सिने पर्यटन की परिभाषा में

By: Dec 6th, 2019 12:05 am

अमिताभ बच्चन का हिमाचल आना सिने पर्यटन की संभावनाओं का कद बढ़ा देता है और जब स्वयं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर उनके साथ मुलाकात करते हैं, तो प्रदेश की इच्छा शक्ति का मजबूत पक्ष सामने आ जाता है। इसी बीच या इससे पहले उस अनुभव का एहसास बहुत कुछ कहता है, जो चंडीगढ़ से मनाली तक के सफर में बिग बी को उम्रदराज होने की चुनौती देता है। बेशक हिमाचल वीआईपी अतिथियों का पसंदीदा राज्य रहा है,लेकिन ऐसी गतिविधियों के लायक हमारी व्यवस्था नहीं है। मसला कनेक्टिविटी से नगर नियोजन या पर्यटक सुविधाओं तक की समीक्षा से जुड़ता है। जम्मू-कश्मीर के हालात ने हिमाचल को जो अवसर दिया, उसका दोहन करते हुए हम भूल गए कि इसके अर्थों में भविष्य का संरक्षण आवश्यक है। अगर एनजीटी सख्त न होता, हमें तो यह भी पता नहीं  कि रोहतांग पर हम कितना कहर बरपा रहे हैं। कमोबेश इन्हीं स्थितियों में कितनी घाटियों और कितनी दृश्यावलियां उजाड़कर हम पर्यटन उद्योग की मारामारी का शिकार हो गए। पुरानी फिल्मों के पर्दे पर हिमाचल के जो स्थल अतीत में नैसर्गिक रहे, वे आज कंक्रीट के टीले बन चुके हैं। पूरे हिमाचल का नियोजन अगर नहीं होगा, तो फिल्म सिटी भी पत्थरों की इबारत में क्या कर पाएगी। यह दीगर है कि वर्तमान सरकार अपनी निवेश नीति के लक्ष्यों में फिल्म सिटी जैसे संकल्पों में बालीवुड की राह देख रही है,जबकि सही अर्थों में सिने पर्यटन को समझना होगा। फिल्म सिटी की क्षमता में रोजगार, पर्यटन, मनोरंजन व प्रशिक्षण के कई रास्ते विकसित हो सकते हैं, बशर्ते इसे महज निवेश न समझा जाए। हिमाचल ने अपनी फिल्म नीति के तहत कुछ पन्ने अवश्य ही संवारे हैं, लेकिन सारे कलाक्षेत्र को इस तरह के अभियान से जोड़ने की परिपाटी विकसित करनी होगी। स्थानीय स्तर पर सिने पर्यटन की परिभाषा महज फिल्म शूटिंग नहीं है और न ही इसे केवल फिल्म सिटी तक ही सीमित होकर देखा जा सकता है। हिमाचल में स्थित तमाम बांधों को अगर हम फिल्म शूटिंग आकर्षण से जोड़ना चाहते हैं, तो उसकी एक खास व्यवस्था, सुविधाओं में इजाफा तथा अधोसंरचना का खाका पुख्ता करना होगा। प्रदेश भर में अगर मनोरंजन पार्क, बोटैनिकल गार्डन या वाटर पार्क विकसित करें, तो फिल्म से टीवी तक की शूटिंग के अनेक आयाम स्थापित होते हैं। कमोबेश हिमाचल के हर डाक बंगले में इतना सामर्थ्य तो है कि फिल्म उद्योग के लिए एक से एक बढि़या एक संपत्तियां मौजूद हैं, लेकिन प्रदेश सरकार में निजी फिल्म को-आर्डिनेटर की तरह कोई संपर्क सूत्र नहीं। अगर मनाली में फिल्म शूटिंग हो रही है या प्रदेश की विभिन्न लोकेशन पर इस तरह की गतिविधियां बढ़ी हैं, तो इसके पीछे चंद लोगों के निजी प्रयास हैं, जो सरकारी विभागों के हुजूम से बेहतर व परिणाम मूलक साबित हुए हैं। बेशक सरकार प्रयास कर रही है कि सिने पर्यटन के पांव हिमाचल में निवेश मंसूबों की मंजिल तक आएं, फिर भी इस तरह की सृजनशीलता को अति कोमल स्पर्श तथा खास तरह की संवेदनशीलता चाहिए। फिल्म सीटी या स्टूडियो के निर्माण तक पहुंची इरादों की मंजिल से पहले जिन राहों से बालीवुड गुजरा है, उन्हें तसदीक करना होगा। प्रदेश के कई स्थल अपने विविध आकर्षणों, धरोहर मूल्यों, वास्तु शैली, जनजातीय पृष्ठभूमि, प्राकृतिक नजारों, वन, कृषि व बागबानी संपदा के कारण बालीवुड के कैमरे को निमंत्रण देते रहे हैं। ऐसे स्थलों का संरक्षण लाजिमी तौर पर सिने पर्यटन को मजबूत करेगा। ऐसे आकर्षणों को सूचीबद्ध करने के अलावा लोक कलाकारों तथा रंगमंच गतिविधियों को आसरा देकर, हिमाचल फिल्म सिटी की अवधारणा के साथ-साथ सृजन निधि को प्रदेश बेहतरीन क्षमता के साथ पेश कर पाएगा। कला, भाषा एवं संस्कृति जैसे विभागों को हिमाचल के कलात्मक पक्ष का प्रचार-प्रसार कुछ इस तरह करना चाहिए कि जब फिल्म मेकर यहां आएं तो, उनकी यहां की प्रतिभा व सांस्कृतिक मूल्यों से बहुत कुछ हासिल करने की ललक भी बढ़ जाए। 


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