ब्रिटेन के पक्ष में ब्रेग्जिट

By: Feb 5th, 2020 12:06 am

विकेश कुमार बडोला

लेखक, उत्तराखंड से हैं

ब्रिटेन में कई दिनों से यूरोपीय संघ से बाहर आने को लेकर उठापटक चल रही थी। इस प्रक्रिया को ब्रेग्जिट नाम दिया गया था। वहीं संघ में बने रहने को सार्वजनिक रूप में ब्रिमेन कहा जा रहा था। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून व्यक्तिगत रूप में यूरोपीय संघ में बने रहने के पक्षधर थे। यूरोपीय संघ से बाहर आने को लेकर संपूर्ण इंग्लैंड दो भागों में विभाजित हो चुका था…

विश्व की विभिन्न घटनाओं के मध्य ब्रिटेन का यूरोपीय यूनियन से बाहर होना एक महत्त्वपूर्ण घटना है। ब्रिटेन वासियों के लिए शुक्रवार 31 जनवरी 2020 को रात्रि ग्यारह बजे का समय तब एक बड़े उत्सव का समय बन गया, जब वहां की सरकार ने अधिसूचना जारी कर कहा कि अंततः ब्रिटेन यूनाइटेड यूनियन से बाहर हो चुका है। ब्रिटेन पिछले 47 वर्षों यानी 1973 से यूरोपीय संघ से जुड़ा हुआ था। हालांकि, लगभग आधे दशक तक यूयू का हिस्सा बने रहने पर ब्रिटेन के मूल नागरिकों के लिए अनेक तरह की समस्याएं उभरने लगी थीं और वे तब से लेकर अब तक देश के राजनीतिक नेतृत्व से आशा लगाए बैठे थे कि किसी तरह ब्रिटेन यूयू से बाहर हो। लोगों के संघर्ष और दबाव द्वारा अंततः 16 जून 2016 को ब्रिटेन में एक जनमत संग्रह का परिणाम आया, जिसमें 52 प्रतिशत लोगों ने यूयू से बाहर होने के अभियान ब्रेग्जिट के पक्ष में मतदान किया था। ब्रिटेन में कई दिनों से यूरोपीय संघ से बाहर आने को लेकर उठापटक चल रही थी। इस प्रक्रिया को ब्रेग्जिट नाम दिया गया था। वहीं संघ में बने रहने को सार्वजनिक रूप में ब्रिमेन कहा जा रहा था। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून व्यक्तिगत रूप में यूरोपीय संघ में बने रहने के पक्षधर थे। यूरोपीय संघ से बाहर आने को लेकर संपूर्ण इंग्लैंड दो भागों में विभाजित हो चुका था। चूंकि प्रधानमंत्री के ऊपर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रेग्जिट को लेकर अनेक प्रकार के दबाव थे अतः उन्हें इसके लिए ब्रिटेन के संविधान से अलग व्यवस्था के अधीन जनमत संग्रह कराना पड़ा। जनमत संग्रह में यूरोपीय संघ से बाहर आने के पक्ष में 1,74,10,742 जबकि संघ में बने रहने के लिए 1,61,41,241 मत डाले गए। ब्रेग्जिट के लिए मतों का अंतर 12,69,501 था। ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर होने वाला दूसरा देश है। पहला देश ग्रीनलैंड था।

ब्रिटेन द्वारा ईयू छोड़ने के बाद ईयू के सदस्यों देशों की संख्या अब 27 हो जाएगी। हालांकि संघ से बाहर होने के जनमत संग्रह को आधिकारिक रूप में प्रस्तुत करने और इस प्रक्रिया को वास्तव में पूरा करने में 2 वर्ष 7 महीने लग गए। यूरोपीय संघ की विधि-व्यवस्था के अनुसार ब्रिटेन को ब्रेग्जिट के समर्थन में एक अधिसूचना जारी करनी थी। इसमें उसे स्पष्ट करना था कि वह संघ से बाहर होना चाहता है। संघ से बहिर्गमन की शर्तों पर ब्रिटेन को इसके 27 सदस्य देशों के साथ वार्ता करनी थी। यद्यपि शर्तों के संबंध में हर देश के पास वीटो होती है और इसके अधीन प्रदत्त शक्तियों के बल पर वे बहिगर्मन के इच्छुक देश के समक्ष कई बाधाएं प्रकट कर सकते हैं। ब्रेग्जिट से पूर्व यूरोपीय संघ 28 यूरोपियन देशों का एक समूह था। इसका आरंभ द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण ध्वस्ताधूत यूरोपीय देशों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन को संभालने तथा इन देशों के मध्य आर्थिक सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से हुआ था। संघ के कानूनों के अनुसार इसके सदस्य देशों की जनता बिना किसी वीजा शर्त या अन्य किसी प्रतिबंध के 28 देशों में आ-जा सकती है। यूयू के सदस्य राष्ट्रों के मध्य पिछले 47 वर्षों से जितनी भी व्यापारिक गतिविधियां होती रहीं, उन्हें पूरा करने के लिए भी केवल उन्हीं राष्ट्रीय कानूनों का पालन करना होता था, जो एक देश में प्रचलित होते हैं। संघ के अनुबंध में स्पष्ट है कि सदस्य देशों की जनता और व्यापारिक वस्तुओं-सेवाओं का आदान-प्रदान राष्ट्रीय प्रतिबंधों से मुक्त रहेगा। एक प्रकार से विश्व में मुक्त व्यापार की अवधारणा की जनक यूयू की नीतियां ही हैं। नब्बे के दशक में यूरोपीय संघ ने अर्थव्यस्था को नई दृष्टि देने के उद्देश्य से एक आम मुद्रा चलाई जिसे यूरो कहा जाने लगा। आज भी यूरो दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी मुद्रा है। हो सकता है आधुनिक दुनिया में व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा करने व अनेक व्यावसायिक हित साधने की इच्छा से किसी एक देश या अनेक देशों को अपनी ऐसी परंपराए प्रचलन से कुछ समय के लिए विरक्ति हो जाए, लेकिन कालांतर में युवावस्था से प्रौढ़ावस्था में पहुंच चुकी स्वदेशी पीढ़ी अपनी सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक अवधारणाओं को कितने लगाव से आत्मसात करती है, इस आधार पर कोई देश हमेशा किसी एक रीति या नीति पर स्थिर नहीं रह सकता। ब्रिटने को ब्रेग्जिट के संदर्भ में इसी जनभावना से संचालित होना पड़ा। ब्रिटेन ही नहीं, इससे पूर्व ग्रीनलैंड इसी तरह के जनज्वार में यूरोपीय संघ से अलग हो गया था। अब भी फ्रांस, हालैंड, डेनमार्क, स्कॉटलैंड जैसे देश संघ से बाहर आने को लेकर दो वैचारिक धु्रवों में विभाजित है।

ब्रिटेन के लिए संघ से बाहर आना आसान नहीं था। ऐसा नहीं कि जिन उनचास प्रतिशत लोगों ने ब्रेग्जिट का विरोध किया वे सभी ब्रिटेन के मूल निवासी हैं। वास्तव में ये लोग पिछली आधी सदी से ब्रिटेन में रह रहे अप्रवासी हैं, जो ब्रिटेन के विभिन्न निकटवर्ती देशों सहित मध्य एशिया के मुस्लिम देशों और दक्षिण-पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि देशों से जाकर ब्रिटेन में जाकर येन-केन-प्रकारेण बस गए। आरंभ में तो ये लोग ब्रिटेन में निचले स्तर पर छोटे-मोटे काम किया करते थे और इनका ब्रिटेन के संसदीय चुनाव में कोई मताधिकार नहीं था परंतु शनैः-शनैः इन्होंने सत्ता के लालची स्थानीय नेताओं की सहायता से अवैध नागरिकता, मताधिकार प्राप्त कर वहां का संसदीय जनप्रतिनिधित्व प्राप्त कर लिया। ब्रेग्जिट के विरोध में इनका मत प्रतिशत उनचास तक पहुंच गया था। यही स्थिति यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों की भी है। इन देशों में मुस्लिम अप्रवासी नागरिक कालांतर से स्थानीय स्थायी नागरिक बनकर राष्ट्रों की परंपरा से खिलवाड़ कर रहे हैं। परिणामतः जिस उद्देश्य से यूरोपीय संघ संगठित हुआ था, वह व्यावसायिक संतुलन पीछे छूट चुका है और आयातित अप्रवासी मुस्लिम आबादी संसद से लेकर सड़क तक अतिक्रमण व अराजकता के बल पर अधिकार मांगती जा रही है। कैमरून से लेकर थेरेसा में पर ब्रेग्जिट में बने रहने का चौतरफा राजनीतिक दबाव था। वस्तुतः सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी के समक्ष ब्रेग्जिट के संबंध में विपक्षी लेबर पार्टी द्वारा संसदीय बाधाएं उत्पन्न की जा रही थीं। इसी कारण थेरेसा में ने भी जुलाई 2019 में पद त्याग दिया। उनके स्थान पर बोरिस जॉनसन कंजर्वेटिव पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री नियुक्त हुए परंतु वे भी आम चुनाव से पूर्व संसद को ब्रेग्जिट के संबंध में आश्वस्त नहीं कर सके। ब्रेग्जिट के लिए जनव्यग्रता को देखते हुए कंजर्वेटिव पार्टी ने समय से पूर्व आम चुनाव में जाने का निर्णय लिया। दिसंबर 2019 में आम चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी को 1987 के बाद सबसे बड़ा जनादेश मिला। कंजर्वेटिव को लेबर पार्टी पर कुल 80 संसदीय सीटों की बढ़त मिली। कंजर्वेटिव को 533 में से 345 सीटें मिलीं। ब्रिटेन में इस आम चुनाव का मुख्य मुद्दा ब्रेग्जिट बना। बोरिस ने लोगों को आश्वस्त किया था कि किसी तरह बहुमत से सत्तारूढ़ होने पर वे जनवरी 2020 तक ब्रिटेन को यूरोपीय यूनियन से बाहर कर देंगे। अंततः उन्होंने अपना चुनावी वचन निभाया और ब्रिटेन आधी सदी के संघर्ष के बाद यूरोपीय संघ से बाहर हो गया।


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