विरोध की लक्ष्मण रेखा क्या हो?

By: Jan 11th, 2020 12:06 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध करते-करते विपक्षी दलों का नेतृत्व कर रही ममता बनर्जी विरोध की वह लक्ष्मण रेखा पार कर गई लगती हैं। पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का विरोध कर रही हैं…

जो राजनीतिक दल नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध कर रहे हैं, उन्हें स्वयं तय करना होगा कि विरोध की अंतिम सीमा क्या हो सकती है? कहीं यह विरोध अपनी सीमा को पार कर राष्ट्रीय हितों के विरोध तक तो नहीं पहुंच रहा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी मुद्दे पर विरोध करने  का लोकतांत्रिक अधिकार सभी नागरिकों को प्राप्त है, लेकिन यह विरोध इस सीमा तक नहीं जाना चाहिए कि उनका स्वर और पाकिस्तान का स्वर मिल कर एक हो  जाए। पिछले कुछ अरसे से कांग्रेस, मुस्लिम लीग और कम्युनिस्टों का विरोध उस सीमा तक जा पहुंचा लगता है। नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध करते-करते विपक्षी दलों का नेतृत्व कर रही ममता बनर्जी विरोध की वह लक्ष्मण रेखा पार कर गई लगती हैं। पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का विरोध कर रही हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम पर निर्णय करने के लिए उन्होंने एक सुझाव दिया है। उनके अनुसार पूरे देश में जनमत लेना चाहिए कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिखों, बौद्धों समेत पारसी व ईसाई अल्पसंख्यकों को उनकी भारतीय नागरिकता उनको वापस देनी चाहिए या नहीं। इन लोगों को भारतीय नागरिकता देनी चाहिए या नहीं। उन्हें यह सुझाव देने का अधिकार है। लोकतंत्र में हर एक को अपनी राय देने का अधिकार है। लेकिन ममता बनर्जी यह जनमत संग्रह भारतीय चुनाव आयोग या किसी अन्य भारतीय एजेंसी से नहीं करवाना चाहतीं।  ममता का कहना है कि यह जनमत संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा करवाया जाना चाहिए। गोरों से यह अतिरिक्त मोह कांग्रेस की पुरानी विरासत है। मांऊटबेटन दंपति के मोहपाश में बंधे नेहरू जम्मू-कश्मीर की पूंछ जानते बूझते न्यूयार्क में जाकर संयुक्त राष्ट्र संघ से बांध आए थे।

उस संयुक्त राष्ट्र संघ ने न जाने कितने झटके दे देकर जम्मू-कश्मीर का अंजर पंजर ढीला कर दिया । यह तो भला हो नरेंद्र मोदी सरकार का कि उन्होंने सत्तर साल बाद संघीय संविधान में संशोधन कर जम्मू-कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र संघ के झटकों से मुक्त करवाया। पश्चिमी बंगाल में सर्वाधिक बांग्लादेश घुसपैठिए हैं। पिछले कई दशकों से पश्चिमी बंगाल की सरकार बांग्लादेश से आने वाले इन अवैध घुसपैठियों को बहां या फिर देश के अन्य अन्य हिस्सों में बसने के लिए कागज पत्र मुहैया करवाती रही है। उस समय ममता बनर्जी इन बांग्लादेशी घुसपैठियों को पश्चिमी बंगाल में न घुसने दिया जाए, इसको लेकर आंदोलन ही नहीं चलाती थीं बल्कि लोकसभा के अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के सामने जोर-जोर से रोने भी लगीं थीं। लेकिन आज वे उन्हीं बंग्लादेशी घुसपैठिए की रक्षा के लिए इतनी कटिबद्ध हैं कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हुए अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का विरोध ही नहीं कर रहीं बल्कि इसके लिए लेक सक्सेस तक जाने को भी तैयार हो गईं हैं। जिस समय ममता बनर्जी लोकसभा में इन घुसपैठियों को लेकर रोती थीं, उस समय कोलकाता की राईटर्ज बिल्डिंग पर कम्युनिस्टों की सीपीएम का कब्जा था। बांग्लादेशी अवैध घुसपैठिए एक मुश्त सीपीएम को वोट दिया करते थे। इसलिए सीपीएम की सरकार भी उनको जरूरी कागजात मुहैया करवा कर वैध बनाने के प्रयासों में लगी रहती थी। जाहिर है आम बंगाली का जल्दी ही ममता से मोहभंग होने लगा, लेकिन उसके सामने विकल्पहीनता भी थी। सोनिया की कांग्रेस को वह किसी भी हालत में अपना नहीं सकता था। कांग्रेस से बंगालियों का मोहभंग सुभाष चंद्र बोस की घटना के बाद ही शुरू हो गया था। आम बंगाली सोनिया गांधी की इटलावाली लाबी के साथ जा नहीं सकता, ममता की अराजकता की राजनीति से उसका मोहभंग हो चुका था । भाजपा के पास बंगाल के जननायक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की विरासत तो थी ही। इसलिए भाजपा बंगाल के जनमानस में घर करने लगी। अब ममता बनर्जी को अपने सत्ता सिंहासन पर सचमुच खतरा दिखाई देने लगा, लेकिन सत्ता के इस संकट काल में ममता बनर्जी ने भी उसी सरल रास्ते को चुना जिसे आज तक सीपीएम इस्तेमाल करता आया था।

वह इस मरहले पर सहायता के लिए अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की विशाल फौज की ओर पलट गईं । वैसे भी सीपीएम के सत्ताच्युत हो जाने के बाद यह अवैध फौज एक प्रकार से अनाथ घूम रही थी । ऊपर से देश के न्यायालय बार-बार कह रहे थे कि इन अवैध बांग्लादेशियों की शिनाख्त कर इन्हें बाहर निकाला जाए। सरकार इस दिशा में कुछ सक्रियता भी दिखाने लगी थी। वैसे भी भाजपा का देश के लोगों, खास कर असम और बंगाल के लोगों से यह वायदा था कि सत्ता में आने पर वह इस अवैध फौज को बांग्लादेश में उनके घर वापस भेजेगी। नागरिकता संशोधन विधेयक, ममता बनर्जी और अवैध बांग्लादेशी घुसपैठी फौज की स्वार्थ सिद्धि का माध्यम बन कर प्रकट हुआ। अवैध बांग्लादेशियों को किसी भी तरीके से भारत में ही बने रहना था। ममता बनर्जी के साथ कंधे से कंधा मिला कर  नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में सड़कों पर गला फाड़ रही यह वही फौज है जिसकी वर्दी का रंग ममता ने बदला है। अब जो भी ममता के या उसकी पार्टी के विरोध में स्वर उठाता है, उसका गला काट कर दंड देने की सजा भी यही अवैध बांग्लादेशी फौज करती है। इसलिए पश्चिमी बंगाल में ये तीनों समूह अवैध बांग्लादेशी फौज को किसी भी तरह भारत में ही बने रहने देने के लिए हर उल्टी सीधी हरकत कर रहे हैं, लेकिन इन राजनीतिक समूहों की इस अवैध प्रतियोगिता में पाकिस्तान व बांग्लादेश से आने वाले वे शरणार्थी पिस रहे हैं जिनको इन देशों में मजहबी कारणों से प्रताडि़त किया जा रहा है। वैसे तो पाकिस्तान, बांग्लादेश में इन अल्पसंख्यकों की बहुत बड़ी जनसंख्या को इस्लाम में मतांतरित ही किया जा चुका है, लेकिन जो बचे हुए हैं उनमें से कुछ किसी न किसी तरह वहां से बच कर भारत में आ गए हैं। यदि भारत सरकार इन अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारत में ही बने रहने के लिए, उनकी 1947 से पूर्व की भारतीय नागरिकता लौटा देने का निर्णय कर लेती है तो हो हल्ला मचा कर इस अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की फौज को भी भारत में बसाया जा सकता है ।

ईमेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App