हिंदू जीवन पद्धति

By: Feb 8th, 2020 12:20 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

इसमें शिष्यों के सम्मुख एक आदर्श योगी का उदाहरण प्रस्तुत हो गया। वे जो कुछ पढ़ते थे, उसे प्रत्यक्ष देखते भी थे। स्वामी जी का यह छोटा सा निवास स्थान आश्रम का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत करने लगा। यह ऐसा लगता था कि जैसे किसी भारतीय महावृक्ष का पौधा अमरीका की धरती पर लगा दिया गया हो। उसके लिए एक भारतीय माली भी नियुक्त कर दिया गया हो। राजयोग से संबंधित व्याख्यानों में नियमित रूप से आने वाले शिष्यों के अलावा अनेक दार्शनिक, वैज्ञानिक और अध्यापक भी सम्मिलित होते थे। राजयोग संबंधी व्याख्यानों के संकलन से राजयोग नामक पुस्तक तैयार हो गई। उसके परिशिष्ट के रूप में पातंजल योगदर्शन का भाष्य भी स्वामी जी ने जोड़ दिया है। इसका प्रकाशन हुआ और मांग इतनी बढ़ गई कि कुछ ही सप्ताहों में इसके तीन संस्करण करने पड़े। स्वामी जी ने प्रचार कार्य में मदद करने वाले प्रतिष्ठित शिष्यों का एक दल बना लिया था। इसमें पुरुष भी थे। इनमें कुछ भूतपूर्व ईसाई प्रचारक भी थे। कुछ समय बाद विख्यात गायिका मैडम कैल्वे ने स्वामी जी का शिष्यत्व ग्रहण किया। न्यूयार्क समाज के समृद्धशाली दंपति श्रीमान व श्रीमति फ्रांसिस लीगेट और कुमारी जो कैक्लिओड ने भी स्वामी जी का शिष्यत्व ग्रहण कर लिया। ये सज्जन भी प्रचार कार्य में पूरा-पूरा सहयोग देने लगे। स्थानीय डिकसन सोसायटी के सदस्यों ने हिंदू जीवन पद्धति के महत्त्व को समझकर हिंदू आदर्श पर जीवन का निर्माण करने के लिए उत्साहपूर्वक कार्य आरंभ कर दिया। अपने चारों तरफ लौकिक सुख भोगों के लिए दौड़ते-भागते अमरीका के लोगों को देखकर समस्त क्रियाकलाप में भोग वासना की ही प्रेरणा से प्रेरित नर-नारियों को देखकर कभी-कभी स्वामी जी का दिल किसी एकांत स्थान में चले जाएं,हर समय भीड़-भाड़ में घिरे रहने की वजह से भी वे अपने आप को कुछ उदास सा महसूस कर रहे थे। फिर उन्होंने इस सबसे बचकर कुछ दिन आराम करने का निश्चय किया। सेंट लारेंस नदी के बीच में एक द्वीप था,जिस पर इनकी एक शिष्या की बड़ी मनोरम कुटिया थी। स्वामी जी को उस शिष्या ने कुछ दिनों के लिए अपने साथ रहने के लिए कहा, स्वामी जी उसकी बात मान कर एक दो शिष्य-शिष्याओं को साथ लेकर वहां के लिए रवाना हो गए। सात सप्ताह तक स्वामी जी वहां ठहरे। इस प्रवास में दिव्य वाणी की वर्षा में लगे रहे। इंग्लैंड से वेदांत की अनुरागिणी कुमारी हेनरी एटामुलर ने स्वामी जी को निमंत्रित दिया। साथ ही एक दूसरे स्नेही ई.टी.स्टडीं महोदय स्वामी जी को लंदन आने के लिए बार-बार खत लिख रहे थे। 


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