बैंकिंग व्यवस्था पर मंडराता संकट

By: Dec 24th, 2019 12:06 am

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

आईएलएफएस जैसी ही दूसरी विशालकाय कंपनी द्वारा मंदाकिनी नदी पर एक जल विद्युत परियोजना बनाई जा रही है। इस परियोजना का अध्ययन करने से पता लगा कि कंपनी द्वारा इस परियोजना को एक सहायक कंपनी के नाम से बनाया जा रहा है। इस प्रकार की सहायक कंपनियों को सब्सिडियरी कहा जाता है। इनके 100 प्रतिशत शेयर प्रमुख कंपनी के हाथ में होते हैं। इस कंपनी ने 100 से अधिक सहायक कंपनियां बना रखी हैं…

इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनांशियल सर्विसेज ‘आईएलएफएस’ द्वारा लिए गए फर्जी ऋणों से अभी देश की बैंकिंग व्यवस्था जूझ ही रही है। आगे और विकट समस्या उत्पन्न होती दिख रही है। आईएलएफएस जैसी ही दूसरी विशालकाय कंपनी द्वारा मंदाकिनी नदी पर एक जल विद्युत परियोजना बनाया जा रहा है। इस परियोजना के अध्ययन करने से पता लगा की कंपनी द्वारा इस परियोजना को एक सहायक कंपनी के नाम से बनाया जा रहा है। इस प्रकार की सहायक कंपनियों को सब्सिडियरी कहा जाता है। इनके 100 प्रतिशत शेयर प्रमुख कंपनी के हाथ में होते हैं। इस कंपनी ने 100 से अधिक सहायक कंपनियां बना रखी हैं। इन सहायक कंपनियों द्वारा बैंकों से भारी मात्रा में ऋण लिए जा रहे हैं। वर्ष 2018-2019 के अंत में इन सहायक कंपनियों द्वारा 71,600 करोड़ रुपए की विशाल रकम को देश के बैंकों से ऋण के रूप में लिया गया है। यह रकम 90,000 करोड़ रुपए के आईएलएफएस के ऋण के बराबर है। अतः जिस प्रकार आईएलएफएस के डूबने से पूरे देश की बैंकिंग व्यवस्था संकट में आ गई थी, उसी प्रकार इस कंपनी के डूबने से भी बिगड़ सकती है। इस कंपनी की कार्यविधि बड़ी रोचक है। सहायक कंपनियों द्वारा बैंक से ऋण लिए जाते हैं। फिर सहायक कंपनी अपनी ही प्रमुख कंपनी को ठेके देती है। ये ठेके ऊंचे दामों में दिए जाते हैं। जैसे पिता द्वारा घाटे में चलने वाली दुकान को बेटे के नाम हस्तांतरित कर दिया जाए और दुकान को चलाने का ठेका बेटे द्वारा पिता को ऊंचे दाम में दे दिया जाए। ऐसा होने पर बेटे को घाटा लगेगा चूंकि ऊंचे दाम पर पिता को ठेका दिया और पिता को लाभ होगा क्योंकि उसे ऊंचे दाम पर ठेके मिले। इसी प्रकार इस विशालकाय कंपनी ने घाते में चलने वाली इस परियोजना को सब्सिडियरी के नाम हस्तांतरित कर दिया और परियोजना बनाने का ठेका सब्सिडियरी द्वारा अपने ही मालिक प्रमुख कंपनी को ऊंचे दाम में दिया गया।

इस प्रकार सब्सिडियरी घाटा लग रहा है चूंकि ऊंचे दाम पर प्रमुख कंपनी को ठेका दिया गया है और प्रमुख कंपनी को लाभ हो रहा है क्योंकि उसे ऊंचे दाम पर ठेके मिल रहे हैं। इनमें एक सहायक कंपनी उत्तराखंड में उपरोक्त जलविद्युत परियोजना बना रही है। इस परियोजना को बनाने के लिए लिए गए लगभग 10 बिजली के कनेक्शनों में जून 2019 में कुल 1465 हजार करोड़ यूनिट की बिजली की खपत हुई। इसमें केवल 18 हजार यूनिट सहायक कंपनी द्वारा खपत की गई जोकि कागजों पर इस परियोजना को बना रही है, लेकिन अपनी सहायक कंपनी द्वारा दिए गए ठेकेदार के रूप में प्रमुख कंपनी ने शेष 98 प्रतिशत बिजली की खपत की। इससे पता लगता है कि प्रमुख कंपनी स्वयं ही इस परियोजना को बना रही है चूंकि 98 प्रतिशत बिजली उसके द्वारा ही खपत की जा रही है। सहायक कंपनी की एक कृत्रिम परत बीच में अनायास ही डाल दी गई है। कारण यह की परियोजना को भारी घटा लग रहा है। इस घाटे को छिपाने के लिए इसे सहायक कंपनी के नाम से बनाया जा रहा है जिससे प्रमुख कंपनी के खातों में घटा न दिखे। जैसे पिता ही घाटे में दुकान चलाए, लेकिन बेटे के नाम दुकान कर दे जिससे कि दुकान के घाटे को छुपाया जा सके। इस जलविद्युत परियोजना की संपति लगभग 600 करोड़ रुपए की है।

2013 आपदा में इसकी क्षति हुई और वर्तमान में इसकी संपत्ति का मूल्य 2000 करोड़ रुपए दिखाया जा रहा है, लेकिन आपदा में हुई क्षति की मरम्मत में हुए खर्च से संपत्ति का मूल्य नहीं बढ़ता है। जैसे कार यदि दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो उसकी मरम्मत में खर्च करना वाजिब होता है, लेकिन इस खर्च के बावजूद कार की कीमत में गिरावट ही आती है, उसमे वृद्धि नही होती है। इसी प्रकार परियोजना में आपदा से नुकसान होने पर मरम्मत में किए गए खर्च वाजिब हो सकते हैं, लेकिन इन खर्च से परियोजना की पूंजी के मूल्य में वृद्धि नही होती है। परियोजना को 2013 की आपदा में घाटा हुआ, लेकिन परियोजना द्वारा अपनी ही प्रमुख कंपनी को मरम्मत करने के लिए बढ़ा-चढ़ा कर ठेके दिए गए जिससे प्रमुख कंपनी के लाभ हुआ। यही परिस्थिति इस विशालकाय कंपनी के अन्य सहायक कंपनियों में भी दिखती है।

प्रमुख कंपनी द्वारा वर्ष 2019 में 9200 करोड़ रूपए का लाभ कमाया गया जबकि ऋण मात्र 2400 करोड़ रुपए का लिया गया। तुलना में इसकी तमाम सहायक कंपनियों का कुल लाभ मात्र 5400 करोड़ रुपय था जबकि इनके द्वारा बैंकों से 71600 करोड़ रुपए की विशाल राशि का ऋण लिया गया। साफ दिखता है कि प्रमुख कंपनी द्वारा लाभ अधिक कमाया गया और ऋण कम लिया गया जबकि सहायक कंपनियों का लाभ न्यून कमाया गया परंतु इनके द्वारा बैंकों से विशाल ऋण लिया गया। वास्तु स्थिति यह है कि सहायक कंपनियां बैंकों से ऋण ले रही है और स्वयं न्यून लाभ कमा रही हैं। लिए गए ऋण की रकम को वे ठेकों के माध्यम से अपनी ही प्रमुख कंपनी को हस्तांतरित कर रही हैं। प्रमुख कंपनी द्वारा इन्ही ठेकों से हुए लाभ को दिखाकर अपने को लाभप्रद बताया जा रहा है। प्रमुख कंपनी की इस ऊपरी सुद्रिड़ता को देखकर बैंकों द्वारा सहायक कंपनियों को ऋण दिए जा रहे हैं। इस प्रक्रिया में बैंक छले जा रहे हैं। प्रमुख और सहायक कंपनियों को जोड़ दिया जाए तो सम्मलित कंपनी को न्यून लाभ ही हो रहा है, लेकिन सहायक कंपनियों के घाटों को छिपा कर और प्रमुख कंपनी में बढ़े-चढ़े लाभ को दिखाकर सहायक कंपनियों को बैंकों द्वारा ऋण दिलाया जा रहा है। कुल परिस्थिति इस प्रकार है कि पिता ने घाटे में चलने वाली दुकान को बेटे के नाम कर दिया। फिर पिता की गरंटी पर बेटे ने बैंक से ऋण लिए। बेटे ने अपने ही पिता को दुकान को चलाने का ठेका दे दिया। दुकान घाटे में चलती रही, लेकिन पिता को लाभ हुआ क्योंकि उसे ऊचें दाम पर ठेके मिले। बेटे को घाटा हुआ, लेकिन बैंकों की नजर में वह घाटा नहीं दिखता है, क्योंकि ऋण को पिता द्वारा गरंटी दी गई है। जाहिर होगा घाटे में चलने वाली ऐसी दुकान ज्यादा दिन नहीं टिकती है जैसा की आईएलएफएस में हुआ है। ऐसी तमाम कंपनियों का भी किसी न किसी दिन पर्दाफाश हो जाएगा और हमारे बैंकों पर दोबारा विशाल संकट आएगा। अतः सरकार को चाहिए समय रहते इस प्रकार की विशाल कंपनियों द्वारा कृत्रिम परत बनाकर बैंकों से ऋण लेने की विस्तृत जाचं कराए और इस फर्जी व्यवस्था पर रोक लगाए।

ई-मेलः  bharatjj@gmail.com


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