किसके पूर्वजों ने बनाया ताज?

By: Jan 30th, 2020 12:07 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

नागरिकता का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि यह जन्म या उपार्जन पर आधारित है। उन लोगों की मदद के लिए धर्म को कानून में लाया गया था जो अन्य देशों में अपने अलग-अलग धर्म के कारण प्रताडि़त थे। इनमें हिंदू और अन्य गैर मुस्लिम शामिल हैं जो मुस्लिम देशों में रह रहे हैं। यह किसी भी नागरिक को उसकी नागरिकता से वंचित नहीं करता, बल्कि किसी को नागरिकता देने के उद्देश्य से बनाया गया कानून है। नागरिकता पर विवादों को जल्दी से निपटाने के लिए एक तंत्र विकसित करने की मांग की जा सकती है। एक ऐसा कानून जिसे संसद के दोनों सदनों ने बहुमत से पास किया हो, उसे गैर कानूनी कहना न्यायसंगत नहीं होगा…

‘हमारे पुरखों ने ताजमहल बनवाया था, तुम्हारे पुरखों ने इस देश के लिए क्या किया था?’ यह नागरिकता कानून के खिलाफ  विरोध कर रहे ओवैसी बंधुओं द्वारा पूछा गया सवाल है। मुसलमानों के सभी जीवित स्मारकों को राष्ट्र के लिए उनके योगदान के रूप में नामित करने के इस तरह के घमंडपूर्ण दावे ने उन लोगों के लिए कोई सम्मान नहीं जोड़ा है जो कानून के खिलाफ  विरोध कर रहे हैं। मैं चाहता हूं कि ऐसे कड़वे ‘तू-तू-मैं-मैं’ संसद के दोनों सदनों द्वारा हाल ही में बनाए गए कानून के खिलाफ  आंदोलन की विशेषता नहीं हो सकते। हिंदुओं के खिलाफ  मुस्लिम स्मारकों की बात करने से भारतीय इतिहास का एक बहुत ही दुखद और दर्दनाक अध्याय खुल जाएगा। मुगल जिन्होंने अपने स्मारकों का निर्माण किया है, वे लूटेरे और बलात्कारी थे। यहां तक कि शिया भी स्वीकार करते हैं कि यह हिंदू राष्ट्र है जिसने मुसलमानों को स्वीकार किया है और वाराणसी, मथुरा और अन्य शहरों के पवित्र शहरों के आसपास के क्षेत्रों में मस्जिदों को अनुमति दी है। क्या कोई मक्का या अन्य मुस्लिम पवित्र शहरों में हिंदू मंदिरों की कल्पना कर सकता है? जो लोग दावा करते हैं कि उन्होंने 800 वर्षों तक शासन किया है, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिंदू सभ्यता 5 से 7 हजार साल की है, जिसमें कोणार्क और खजुराहो या ममलपुरम और अन्य अनगिनत स्मारक जैसी इमारतें थीं। उत्तरी श्रेणियों में हिंदू सभ्यता को नष्ट कर दिया गया और मस्जिद बनाने के लिए मंदिर की ईंट या पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। जब नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला किया तो लूट और खून बहाना किसी की कल्पना से परे था। तीन घंटे की लड़ाई में मोहम्मद शाह ने नादिर शाह के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। 600 मिलियन का सोना और चांदी लूटा गया। दासों और महिलाओं को शहर से दूर ले जाया गया, लेकिन क्रूरता और नृशंस बलात्कार का सबसे बुरा प्रदर्शन दिल्ली में किया गया। नादिर शाह ने मुगलों द्वारा मारे गए अपने कुछ सैनिकों को पाया और उन्होंने सामान्य नरसंहार का आदेश दिया जिसका मतलब था कि महिलाओं, बच्चों और पुरुषों को पूरे शहर में उनके सिर धड़ से अलग कर दिए जाएं। नादिर शाह ने बहुत लूटपाट की और वह अपार धन अपने घर वापस ले गया। लूट का धन इतना अधिक था कि उसने तीन साल के लिए अपने नागरिकों से कर वसूल नहीं किया। नरसंहार और आक्रमण नादिर शाह की तलवार से उपजे थे, जिसमें दिल्ली के लाखों नागरिकों के सिर कलम किए गए। इसका परिणाम यह हुआ कि शहर में तेज प्रवाह से खून बहने लगा और शवों के निपटान में कर्मियों पर भारी बोझ पड़ रहा था। इतिहास की इस क्रूर घटना ने प्रदर्शित किया कि आक्रमणकारी असभ्य थे और वे मुसलमानों को भी नहीं छोड़ रहे थे। यह तर्क दिया जा सकता है कि वे शिया थे, लेकिन किसी ने भी शिया और सुन्नी के बीच अंतर नहीं किया। वे ईरानी और भारतीय थे। इसी तरह मुसलमान आज भारत में दूसरे देश से नहीं हैं, बल्कि वे भारतीय हैं। इसलिए भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान या तुर्की के बजाय भारत के साथ अपनी पहचान बनानी चाहिए। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ताजमहल मुमताज महल के प्यार या डर से पैदा हुआ था और इसका कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस ढांचे को बनाने में कितने हिंदुओं की मौत हुई थी। यह मुगल रानी के लिए एक स्मारक था, जो 14 बच्चों को जन्म देने के बाद मर गई थी। लेकिन यह कैसे भारतीय गौरव का प्रतीक है जब किसी ने भी नहीं देखा कि सभी परिपूर्ण स्मारक बरकरार थे क्योंकि शासक जीवित थे और ब्रिटिशों ने उन्हें नष्ट नहीं किया था। वास्तव में भारत के बचे हुए पुरातात्त्विक अवशेषों में कनिंघम जैसे ब्रिटिश पुरातत्त्वविदों का अस्तित्व है। हिमाचल में मसरूर मंदिर के लिए शोध करते समय यह पाया गया कि यह ब्रिटिश पुरातत्त्वविद हरग्रीव थे जिन्होंने मंदिर पर पहली रिपोर्ट लिखकर मंदिर को बचाया था। मैंने अपनी पुस्तक ‘कोरोनेशन ऑफ  शिवा’ को उनके काम और अन्य सामग्री के आधार पर लिखा था। लेकिन बड़े आश्चर्य के साथ मंदिर को धूल के नीचे दफनाया गया जो रक्षात्मक उपाय हो सकता है ताकि मुस्लिम इसे खोजें और नष्ट न करें। मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा कला और मूर्तिकला के हजारों महान टुकड़े नष्ट कर दिए गए थे। तो एक ताज और देश के मालिकाना हक की बात क्यों? नागरिकता का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि यह जन्म या उपार्जन पर आधारित है। उन लोगों की मदद के लिए धर्म को कानून में लाया गया था जो अन्य देशों में अपने अलग-अलग धर्म के कारण प्रताडि़त थे। इनमें हिंदू और अन्य गैर मुस्लिम शामिल हैं जो मुस्लिम देशों में रह रहे हैं। यह किसी भी नागरिक को उसकी नागरिकता से वंचित नहीं करता, बल्कि किसी को नागरिकता देने के उद्देश्य से बनाया गया कानून है। नागरिकता पर विवादों को जल्दी से निपटाने के लिए एक तंत्र विकसित करने की मांग की जा सकती है। एक ऐसा कानून जिसे संसद के दोनों सदनों ने बहुमत से पास किया हो, उसे गैर कानूनी कहना न्यायसंगत नहीं होगा। इसमें धर्म को लाने का कोई औचित्य नहीं है और पूर्वजों के स्मारकों के हवाले से आंदोलन या इस तरह के बेतुके दावे जायज नहीं हैं।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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