जीवन का एक अंश

By: Jan 4th, 2020 12:20 am

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव

संस्कृत का एक श्लोक है ‘बालास्तवत क्रीड़ासक्तः अर्थात बच्चे की तरह खेल में आसक्त रहो। जब आप बच्चे थे तब आप का खेलकूद आप को पूरी तरह व्यस्त रखता था, आप का खेलकूद हर समय चलता रहता था। आप जब युवा हुए तो वो सब खेलकूद आप को थोड़ा मूर्खतापूर्ण लगने लगा, आप को लगा कि अब आप थोड़े गंभीर और उद्देश्यपूर्ण हो गए हैं। उसके बाद क्या हुआ? आप की बुद्धिमता को आप के हार्मोंस ने जकड़ लिया। फिर आपको कुछ भी स्पष्ट रूप से दिखना बंद हो गया। अचानक ये होने लगा कि जब भी आप किसी स्त्री या पुरुष को देखते थे, तो सभी प्रकार की चीजें हो जाती थीं। फिर धीरे- धीरे आप बूढ़े होने लगे। बूढ़े लोग बस हमेशा चिंतित रहते हैं। एक बच्चा पूरी तरह से खेल में व्यस्त रहता है, आप उससे अंतिम सत्य के बारे में बात नहीं कर सकते। युवा पूरी तरह से हार्मोंस के शिकंजे में होते हैं, उनसे भी आप ये बातें नहीं कर सकते। बूढ़े लोग बस इस चिंता में लगे रहते हैं कि वे स्वर्ग में कहां होंगे? तो आप उनसे भी इस बारे में बात नहीं कर सकते। फिर बताइए यहां है कौन? कोई ऐसा, जो न बच्चा हो, न युवा, न वृद्ध कोई ऐसा हो। सिर्फ उससे ही आप ये बात कर सकते हैं। अतः इस बात को आप अपने पहले या आखरी कदम के रूप में न देखें। यहां बस जीवन के एक अंश की तरह रहें। उस तरह से रहना ही सबसे अच्छी तरह से होना है। आप कोई युवा नहीं हैं, न ही कोई वृद्ध हैं। ये तो धरती तय करेगी कि आप के शरीर को कब वापस लेना है। जब खाद तैयार हो जाएगी तब धरती इसे वापस ले लेगी, पेड़ तो प्रतीक्षा कर ही रहे हैं। इस बारे में चिंता मत कीजिए। आप बस जीवन का एक अंश हैं। इस जीवन के रूप में कोई युवा नहीं, कोई वृद्ध नहीं, कोई बच्चा नहीं। इस जीवन को बस कुछ बड़े में परिपक्व होना है। आप चाहे दो दिन के हों या आप के जीवन के बस दो दिन बचे हों, आप बस ये देखिए कि किसी के साथ बिना पहचान जोड़े, एक जीवन के रूप में यहां कैसे रहा जाए। जीवन के सभी पहलू आप के लिए सिर्फ तभी घटित होंगे जब आप यहां बस जीवन के एक अंश के रूप में होंगे। आप अगर यहां एक पुरुष के रूप में हैं, तो आप के लिए कुछ चीजें घटित होंगी। यदि आप एक स्त्री के रूप में हैं तो कुछ अन्य चीजें होंगी और अगर आप एक बच्चे के रूप में हैं तो कुछ और होगा। अगर आप एक डाक्टर के रूप में हैं या एक इंजीनियर या कलाकार या कुछ और तो आप के लिए कुछ अलग-अलग चीजें घटित होंगी। लेकिन अगर आप यहां जीवन के एक अंश की तरह होंगे तो फिर जीवन के साथ जो कुछ हो सकता है, वो सब आप के साथ होगा। अपने आप को पृथ्वी या स्वर्ग से न जोड़ें, सिर्फ  यहां रहें। फिर आप के जीवन का सिर्फ  एक दिन बाकी हो या 100 वर्ष, क्या फर्क पड़ता है? जब कोई फर्क नहीं पड़ता, तो जो कुछ भी इस जीवन के साथ होना चाहिए, वो सब किसी भी तरह से आप के साथ होगा ही और यही सम्मति के साथ जीना है।

 


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