अर्थव्यवस्था की चुनौतियां

By: Jan 9th, 2020 12:06 am

पीके खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

मोदी की कल्पनाशीलता और वाक्पटुता का आलम यह है कि विपक्षी दलों को कुछ भी सूझता ही नहीं और मोदी विकेट पर विकेट लिए जा रहे हैं या रन पर रन बनाए जा रहे हैं। विपक्षी दलों के विकेट गिर रहे हैं और मोदी रन लेते चल रहे हैं। नोटबंदी एक स्पष्ट असफलता थी। दरअसल इसे असफलता कहना भी गलत है, यह एक ऐसी चालाकी थी जिसे आम आदमी समझ ही नहीं पाया…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक खासियत सब जानते हैं। वे हर उपलब्धि का श्रेय लेना जानते हैं। मजेदार बात तो यह है कि ऐसी घटनाएं भी जिन पर अन्य सरकारें सफाइयां देती रह जातीं, मोदी का कल्पनाशील दिमाग उनकी भी व्याख्या इस ढंग से करता है कि उनके समर्थक उसे उनकी उपलब्धि मान लेते हैं। मोदी की कल्पनाशीलता और वाक्पटुता का आलम यह है कि विपक्षी दलों को कुछ भी सूझता ही नहीं और मोदी विकेट पर विकेट लिए जा रहे हैं या रन पर रन बनाए जा रहे हैं। विपक्षी दलों के विकेट गिर रहे हैं और मोदी रन लेते चल रहे हैं। नोटबंदी एक स्पष्ट असफलता थी। दरअसल इसे असफलता कहना भी गलत है, यह एक ऐसी चालाकी थी जिसे आम आदमी समझ ही नहीं पाया। हमारा देश विकासशील देश इसीलिए कहलाता है क्योंकि यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी है, सुविधाओं की कमी है, और कुल आबादी के अधिकांश लोग अशिक्षित और गरीब हैं। वंचितों, गरीबों को यह लगा कि नोटबंदी के माध्यम से मोदी ने अमीरों के गले पर हाथ डाला है। बस इसी एक तर्क के सहारे मोदी नोटबंदी की सारी खामियों से मुक्त हो गए। न काला धन निकला, न नकली नोट छपने बंद हुए, हां एक अकेले राजनीतिक दल की संपत्ति में एकाएक उछाल आया, देश भर में उसके चमचमाते कार्यालय बन गए, उसके बड़े नेताओं में से कुछ की संपत्ति में बाढ़ सी आ गई। उसके बावजूद विपक्षी दल आज तक इसे मुद्दा नहीं बना पाए। मोदी की आईटी सेना के ह्वाट्सऐप संदेशों ने उनके समर्थकों को तो नए-नए तर्क  दे दिए। कुछ समय तक जीएसटी सरकार के गले की फांस बना रहा और गुजरात विधानसभा चुनावों के समय एक बार तो यह लग रहा था कि प्रधानमंत्री के गृह राज्य में भी भाजपा की सरकार नहीं रहेगी, तब अमित शाह को व्यक्तिगत रूप से वहां के व्यापारी वर्ग को विश्वास दिलाना पड़ा था कि उनकी बात सुनी जाएगी और सरकार ने फटाफट जीएसटी के नियमों में कई परिवर्तन किए।

पिछले कुछ समय में एक के बाद एक राज्य भाजपा के हाथ से निकला है, लेकिन उसके बावजूद ऐसा नहीं लगता कि विपक्ष की विश्वसनीयता में कुछ रंग चढ़ा है। विपक्ष आज भी बेढंगा और बेरंगा ही है। विश्वसनीयता अब भी विपक्ष की सबसे बड़ी चुनौती है। आम आदमी के लिए नया साल एक साथ कई झटके दे रहा है। रसोई गैस के दाम बढ़ गए हैं, रेल यात्रा महंगी हो गई है। बीते 40 महीनों में महंगाई दर इस समय सबसे ज्यादा है। मोटा अनाज भी महंगा हो गया है और आम आदमी जिन 22 खाद्य पदार्थों का उपभोग सबसे ज्यादा करता है उनमें से 20 के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार की सभी कोशिशें विफल होती नजर आ रही हैं और रिज़र्व बैंक के सभी कदम भी स्थिति संभाल पाने में असमर्थ हैं। इस सब के बावजूद मोदी का जलवा घटा नहीं है। आज भी वे सर्वाधिक विश्वसनीय नेता हैं। प्रचार के सारे साधन मोदी के गुलाम हैं, जो गुलाम नहीं हैं वे सिर्फ यह दिखाने के लिए हैं कि देखिए मीडिया तो सिर्फ हमारी आलोचना ही करेगा, और यह कि पूरा मीडिया वामपंथी सोच वाले लोगों से भरा पड़ा है, ये लोग देशहित की बात सोच ही नहीं सकते। मीडिया को गुलाम बना लेने के बावजूद अपनी हर असफलता के लिए मीडिया पर ही दोष मढ़ देने की कला सिर्फ  मोदी की महारत है। नौकरियां घट रही हैं, रोजगार सृजन की कोई कोशिश सिरे नहीं चढ़ रही है, व्यवसाय में निराशा का माहौल है, विदेशी निवेशक पीछे हट रहे हैं और ऐसे में सरकार पाकिस्तान-पाकिस्तान खेल रही है तथा हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मतभेद तीखे और गहरे करवाने के शगल में जुटी है। अर्थव्यवस्था किसी भी देश की रीढ़ होती है और अर्थव्यवस्था को लेकर कामचलता नजरिया नहीं अपनाया जा सकता, लेकिन खेद का विषय है कि मौजूदा सरकार समस्या की गहराई को जानने के बावजूद उसे हल करने से ज्यादा उसे ह्वाट्सऐप प्रचार का मुद्दा बना रही है, यही कारण है कि आम आदमी कहीं न कहीं सरकार से निराश हो रहा है और एक के बाद एक राज्य मोदी के हाथ से फिसल रहे हैं। होना तो यह चाहिए था कि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए व्यापक विमर्श होता, अर्थशास्त्रियों, अन्य विद्वानों और उद्योग संगठनों से खुली बातचीत होती, लेकिन सरकार अपनी ढफली बजाने में व्यस्त है, परिणाम यह है कि अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त है।

महंगाई का कारण कुछ भी बताया जाए, वह जमाखोरी हो या राज्य सरकारों की अनदेखी, केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकती। सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी से दूसरी कंपनी में निवेश का नाटक, लाभकारी कंपनियों को कुछ चुनिंदा पूंजीपतियों के हाथ में देने का खेल, काले धन पर रोक के नाम पर काले धन को सत्ताधारी दल तथा उसके चुनिंदा साथियों के लिए खोल देने का घृणित कारनामा जनता से छुपे हुए नहीं हैं। अब समय आ गया है कि मोदी सरकार सिर्फ  राम मंदिर और धर्म के नाम पर वोटों का बंटवारा कराने की जुगत के बजाय विकास के अपने ही एजेंडे पर वापिस आए, मिनिमम गवर्नमेंट के अपने नारे को चरितार्थ करे, शिक्षा क्षेत्र में निवेश बढ़ाए और इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए रास्ता तैयार करे। मनरेगा एक रिश्वत है, यह किसी समस्या का हल नहीं है। असंगठित क्षेत्र को कुछ समय के लिए कुछ ढील दी जाए ताकि वह अप्रशिक्षित श्रमिकों के लिए रोजगार पैदा करता रह सके। लब्बोलुआब यह कि चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार, इन्फ्रास्ट्रक्चर, अर्थव्यवस्था और विकास पर ध्यान देना चाहिए, राम मंदिर यदि बहुसंख्यक समाज की मांग है तो है, लेकिन वह अकेला ही मुद्दा नहीं है और राम मंदिर के नाम पर बाकी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियों की अनदेखी देश के लिए घातक ही होगी। इससे फर्क नहीं पड़ता कि हममें से कौन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थक है और कौन विरोधी। इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति भाजपा की नीतियों से सहमत है या असहमत है। इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि कोई भाजपा का सदस्य है, किसी विपक्षी दल का सदस्य है या राजनीति से एकदम दूर है। हां, इससे फर्क अवश्य पड़ता है कि देश की अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा क्या है और अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को दूर करने के लिए सरकार की नीतियां क्या हैं? आशा है कि आम जनता, विद्वजन और सरकार इस ओर ध्यान देंगे।

ईमेलः indiatotal.features@gmail  


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