सतलुज पार करके किया था गोरखों ने कांगड़ा पर आक्रमण

By: Dec 18th, 2019 12:23 am

अप्रैल 1804 ई. में गोरखों ने सतलुज पार करके कांगड़ा पर आक्रमण किया। कहलूर का राजा महान चंद भी उनके साथ था। उधर से कांगड़ा के सैनिक दूसरी ओर नदी पार करके आगे बढ़े। हिंदूर के राजा राम सरन सिंह ने भी अपने सैनिकों को कांगड़ा की सहायता के लिए भेजा…

गतांक से आगे …

राम सरन सिंह (1756-1761)

इसके बदले में गोरखों ने राजा को रामशहर के किले में तीन वर्ष तक घेरे रखा। तीन वर्ष के पश्चात राजा राम सरन सिंह वहां से निकल कर होशियारपुर के पास बसालीतनी या बासल में रहने लगा। यहां उसने दस वर्ष बिताए। कुछ लोग भी नालागढ़ छोड़कर राजा के पास चले गए। गोरखों ने हिंदूर के सारे पहाड़ी क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। राजा के पास केवल मैदानी भाग तथा बद्दी और गुलााखाल के किले रहे। राम सरन सिंह के नालागढ़ छोड़ने के पश्चात गोरखों ने हिंदूर द्वारा कहलूर के हथियार इलाके महान चंद को लौटा दिए और बारह ठकुराइयों का आधिपत्य भी उसे वापस कर दिया।अप्रैल 1804 ई. में गोरखों ने सतलुज पार करके कांगड़ा पर आक्रमण किया। कहलूर का राजा महान चंद भी उनके साथ था। उधर से कांगड़ा के सैनिक दूसरी ओर नदी पार करके आगे बढ़े। हिंदूर के राजा राम सरन सिंह ने भी अपने सैनिकों को कांगड़ा की सहायता के लिए भेजा। उसके कुछ सैनिकों ने नालागढ़ और रामगढ़ में स्थित गोरखा सैनिकों पर आक्रमण किए। यह देखकर अमरसिंह थापा ने अन्य सैनिकों को वापस नालागढ़ भेज दिया। शेष गौरखा सेना कांगड़ा की और बढ़ी। बाड़ा हाटी के पास कांगड़ा की सेना को हार खानी पड़ी। संसार चंद ने कांगड़ा किला में शरण ली और जुलाई 1806 ई. में गोरखों ने उसे घेर लिया। यह घेराव पूरे तीन वर्ष तक चलता रहा। इस अवधि में राजा सरन सिंह ने अपने लोगों तथा बारह ठकुराइयों को गारेखों के विरुद्ध भड़काया और उन्होंने गोरखों को खाद्य सामग्री देना बंद कर दी। जब गारेखों ने बाघल पर अधिकार किया और ‘अर्की’ को अपनी राजधानी बनाया तो उस समय बाघल के राजा जगत सिंह ने भाग कर नालागढ़ में शरण ली। संभवतः यह भी रामसरन सिंह के साथ पलासी में रहा होगा।1810 ई. में अगर सिंह थापा ने सरहिंद के मैदानी भाग के छह गांवों पर कब्जा करने की इच्छा प्रकट की। उसका कहना था कि यह गांव सिरमौर और हिंदूर के है और राज्य उसके आधिपत्य में है। 1813 ई. के मध्य में गोरखों  ने छह गांवों पर अधिकार कर लिया। ये गांव पटियाला और हिंदूर के थे। वह पिंजौर, नारायणगढ़ और लाहुरपुर पर यह कहकर अपना अधिकार जताने लगा के ये क्षेत्र उसके अधीनस्थ सिरमौर और हिंदूर के हैं। अंग्रेजी सरकार ने गोरखा सरदार अमर सिंह थापा से इन गांव को वापस करने के लिए कहा। परंतु सरदार ने गोरखा सरदार अमर सिंह थापा से इन गांव को वापस करने को कहा। परंतु सरदार ने कर्नल औक्टरलोनी को साफ-साफ कह दिया कि उसका इन गांवों को वापस करने का कोई इरादा नहीं है। 3 सितंबर, 1814 ई. को औक्टरलोनी ने घोषणा कर दी कि चूंकि नालागढ़ में स्थित गोरखा सैनिकों पहाड़ों से कोई वस्तु मैदानी भाग में नहीं आने दे रहे हैं।


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