बेटा – बेटी दोनों को बराबर समझें

By: Jan 15th, 2020 12:22 am

मेरा भविष्‍य मेरे साथ-21

करियर काउंसिलिंग (रि.) कर्नल मनीष धीमान

कुछ दिन पहले रूटीन जांच के लिए मिलिट्री हॉस्पिटल जाना हुआ, कुछ टेस्ट करवाने के लिए। जब लैब में पहुंचे, तो वहां पर मिलिट्री नर्सिंग सर्विस की कैप्टन मेरी वाइफ  के पास आई और धन्यवाद करने लगी। बात करने से पता चला कि वह लड़की हमारे यूनिट के एक सूबेदार की बेटी है। वे दो बहनें थीं, इसलिए जब उसकी छोटी बहन के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वह भी इसी अस्पताल में डाक्टर है और कैप्टन के रैंक पर है। टेस्ट के बाद वह लड़की जिद करके हमें अपने साथ चाय के लिए घर ले गई। घर में उसके मां- बाप सूबेदार साहब और मैडम को देखकर पुराने दिन याद आ गए। जब ये परिवार यूनिट में आया था, वह दिन मेरी आंखों के सामने घूम गया। मैं वह सब याद करने लगा कि कैसे एक दिन यूनिट के फंक्शन के दौरान किसी ने कह दिया कि सूबेदार साहब की शादी को 18 साल हो गए हैं और अभी तक एक बार भी सूबेदारनी जी को यूनिट नहीं लाए। जब सूबेदार साहब से बात हुई तो उनका जवाब हमारे देश के ज्यादातर लोगों की मानसिकता की तरह था। उनका कहना था कि वह यहां शहर में आकर क्या करेगी। परिवार गांव में रह रहा है, मेरे भाई भी फौजी हैं। हम में से किसी ने भी आज तक परिवार को अपने साथ नहीं रखा। वैसे भी मेरी दो बेटियां हैं, एक दसवीं में और दूसरी 8वीं में। अगले चार साल अपनी रिटायरमेंट से पहले कम से कम एक की शादी कर दूंगा । लड़की जात है, शहर में रखूंगा तो बिगड़ जाएगी। पर जैसे तैसे, वह अपने परिवार को मात्र दो महीने के लिए लाने को मान गए। महिलाओं का कुशलक्षेम जानने के लिए एक दिन मेरी पत्नी फैमिली क्वार्टर में गई तो उनकी बात सूबेदार साहब की पत्नी और बेटियों से हुई । उनकी बड़ी बेटी, जो दसवीं में पढ़ती थी बातों-बातों में मेरी वाइफ  से कहा, आप कार चलाकर खुद आ रहे हो, मैं भी आपकी तरह जिंदगी जीना चाहती हूं। कुछ बनना चाहती हूं, जो बिना किसी डर के और अपनी मर्जी से, जो दिल करे पहने और जहां दिल करे, जाए। पर मेरी मां कहती है, कि हमारी किस्मत ऐसी नहीं है, यह सब बड़े लोगों के लिए है। यह सब पता चलने पर, मैंने सूबेदार साहब को अगले दो साल के लिए यूनिट में रुकने के लिए किसी न किसी तरह मना लिया तथा बच्चों की एडमिशन करवा दी। हफ्ते में दो दिन मेरी वाइफ सूबेदार साहब के क्वार्टर में बच्चों को पढ़ाने और करियर टिप्स देने जाया करती थी। जैसे  लड़कों को पांचवीं के आधार पर सैनिक स्कूल, मिलिटरी स्कूल एवं आरआईएमसी में छठी से भेजा जा सकता है और इसका इलिजिबिलिटी क्राइटेरिया  सिर्फ फौजियों के लड़कों तक सीमित नहीं बल्कि कोई भी बच्चा, पांचवीं पास होना चाहिए। 12वीं के बाद लड़कों के लिए एनडीए तथा लड़के और लड़की दोनों के लिए पीएमटी अभी नीट डाक्टर व आईआईटी इंजीनियर के लिए या रुचि मुताबिक स्नातक डिग्री करने के बाद प्रशासनिक सेवाएं जैसे आईएएस और आईपीएस में जा सकते हैं। सूबेदार साहब की दोनों बेटियां बहुत मेहनती थीं ही बड़ी बेटी ने 12वीं पास की व उसको फॉर्म भरवा कर एक आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कालेज एवं मिलिट्री नर्सिंग सर्विस की तैयारी करवाई। बेटी ने दोनों एग्जाम दिए और नर्सिंग सर्विसेज का टेस्ट पास कर सिलेक्ट हो गई। मैं यह सब सोचते हुए पुराने दिनों में इतना खो गया था कि साहब ने चाय का कप मेरी तरफ  कर मुझे हिलाते हुए कहा, कहां खो गए साहब। चाय पीते वक्त साहब व उनकी पत्नी ने भरी आंखों से हमें बताया कि साहब आपके और मेम साहब की जबरदस्ती की वजह से हमने बेटियों को पढ़ाया बड़ी को देख छोटी ने एएफ एमसी पास किया और आज हमारी बेटियां, अपनी मर्जी की जिंदगी जी रही हैं। ये मेरी बेटियां नहीं, बेटे हैं। ये देख मुझे विश्वास हो गया कि पुराने रीति-रिवाज और मान्यताएं, जो हमें आगे बढ़ने की स्वतंत्रता नहीं देती, उनको बदलना चाहिए । लड़कियां और लड़के दोनों ही बराबर हैं और मां-बाप का दायित्व बेटियों को सिर्फ  थोड़ी शिक्षा देकर शादी कर देने से ही पूरा नहीं हो जाता। बेटियां पराया धन हैं,यह कहकर उनको कमजोर करने और पंख काटने की बात करने के बजाय उनको बड़े सपने देखने व खुले आसमान में उड़ने की आजादी देनी चाहिए। बेटा-बेटी दोनों ही मां-बाप का हिस्सा एवं जिम्मेदारी हैं , इसलिए हमें  फर्क किए बिना, दोनों को बराबर का सम्मान  एवं मौका देना चाहिए।


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