घटिया खेल सामग्री में करोड़ों की बंदरबांट

By: Feb 21st, 2020 12:06 am

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

जब सरकारी स्तर पर खेल सामान खरीदा जाता है तो कीमत बढि़या या मध्यम स्तर के सामान की होगी और सामग्री निम्न दर्जे की होगी। इस तरह कीमत उच्च क्वालिटी की तय कर शेष राशि हड़प ली जाती है। व्यापारी व सामग्री खरीदने वाले अधिकारी अधिकांश राशि को चट कर जाते हैं। आज विभिन्न प्रकार की कृत्रिम प्ले फील्ड विभिन्न खेलों के लिए बाजार में उपलब्ध है। बात चाहे चार सौ मीटर ट्रैक पर बिछे सिंथेटिक की हो या लॉन टेनिस के कोर्ट की, आज हर खेल के लिए कृत्रिम प्ले फील्ड उपलब्ध है। मगर यहां भी उपयोग में लाई जाने वाली सामग्री में काफी गोलमाल है…

किसी भी युद्ध को जीतने के लिए जहां दूरदर्शी  सोच वाले कमांडर व बहादुर सैनिकों के साथ-साथ उच्च स्तरीय युद्ध सामग्री व हथियारों का होना बेहद जरूरी है, उसी प्रकार खेलों में बड़ी सफलताओं के लिए उच्च स्तरीय प्रशिक्षकों व प्रतिभाशाली खिलाडि़यों के साथ-साथ उन के पास स्तरीय खेल किट व उच्च तकनीक के खेल उपकरणों का होना भी बहुत ही जरूरी होता है। चिकित्सा क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की बीमारियों को ठीक करने के लिए आज प्रौद्योगिकी का सहारा ले कर कई प्रकार के उपकरण विकसित हो चुके हैं, ठीक उसी प्रकार खेल जगत में भी आज के अति मानवीय खेल परिणामों में विकसित प्रौद्योगिकी का सहारा ले कर बनाई गई आधुनिक खेल सामग्री का विशेष योगदान है। आज खिलाडि़यों के लिए खेल किट में उस की शारीरिक संरचना के अनुरूप पोशाक व जूते उच्च तकनीक से बने होते हैं। खेल शूज बनाने वाले नामी गिरामी कंपनियों ने दो हजार रुपए से लेकर एक लाख रुपए से भी अधिक कीमत के खेल जूते बनाए हैं। ठीक इसी नकल पर बिना प्रौद्योगिकी का प्रयोग किए आम कंपनियों के जूते भी बाजार में उपलब्ध हैं, मगर वे खिलाड़ी को वह सुरक्षा व सहायता प्रदान नहीं कर पाते जैसे विशेष तकनीक पर बने जूते देते हैं। बात चाहे हाकी के गोलकीपर पोशाक की है, मुक्केबाज के दस्तानों की विशेष तकनीक से बनी समग्री ही खिलाड़ी को शारीरिक सुरक्षा व खेल परिणामों को बेहतर करने में सहायता प्रदान करती है। एथलेटिक्स के उपकरणों में विशेष कर भाले व पोलवाल्ट के पोल में दिनों दिन सुधार होता आया है। आज विशेष तकनीक से बने अच्छे एक भाले का मूल्य पचास हजार रुपए से ले कर लाख रुपए से भी अधिक कीमत है। यही हाल पोलवाल्ट के पोल का है, इस की कीमत भी लाखों में है। इसी तरह अन्य खेलों में भी किट व खेल उपकरणों के बाजार में अच्छे से अच्छा व घटिया से घटिया सामान उपलब्ध है। जब सरकारी स्तर पर खेल सामान खरीदा जाता है तो कीमत बढि़या या मध्यम स्तर के सामान की होगी और सामग्री निम्न दर्जे की होगी। इस तरह कीमत उच्च क्वालिटी की तय कर शेष राशि हड़प ली जाती है। व्यापारी व सामग्री खरीदने वाले अधिकारी अधिकांश राशि को चट कर जाते हैं।

आज विभिन्न प्रकार की कृत्रिम प्ले फील्ड विभिन्न खेलों के लिए बाजार में उपलब्ध है। बात चाहे चार सौ मीटर ट्रैक पर बिछे सिंथेटिक की हो या लॉन टेनिस के कोर्ट की, आज हर खेल के लिए कृत्रिम प्ले फील्ड उपलब्ध है। मगर यहां भी उपयोग में लाई जाने वाली सामग्री में काफी गोलमाल है। इंडोर स्टेडियम में अलग-अलग समय में अलग-अलग खेल के प्ले फील्ड बिछा कर खेल प्रतियोगिता व प्रशिक्षण किया जा रहा है। इन प्ले फील्ड की खरीददारी में भी काफी घपला होता है। हिमाचल प्रदेश के महाविद्यालयों में जहां अधिकतर खेल सामग्री महाविद्यालय प्रशासन स्वयं खरीदता है, वहीं पर कुछ खेल सामान पहले शिक्षा निदेशालय मैटीरियल्स एंड सप्लाई के अंतर्गत खरीद कर महाविद्यालय को दिया जाता था और अब जैम के माध्यम से खरीदा  जा रहा है। मैटीरियल्स एंड सप्लाई के अंतर्गत खरीदा गया खेल सामान बिलकुल घटिया किस्म का मिलता रहा है। निम्न दर्जे के हाई जंप मैट व मुक्केबाजी रिंग इस के उदाहरण आज भी देखे जा सकते हैं। इस स्कीम के अंतर्गत खरीदे जीम एक साल में ही कबाड़ हो चुके हैं। लाखों रुपए का खेल सामान तो खरीद लिया मगर यह कोई नहीं सोचता है कि यह काम में भी लाया जा सकता है या नहीं। इस खेल सामान खरीदने के लिए बनी कमेटी में निदेशालय के अधिकारी व बाबू होते हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में शायद ही कोई खेल खेला हो। आज जब खेल-खेल में स्वास्थ्य स्कीम के अंतर्गत कई करोड़ रुपए की कृत्रिम प्ले फील्ड जूड़ो, कुशती व खो-खो आदि खेलों के लिए खरीदकर विद्यालयों व महविद्यालय को दी जा रही है। जहां भी खेल सामान खरीदना हो वहां पर खरीददारी के लिए जो कमेटी बने उस में जिस भी खेल का सामान खरीदना है उस खेल का प्रशिक्षक व कम से कम दो राष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ी भी विभागीय अधिकारियों के साथ हों। तभी डीलर व अधिकारियों की बंदरबांट से बच कर स्तरीय खेल सामग्री खरीदी जा सकती है। जिस संस्थान को सामग्री मिले वहां भी कमेटी देखे कि वह घटिया स्तर का तो नहीं दे दिया। अच्छी प्रशिक्षण सुविधा के अभाव में कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी समय से पहले ही खेल को अलविदा कह जाते हैं और जिन के पास धन व साधन हैं वे अच्छे प्रशिक्षण के लिए हिमाचल प्रदेश से पलायन कर जाते हैं। अगर हिमाचल प्रदेश में घटिया खेल सामान न खरीद कर उच्च क्वालिटी का खेल समान खरीदा होगा तो स्तरीय खेल सुविधा होगी तो जहां जो खिलाड़ी प्रशिक्षण सुविधाओं के अभाव में खेल छोड़ देते हैं वे अपने घर में रह कर  खेल जारी रख सकते हैं। खेल सुविधाओं के लिए पलायन करने वालों को भी जब अपने ही राज्य में रह कर अपना प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा करने के लिए सुविधा मिलेगी तो वह फिर क्यों अपना प्रदेश छोड़ेंगे। जब अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल सामान खरीदा होगा तो फिर हिमाचल प्रदेश की संतानें अपने घर में प्रशिक्षण प्राप्त कर हिमाचल से खेल कर प्रदेश के लिए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत कर  गौरव दिलाते देखी जा सकती हैं।

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हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे। 

-संपादक


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