सतलुज नदी के किनारे फैली घाटियों की श्रृंखला ही सतलुज घाटी है

By: Dec 18th, 2019 12:23 am

सतलुज नदी के किनारे फैली इन घाटियों की श्रृंखला को ही सतलुज घाटी के नाम से जाना जाता है। यह घाटी जांसकर, वृहद हिमालय, पीरपंजाल, धौलाधार पर्वत श्रृंखला को काटती हुई पंजाब के मैदानों तक पहुंचती है। बिलासपुर, रामपुर, भावा आदि  प्रमुख नगर जो इस नदी के किनारे पर बसे हैं, इस घाटी के प्रमुख स्थल हैं…

गतांक से आगे …

सतलुज घाटी

सतलुज नदी के तिब्बत से भारतीय भूमि में ‘शिपकिला’ नामक स्थान पर प्रवेश करते ही यह घाटी शुरू हो जाती है और बिलासपुर तक फैली हुई है। सतलुज नदी के किनारे फैली इन घाटियों की श्रृंखला को ही सतलुज घाटी के नाम से जाना जाता है। यह घाटी जांसकर, वृहद हिमालय, पीरपंजाल, धौलाधार पर्वत श्रंृखला को काटती हुई पंजाब के मैदानों तक पहुंचती है। बिलासपुर, रामपुर, भावा आदि  प्रमुख नगर जो इस नदी के किनारे पर बसे हैं, इस घाटी के प्रमुख स्थल हैं।

सतलुज घाटी वर्तमान में हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है, जहां कई जल विद्युत परियोजनाएं लगाई जा रही हैं। सतलुज के दोनों ओर का क्षेत्र कृषि प्रधान है। यहां गाय, भैंस, बैल, भेड़-बकरी सभी प्रकार के पशु लोग पालते हैं। सतलुज के पास बसे ग्रामों के लोग आज भी जरसी गाय और कृत्रिम गर्भाधान द्वारा ब्याही हुई गाय का दूध-घी देवपूजा अनुष्ठान आदि में प्रयोग में लाते हैं। चीता, भालू जैसे हिंसक जीव भी सीधे सादे डरपोक होते हैं। शशक जैसे चालाक प्राणी भी यहां रहते हैं।  सर्प, गोधा, सराल जैसे लघु से भीमकाय तक के सरीसृप भी यहां पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। ऊपर के क्षेत्र में कस्तूरी मृग भी रहते हैं। मत्सय सर्वत्र उपलब्ध है। शतद्रु के साथ लगने वाले ऊंचे पहाड़ों पर चीड़, देवदार, रई, कैल आदि वृक्ष भी क नहीं और इसी के किनारे निम्न क्षेत्रों में तून, चूई, खैर, पलाश और किंशुक (ढाक) शुहर के पेड़ भी हैं। दुग्धमय पशुओं के चारे से संबंधित खड़क, खड़की और ब्यूहल के वृक्ष भी यहां सतलुज के निम्न क्षेत्रों में तत्तापानी तक प्राप्त होते हैं।

जंगली फल भी यहां इस घाटी के इधर उधर होते हैं। घांई , कांगू आदि मीठे और स्वादु फल भी होते हैं, बेर भी यहां प्राप्त होते हैं। ऋषि मुनि यहां साधना करते समय अनादि काल से इनका प्रयोग करते रहे हैं। इनमें आज के सेब, नाशपाती और अन्य कई विदेशी जातियों के फलों से कहीं अधिक स्वाद और शक्ति विद्यमान हे। शतदु्र के आसपास मयूर, तीतर, बटेर, चिडि़यां, टिटिभ, मटोलड़ी, जंगली मुर्गे, मोनाल, कठफोड़े, कौए आदि अनेक प्रकार के पक्षी विचरण करते हैं।


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