोप लगाया कि उसका अनुचित संबंध एक बांदी (दासी) से है। पुरोहित ने अपनी निर्दोषिता के बारे में राजा से कहा। फिर भी वह अपमान को सहन न कर सका और उसने आत्महत्या कर ली। इसके पश्चात राजा का स्वास्थ्य गिरने लगा। राजा ने इसे ब्राह्मण का शाप समझ कर उसके परिवार को कुल्लू में ‘बजीरी लंग’  और ‘सारी’ के भाग भूमि दान के रूप में दे दिए…

गतांक से आगे … 

पर्वत सेन (द्वितीय) (लगभग 1500ई.)

 पर्वत सेन ने अपने एक पुरोहित पर झूठा आरोप लगाया कि उसका अनुचित संबंध एक बांदी (दासी) से है। पुरोहित ने अपनी निर्दोषिता के बारे में राजा से कहा। फिर भी वह अपमान को सहन न कर सका और उसने आत्महत्या कर ली। इसके पश्चात राजा का स्वास्थ्य गिरने लगा। राजा ने इसे ब्राह्मण का शाप समझ कर उसके परिवार को कुल्लू में ‘बजीरी लंग’  और ‘सारी’ के भाग भूमि दान के रूप में दे दिए। परंतु उसकी मृत्यु जल्दी ही हो गई। बाद में उस पुरोहित के वंशज स्वतंत्र हो गए और सरवरी घाटी में ‘लागवती राजा’  के नाम से जाने -जाने लगे। इन्होंने अपने राज्य को रायसेन से लेकर बजौरा तक बढ़ा लिया था। अंत में कुल्लू के राजा जगत ने 1650 ई. में उन्हें परास्त करके अपने राज्य में मिला लिया।

करतार सेन (1520 ई.)

करतार सेन लौहार में पुरोहित की आत्महत्या को अशुभ समझ कर अपनी राजधानी को वहां से बदलकर तारामाड़ी वन के ऊपर ले गया। उसके नीचे उसने एक नगर बसाया जिसका नाम ‘करतारपुर’  रखा और अब यह स्थान ‘पुराना नगर’ कहलाता है। उसने 28 वर्ष तक राज्य किया। उसकी रानी का संबंध ‘जसवां’ रियासत के राज परिवार से था।

अर्जुन सेन (लगभग 1540 ई.)

 कुल्लू के राजा बहादुर सिंह का समकालीन था। उस समय ‘बजीरी रूपी’ का क्षेत्र संकेत के अधीन था। एक बार बजीरी रूपी के जमींदार अर्जुन सेन के पास कुछ प्रार्थना लेकर आए। उसने उनको कई दिनों तक प्रतिक्षा में रखा। अंत में जब वह उनको मिलने बाहर आया तो उसने कटू शब्दों में कहा कि रूपी के कौवे क्यों आए हैं और उनकी प्रार्थना ठुकरा दी। इस व्यवहार से रुष्ट होकर वे लोग वापस चले गए और मार्ग में आपस में परामर्श करके कुल्लू के राजा बहादुर सिंह के पास चले गए। बहादुर सिंह ने उन्हें बड़े आदर सत्कार से अपने पास बैठाया। इस सम्मान से वे लोग प्रसन्न हुए और उन्होंने बहादुर सिंह से कहा कि वे पहले भी कुल्लू राजा की प्रजा थी और अब भी सुकेत से छुटकारा पाकर वापस कुल्लू के साथ रहना चाहते हैं। इस प्रकार ये रूपी का भाग अर्जुन सेन के आधिपत्य से निकल कर वापस कुल्लू में मिल गया। अर्जुन सेन के दुर्व्यवहार से अन्य छोटे-छोटे सामंत, राणा व ठाकुर भी रुष्ट हो गए और उन्होंने विद्रोह कर दिया। इसी समय मंडी राज्य ने भी अपनी शक्ति को बढ़ाया होगा। इस राजा के समय से राज्य का बहुत-सा भाग सुकेत से सदा के लिए पृथक हो गया। लोगों में राजा के प्रति अंसतोष पनपने लगा।

उदय सेन (लगभग 1560 ई.)

उदय सेन ने अपने पिता के समय में सुकेत की हुई क्षति को दूर करने का बहुत प्रयत्न किया। उसने विद्रोही सामंतों का दमन करके अपने अधिकार में कर लिया।             

 


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