खपत का अंडा या निवेश की मुर्गी

By: Jan 7th, 2020 12:06 am

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

बीमार को भूख नहीं लग रही हो तो उसे घी देने से उसकी तबीयत और बिगड़ती है, सुधार नहीं होता है। अतः पहले परीक्षण करना चाहिए कि मंदी का कारण क्या है? और तब उसके अनुकूल दवा पर विचार करना चाहिए। निवेश और खपत का सुचक्र और कुचक्र दोनों ही स्थापित हो सकता है। प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है। मान लीजिए किसी उद्यमी ने कपड़ा मिल लगाने में निवेश किया, उससे उत्पादन में वृद्धि हुई। कपड़े का उत्पादन बढ़ने से कपड़े की दुकान में माल की उपलब्धि बढ़ी और साथ-साथ श्रमिकों को वेतन मिला…

हमारे प्रमुख अर्थशास्त्री के. सुब्रमन्यन ने कहा है कि देश में निवेश को बढ़ाना पड़ेगा जिससे कि नए उद्योग लगाने में मांग उत्पन्न हो। सीमेंट और स्टील की मांग उत्पन्न हो और श्रमिकों को रोजगार मिले और वर्तमान मंदी टूटे, लेकिन यह नुस्खा बीमार आदमी को घी पिलाने जैसा है। बीमार अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ने से समस्या बढ़ेगी। बीमार को भूख नहीं लग रही हो तो उसे घी देने से उसकी तबीयत और बिगड़ती है, सुधार नहीं होता है। अतः पहले परीक्षण करना चाहिए कि मंदी का कारण क्या है? और तब उसके अनुकूल दवा पर विचार करना चाहिए। निवेश और खपत का सुचक्र और कुचक्र दोनों ही स्थापित हो सकता है। प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है। मान लीजिए किसी उद्यमी ने कपड़ा मिल लगाने में निवेश किया, उससे उत्पादन में वृद्धि हुई। कपड़े का उत्पादन बढ़ने से कपड़े की दुकान में माल की उपलब्धि बढ़ी और साथ- साथ श्रमिकों को वेतन मिला। श्रमिकों ने इस वेतन से यदि दुकान में उपलब्ध कपड़े को खरीद लिया और दुकान से कपड़े की बिक्री हो गई तो दुकानदार कपड़ा मिल को दोबारा कपड़े की डिमांड देगा और मिल द्वारा पुनः उत्पादन किया जाएगा अथवा कपड़े की सप्लाई करने के लिए बढ़-चढ़ कर नया उद्योग लगाया जाएगा, निवेश किया जाएगा। इसी चक्र को हम दूसरी तरह भी समझ सकते हैं। यदि इस चक्र को हम खरीद से शुरू करें तो मान लें कि दुकान में कपड़ा रखा है। उपभोक्ता ने कपड़े को खरीद लिया, दुकानदार ने कपड़ा मिल को नया आर्डर भेजा और कपड़ा मिल ने बढ़ा-चढ़ा कर नई फैक्टरी लगाई जिसमें उसने और श्रमिकों को रोजगार दिया। श्रमिकों को वेतन मिले और इस वेतन से पुनः इन्होंने और कपड़ा खरीदा। इस प्रकार हम देखते हैं कि निवेश और खपत के सुचक्र को हम निवेश से भी शुरू कर सकते हैं अथवा खरीद से। यानी यह अंडा और मुर्गी जैसी कहानी है। कौन पहले आया यह प्रश्न समझने का हो जाता है। हमारे मुख्य अर्थशास्त्री का कहना है कि इस सुचक्र की कड़ी निवेश में है। मैं समझता हूं इस पर पुनः विचार करने की जरूरत है। मान लीजिए किसी उद्यमी ने कपड़ा मिल में निवेश किया, कपड़े का उत्पादन बढ़ा और उन्होंने श्रमिक को वेतन दिया। अब दुकान में कपड़ा रखा है और श्रमिक के हाथ में वेतन है। प्रश्न यह है कि श्रमिक अपने हाथ में आई रकम से दुकान से कपड़े को खरीदेगा अथवा उस रकम को फिक्स डिपोजिट में जमा करा देगा अथवा उस रकम से सोना खरीदेगा।

दोनों का प्रभाव बिलकुल अलग-अलग पड़ता है। यदि श्रमिक ने वेतन की रकम से कपड़ा खरीदा तो दुकान का कपड़ा बिक जाएगा। दुकानदार कपड़ा मिल को नया आर्डर देगा और उद्यमी नए आर्डर की पूर्ति के लिए नई कपड़ा मिल लगाएगा। इस प्रकार निवेश और खपत का सुचक्र स्थापित हो सकता है, लेकिन दूसरी संभावना भी है। वह यह कि कपड़ा मिल लगाने से उत्पादन हुआ और श्रमिक को वेतन मिला, लेकिन यदि श्रमिक ने वेतन की रकम से सोना खरीदकर अपनी तिजोरी में रख दिया तो दुकान पर कपड़ा बिकने से रह जाएगा। दुकान में कपड़ा रखा रहेगा और खरीददार नदारद। ऐसी स्थिति में दुकानदार उद्यमी को नया आर्डर नहीं देगा और उद्यमी नया निवेश नहीं करेगा। निवेश और खपत का सुचक्र स्थापित नहीं होगा जिसे हमारे मुख्य अर्थशास्त्री स्थापित करना चाहते हैं। हमारे मुख्य अर्थशास्त्री के विचार में पेंच यह है कि वेतन का उपयोग खपत के लिए होना जरूरी नहीं है। वेतन का उपयोग किस दिशा में होता है, इससे निर्णय होता है कि निवेश और खपत का सुचक्र स्थापित होगा अथवा नहीं होगा। इसी बात को हम दूसरी तरह से कह सकते हैं कि किसी व्यक्ति को घी पिलाने की पेशकश करना तभी सार्थक होती है जब उसे भूख लगी हो। यदि व्यक्ति बीमार हो अथवा यदि भूख न हो ऐसे में उसे घी परोसने से उसकी तबीयत और बिगड़ती है। इसी प्रकार यदि श्रमिक में खपत करने की उत्सुकता न हो, निवेश करने से अर्थव्यवस्था की तबीयत और बिगड़ेगी। निवेश करना निरर्थक हो जाएगा। यदि हम इस चक्र को खपत की दृष्टि से देखें तो यह अनिश्चितता नहीं रह जाती है। जैसे दुकान में कपड़ा रखा है और खरीददार ने उस कपड़े को खरीद लिया। तब निश्चित है कि दुकानदार उद्यमी को कपड़े का नया आर्डर देगा, उद्यमी निवेश करेगा और उस निवेश में पुनः श्रमिक को वेतन मिलेगा और उस वेतन से श्रमिक पुनः कपड़ा खरीदेगा। इस सुचक्र में उपभोक्ता द्वारा खपत की जाएगी या नहीं, यह अनिश्चितता समाप्त हो जाती है, लेकिन इस सुचक्र में भी दूसरी अनिश्चितता उत्पन्न हो जाती है। वह यह कि मान लीजिए कि उपभोक्ता ने दुकान से कपड़ा खरीद लिया। दुकानदार ने कपड़ा मिल को आर्डर भेजा, लेकिन उद्यमी ने निवेश नहीं किया। ऐसे में पुनः खपत और निवेश का सुचक्र टूट जाता है, लेकिन देखने में आता है कि यदि आर्डर मिलता है तो उद्यमी निश्चित रूप से निवेश करता है। इस बात का प्रमाण यह है कि एसडीएम इंस्टिट्यूट मैसूर द्वारा 1992 से 2015 के बीच देश की आर्थिक विकास का अध्ययन किया गया। उन्होंने पाया कि आर्थिक विकास में 26 प्रतिशत योगदान खपत का है और केवल 4 प्रतिशत योगदान निवेश का है। इसी प्रकार के दूसरे अध्ययनों से भी प्रमाणित होता है कि यदि खपत होती है तो निवेश ज्यादा संभव होता है। इसलिए मुख्य अर्थशास्त्री महोदय को पुनर्विचार करना चहिए और निवेश बढ़ाने की गुहार लगाने के स्थान पर पहले इस बात की पड़ताल करनी चाहिए कि बाजार में माल खरीदा क्यों नहीं जा रहा है। श्रमिक अपने वेतन का उपयोग खपत के लिए क्यों नहीं कर रहा है? वह क्यों डरा हुआ है? वह अपनी रकम को फिक्स डिपाजिट या सोने की खरीद में क्यों लगा रहा है? जब हम वहां से इस सुचक्र की रुकावट को दूर करेंगे तब ही देश की अर्थव्यवस्था चलेगी। निष्कर्ष यह है कि निवेश और खपत के सुचक्र में खपत प्राथमिक है और निवेश उसके पीछे चलता है।

ई-मेलः bharatjj@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App