चीन के साथ ट्रेड वॉर

By: Feb 18th, 2020 12:06 am

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

अमरीका में चीन की तुलना में श्रमिक के वेतन अधिक हैं और पर्यावरण की हानि करने की भी छूट कम है। चीन की फैक्टरियों द्वारा भारी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन किया जाता है जिससे लोगों का स्वास्थ बिगड़ रहा है। बीते वर्ष जब राष्ट्रपति ट्रंप चीन की यात्रा पर गए तो चीन ने बीजिंग के आसपास सभी कारखानों को बंद कर दिया और उनकी यात्रा के समय चीन की वायु स्वच्छ हो गई। चीन में सस्ते वेतन और पर्यावरण की हानि के कारण चीन में माल के उत्पादन का मूल्य कम पड़ता है और चीन का माल अमरीका में भारी मात्रा में प्रवेश कर रहा था। अमरीकी उपभोक्ता को चीन में बना सस्ता माल आसानी से उपलब्ध हो रहा था और वे उपभोक्ता जिनके पास रोजगार था वे अति प्रसन्न थे, लेकिन समस्या यह उत्पन्न हो गई कि जब अमरीका में माल के उत्पादन की लागत अधिक पड़ने लगी और चीन से सस्ता माल आयातित होने लगा तो अमरीका की फैक्टरियां बंद होने लगी। अमरीका में श्रमिक बेरोजगार होने लगे

बीते समय में अमरीका और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौता संपन्न हुआ है। पिछले कई वर्षों से अमरीका में चीन से माल का आयात बहुत अधिक मात्रा में हो रहा था और निर्यात तुलना में बहुत ही कम हो रहा था। अमरीका का व्यापार घाटा बढ़ रहा था। इस समस्या से निजात पाने के लिए राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन के साथ ट्रेड वॉर शुरू किया। उन्होंने चीन से आयात होने वाले माल पर भारी मात्रा में आयात कर लगा दिए और इसका पलटवार करते हुए चीन ने भी अमरीका से आयात होने वाले कुछ माल पर आयात कर बढ़ा दिए। इन दोनों महारथियों के आपस में ट्रेड वार में लिप्त होने से संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था भी मंद होने लगी। जब अमरीका को आयात कम हुए तो चीन द्वारा अमरीका को सप्लाई करने के लिए माल कम बनाया जाने लगा और इस माल को बनाने में दूसरे देशों से कच्चे माल का आयात कम हुआ। प्रश्न है कि अमरीका में चीन से माल का आयात अधिक क्यों होने लगा? कारण यह है कि अमरीका में माल का उत्पादन महंगा पड़ने लगा। अमरीका में चीन की तुलना में श्रमिक के वेतन अधिक हैं और पर्यावरण की हानि करने की भी छूट कम है। चीन की फैक्टरियों द्वारा भारी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन किया जाता है जिससे लोगों का स्वास्थ बिगड़ रहा है। बीते वर्ष जब राष्ट्रपति ट्रंप चीन की यात्रा पर गए तो चीन ने बीजिंग के आस-पास सभी कारखानों को बंद कर दिया और उनकी यात्रा के समय चीन की वायु स्वच्छ हो गई। चीन में सस्ते वेतन और पर्यावरण की हानि के कारण चीन में माल के उत्पादन का मूल्य कम पड़ता है और चीन का माल अमरीका में भारी मात्रा में प्रवेश कर रहा था। अमरीकी उपभोक्ता को चीन में बना सस्ता माल आसानी से उपलब्ध हो रहा था और वे उपभोक्ता जिनके पास रोजगार था वे अति प्रसन्न थे, लेकिन समस्या यह उत्पन्न हो गई कि जब अमरीका में माल के उत्पादन की लागत अधिक पड़ने लगी और चीन से सस्ता माल आयातित होने लगा तो अमरीका की फैक्टरियां बंद होने लगी। अमरीका में श्रमिक बेरोजगार होने लगे।

इस प्रकार अमरीकी नागरिक की हालत ऐसी हो गई कि वह दुकान में रखे सस्ते माल को देख सकता है, विंडो शॉपिंग कर सकता है, लेकिन खरीदने के लिए उसके पास पैसा नहीं है। राष्ट्रपति ट्रंप को तय करना था कि वे अपने नागरिकों को सस्ता माल उपलब्ध कराएंगे अथवा रोजगार। उन्होंने तय किया कि मूल बात रोजगार की है। पहले नागरिक को रोजगार मिलना चाहिए। सस्ता माल न मिले, घर में बना हुआ महंगा माल खपत करना पड़े, तो चलेगा। यदि रोजगार ही नहीं रहेगा तो देश का नागरिक क्या करेगा? यहां राष्ट्रपति ट्रंप और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बीच एक द्वंद्व था। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है कि अमरीका के नागरिकों को रोजगार मिल रहा है या नहीं, उनका उद्देश्य सिर्फ  लाभ कमाना था। उन्होंने चीन में फैक्टरियां लगाईं। वे इस बात से प्रसन्न थे कि वे चीन में सस्ता माल बनाकर उसका अमरीका से आयात करके लाभ कमा रहे थे। राष्ट्रपति ट्रंप ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इस स्वार्थ का सामना किया और उनसे स्पष्ट रूप से कहा कि आप अमरीका में वापस आइए और अपनी फैक्टरियां यहां लगाइए, अन्यथा हम कार्रवाई करेंगे। इस पृष्ठभूमि में अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन से आयातित होने वाले माल पर आयात कर बड़ाए थे और ट्रेड वॉर को शुरू किया था। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाएं बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा ही संचालित होती हैं। ये भी खुले विश्व व्यापार को बढ़ावा देती हैं। राष्ट्रपति ट्रंप ने इन संस्थाओं का विरोध किया, अपनी नौकरशाही का विरोध किया, चीन से ट्रेड वॉर किया और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों पर चोट की।

राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा आयात कर बढ़ाए जाने के बाद जब ट्रेड वॉर गहराने लगा तब चीन ने घुटने टेके और राष्ट्रपति ट्रंप के साथ समझौता किया। चीन ने वादा किया है कि वह आने वाले समय में भारी मात्रा में अमरीका से माल का आयात करेगा और अमरीका ने भी वादा किया कि आरोपित आयात करों में कुछ ढील दी जाएगी। दोनों देशों ने संतुलित व्यापार की ओर कदम बढ़ाए हैं। हमारी परिस्थिति अमरीका के समतुल्य ही है। जिस प्रकार अमरीका में चीन से बने माल का आयात अधिक और निर्यात कम हो रहा था, भारत की परिस्थिति उसी के बिलकुल समानांतर है। अतः यदि हम अमरीका से सबक लें तो हमे भी चीन के साथ ट्रेड वॉर शुरू करना चाहिए। बताते चलें कि अमरीका और चीन के बीच जो द्विपक्षीय समझौता हुआ है उसको ‘विश्व व्यापार संगठन’ के नियमों के बाहर रखा गया है। अमरीका की तरह हमारे देश में भी चीन से माल का आयात बहुत अधिक और निर्यात कम हो रहा है। हमारे देश के नागरिक बेरोजगार हो रहे हैं। चीन में बने सस्ते खिलौने, गणेश जी की मूर्तियां इत्यादि आयात हो रही हैं। ऐसी परिस्थिति में हमें भी विचार करना चाहिए कि अमरीका की तर्ज पर हम भी चीन से ट्रेड वॉर शुरू करें। हमें चीन से आयातित माल पर आयात कर बढ़ा देने चाहिए और फिर चीन को घुटने टेक कर समझौते करने पर मजबूर करना चाहिए जिससे कि हम अपने देशवासियों को रोजगार दे सकें। समस्या यह दिखती है कि हमारी सरकार पर नौकरशाहों का वर्चस्व ज्यादा गहरा है। ये स्वयं सेवानिवृत्ति के बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में कंसल्टेंसी पर रोजगार करना चाहते हैं। इनके बच्चे इसी प्रकार की कंपनियों में रोजगार करते हैं। इसलिए हमारे देश की सरकार चीन के साथ ट्रेड वॉर शुरू करने से हिचक रही है। इसलिए नहीं कि देश को नुकसान होगा, बल्कि इसलिए कि हमारे नौकरशाहों के बच्चों को बहुराष्ट्रीय कंपनियां रोजगार देना बंद कर देंगी। अतः देश को चाहिए कि अपने नौकरशाहों के स्वार्थों को सिद्ध करने के स्थान पर देश के नागरिक के रोजगार बचाने की ओर बढे़। चीन से आयातित होने वाले माल पर आयात कर बढ़ाए और अपने नागरिकों के हितों को साधे न कि नौकरशाहों के हितों को।

मेलः bharatjj@gmail.com


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