कोरोना की जड़ें वैश्वीकरण में?

By: Mar 24th, 2020 12:06 am

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

समय क्रम में बीसवीं शताब्दी के ही अंतिम हिस्से में गरीबी के कारण, साफ-  सुथरे इंजेक्शन का उपयोग न करने के कारण, नागरिकों को पर्याप्त पौष्टिक भोजन न मिलने के कारण अथवा रोजगार न मिलने के कारण, उस एचआईवी वायरस ने एड्स का रूप धारण कर लिया जो बाद में पूरे विश्व में फैला। इसके बाद वर्तमान इक्कीसवीं शताब्दी के पहले दशक में चीन के ग्वांगडांग प्रांत में सार्स वायरस का प्रकोप उत्पन्न हुआ…

बीसवीं शताब्दी के अंतिम हिस्से में अफ्रीका में एचआईवी वायरस का प्रकोप बढ़ा था जो कि सामान्य रूप से एड्स के नाम से जाना जाता है। हुआ यूं कि उस शताब्दी के प्रारंभ में, यानी 1900 से 1930 की अवधि में, फ्रांस ने अफ्रीका के कई देशों पर कब्जा किया था और वहां बेरहमी से शासन किया। फ्रांस ने इन उपनिवेशों की जनता को जबरन उनके गांवों से उखाड़ा और शहर में लाकर बसाया। अकसर इन श्रमिकों के परिवार इनके साथ नहीं आए और शहरों में वैश्यावृत्ति का विस्तार हुआ। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये श्रमिक शारीरिक एवं मानसिक तनाव में काम करते थे। इस तनाव के कारण इनके इम्यून या प्रतिरोधक क्षमता का हृस हुआ और एचआईवी वायरस जो कि पशुओं में सामान्य रूप से रहता है वह कूद कर मनुष्य में प्रवेश कर गया जैसे बीमार ताकतवर व्यक्ति को कमजोर व्यक्ति भी पटक देता है। समय क्रम में बीसवीं शताब्दी के ही अंतिम हिस्से में गरीबी के कारण, साफ-  सुथरे इंजेक्शन का उपयोग न करने के कारण, नागरिकों को पर्याप्त पौष्टिक भोजन न मिलने के कारण अथवा रोजगार न मिलने के कारण, उस एचआईवी वायरस ने एड्स का रूप धारण कर लिया जो बाद में पूरे विश्व में फैला। इसके बाद वर्तमान इक्कीसवीं शताब्दी के पहले दशक में चीन के ग्वांगडांग प्रांत में सार्स वायरस का प्रकोप उत्पन्न हुआ। ग्वांगडांग चीन के आर्थिक विकास का केंद्र है। वहां पर चीन के अंदरूनी हिस्सों से बड़ी संख्या में श्रमिकों को लाकर बैरकों में रखा गया। इस अप्राकृतिक वातावरण में इनकी पुनः इम्यून सिस्टम कमजोर हो गई और सार्स का वायरस जो कि सामान्य रूप से पशुओं में रहता है वह पुनः कूद कर मनुष्यों में आया और सार्स का प्रकोप पूरे विश्व में फैला। लगभग यही स्थिति कोरोना की है। वुहान राज्य ग्वांगडांग के नजदीक है। यह भी चीन के आर्थिक विकास का एक प्रमुख केंद्र है। यहां पर भी ग्वांगडांग जैसी अप्राकृतिक परिस्थितियों में श्रमिकों को रखा जाता है जिसके कारण उनके इम्यून सिस्टम कमजोर हुए प्रतीत होते हैं और कोरोना वायरस पशुओं से कूद कर मनुष्यों में प्रवेश कर गया। इसके बाद इसने म्यूटेट किया यानी अपने रूप का परिवर्तन किया और फिर संपूर्ण विश्व में फैल गया।

उपरोक्त उदाहरणों से संकेत मिलता है कि प्रकृति को एक गति से अधिक तेज दौड़ाने के कारण ही इस प्रकार के वायरस उत्पन्न हुए हैं। आने वाले समय के लिए हमें तय करना होगा कि हम तीव्र आर्थिक विकास के साथ कोरोना जैसे संकटों को अपनाएंगे अथवा आर्थिक विकास की गति को थोड़ा धीमा कर ऐसे संकटों से मुक्त रहेंगे। कोरोना वायरस के कारण आज हमारी अर्थव्यवस्था संकट में आ गई है। पर्यटन शून्यप्राय हो गया है। ऑटो पार्ट और कच्चे केमिकल की सप्लाई चीन से आना बंद हो गई है जिसके कारण अपने देश में कार और दवाओं का उत्पादन प्रभावित होने को है। प्रश्न है कि जिन ऑटो पार्ट्स का हम चीन से आयात कर रहे हैं क्या हम उन्हें अपने देश में नहीं बना सकते थे? सच यह है कि चीन से आयातित किए गए ऑटो पार्ट्स सस्ते पड़ते हैं, लेकिन इसके साथ-साथ विश्व अर्थव्यवस्था से हमारा जुड़ाव बढ़ता है और कोरोना जैसे वायरस से हमारी अर्थव्यवस्था संकट में आ जाती है। तुलना में यदि हम उन्हीं ऑटो पार्ट्स को स्वयं ही बनाते तो कुछ महंगे पड़ते, लेकिन हम स्वायत्त रहते। हमारा विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ाव कम रहता। अर्थात यदि हम सस्ते माल के लालच में विश्व अर्थव्यवस्था से गहरा जुड़ाव करते हैं तो उस गहरे जुड़ाव के साथ ही कोरोना जैसे वायरस का हम पर प्रकोप बढ़ता है। आज यदि हम चीन से ऑटो पार्ट्स का आयात नहीं कर रहे होते तो कोरोना वायरस के कारण हमारी अर्थव्यवस्था पर संकट कम आता। इस विषय को एक किसान के उदाहरण से समझा जा सकता है। मान लीजिए किसान के सामने दो विकल्प हैं। वह नीम के पानी का उपयोग कीटनाशक के रूप में कर सकता है जो कि महंगा पड़ता है। अथवा वह शहर से रासायनिक कीटनाशक लाकर छिड़क सकता है जो कि तुलना में सस्ता पड़ता है। वह यदि नीम का उपयोग करता है तो शहर में हड़ताल हो जाए, आंदोलन हो जाए, कोरोना जैसी महामारी फैल जाए अथवा बाढ़ के कारण रास्ते बंद हो जाएं, तो भी उसकी खेती प्रभावित नहीं होती क्योंकि वह अपने नीम के वृक्षों से कीटनाशक बनाकर उपयोग करता रहता।

इसकी तुलना में यदि उसने शहर से रासायनिक कीटनाशक के आधार पर आपनी खेती की और यदि उस समय हड़ताल, आंदोलन या महामारी के कारण शहर से संपर्क टूट गया तो वह असहाय हो जाएगा। वह अपने नीम के पेड़ को काट चुका होगा चूंकि उसे अब नीम से कीटनाशक बनाने की जरूरत नहीं रही और शहर से कीटनाशक की उपलब्धि नहीं हो पाएगी चूंकि संपर्क कट गया। फलस्वरूप उसकी फसल पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। किसान को तय करना होगा कि वह महंगे नीम के कीटनाशक का उपयोग करते हुए अपने को स्वायत्त रखेगा अथवा सस्ते रासायनिक कीटनाशक को शहर से लाते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को रिस्क में डालेगा। यही परिस्थिति हमारी अर्थव्यवस्था की है। हमें तय करना है कि हम महंगे ऑटो पार्ट्स स्वयं बना कर अपने कार उद्योग को जीवित रखेंगे अथवा चीन से सस्ते ऑटो पार्ट्स का आयात कर अपने कार उद्योग को अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव पर छोड़ देंगे। इन दोनों पक्षों के बीच हमारी अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था से एक उचित स्तर का जुड़ाव होता है जिसके आगे बढ़ने पर लाभ कम और रिस्क ज्यादा हो जाता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की परिस्थिति इससे भिन्न होती है। उन्हें आपकी अर्थव्यवस्था के रिस्क से कोई सरोकार नहीं होता है। उनका लक्ष्य होता है लाभ कमाना। इसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियां चाहती हैं कि हर देश अपने को अधिकाधिक विश्व अर्थव्यवस्था से जोड़ दे। वैश्विक व्यापार में ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों की पैठ होती है। वर्तमान में जो कोरोना का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा है वह इसलिए कि हमने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्वार्थों को बढ़ाया है और अपने को उन स्थानों पर भी विश्व अर्थव्यवस्था से जोड़ा है जहां आवश्यक नहीं था। इसलिए कोरोना वायरस के प्रकोप ने हमारी अर्थव्यवस्था को ठप कर दिया है। यदि हम अधिकतम के स्थान पर उचित स्तर का बहुराष्ट्रीयकरण अपनाते और कार उद्योग के ऑटो पार्ट्स स्वयं बनाते रहते तो हमें कोरोना का यह संकट न झेलना पड़ता।

ई-मेलः bharatjj@gmail.com


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