पहाड़ी क्षेत्रों का आर्थिक विकास

By: Mar 17th, 2020 12:07 am

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान तेजी से गिर रहा है, मैन्युफेक्चरिंग एवं सेवा क्षेत्र बढ़ रहे हैं। इसका मुख्य कारण है कि विश्व में कृषि उत्पादों की मांग सीमित है। विश्व की जनसंख्या में मामूली वृद्धि हो रही है, तदनुसार खाद्य पदार्थों की खपत में भी मामूली ही वृद्धि हो रही है। इसमें कुछ वृद्धि अंडे एवं मीट की खपत के कारण हो रही है, लेकिन वर्तमान में स्वास्थ्य कारणों से तमाम लोग शाकाहारी भोजन को अपना रहे हैं…

अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख क्षेत्र होते हैंः कृषि, माल का उत्पादन एवं सेवा। मैन्युफेक्चरिंग में कागज, सीमेंट, कार इत्यादि माल का उत्पादन आता है जोकि भौतिक वस्तुएं हैं। सेवा क्षेत्र में होटल, संगीत, यातायात, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, बैंक आदि आते हैं जिनमें किसी माल का उत्पादन नहीं होता, लेकिन उपभोक्ता किसी सेवा की खपत करता है। वर्ष 1951 में हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का हिस्सा 56 प्रतिशत, मैन्युफेक्चरिंग का 14 प्रतिशत और सेवा का 30 प्रतिशत था। वर्तमान में कृषि का हिस्सा 56 प्रतिशत से घटकर मात्र 16 प्रतिशत रह गया है जबकि मैन्युफेक्चरिंग 14 प्रतिशत से बढ़कर 30 प्रतिशत पर पहुंच गई है और सेवा क्षेत्र 30 प्रतिशत से बढ़कर 54 प्रतिशत पर पहुंच गई है। अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान तेजी से गिर रहा है, मैन्युफेक्चरिंग एवं सेवा क्षेत्र बढ़ रहे हैं। कृषि के हिस्से में गिरावट आने का मुख्य कारण है कि विश्व में कृषि उत्पादों की मांग सीमित है। विश्व की जनसंख्या में मामूली वृद्धि हो रही है, तदनुसार खाद्य पदार्थों की खपत में भी मामूली ही वृद्धि हो रही है। इसमें कुछ वृद्धि अंडे एवं मीट की खपत के कारण हो रही है, लेकिन वर्तमान में स्वास्थ्य कारणों से तमाम लोग शाकाहारी भोजन को अपना रहे हैं। साथ-साथ ब्राजील जैसे देशों में गन्ने से पेट्रोल बनाया जा रहा है, लेकिन इसकी लागत बहुत ज्यादा आती है। इसलिए कृषि उत्पादों की मांग कम है। कृषि क्षेत्र में गिरावट वैश्विक स्तर पर हो रही है। मैन्युफेक्चरिंग की स्थिति सामान्य है, वह इसलिए कि किसी भी परिवार द्वारा उत्पादित माल की खपत की एक सीमा होती है जैसे आप के घर में यदि एक फ्रीज है तो आप दूसरा फ्रीज नहीं खरीदेंगे। फ्रीज, टेलीविजन, वाशिंग मशीन खरीद लेने के बाद आप के द्वारा उत्पादित माल की खपत में वृद्धि कम ही होगी। तुलना में सेवा क्षेत्र में खपत उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। जैसे आप वर्ष में एक बार विदेश पर्यटन के स्थान पर पांच बार भी कर सकते हैं। आप नए-नए संगीत को सुन सकते हैं और यदि आप चाहें तो किसी कम्प्यूटर प्रोग्रामर को कह सकते हैं कि आपकी इच्छा अनुसार कोई ऐप अथवा सिनेमा बनाए। इसलिए सेवा क्षेत्र में खपत की अपार संभावनाएं हैं और इस क्षेत्र में वृद्धि होती ही जा रही है। इसलिए आज अमरीका जैसे विकसित देशों की आय में कृषि का हिस्सा मात्र एक प्रतिशत मैन्युफेक्चरिंग का 19 प्रतिशत और सेवा का 80 प्रतिशत है। हम भी इसी दिशा में चल रहे हैं। इस परिस्थिति में पहाड़ी क्षेत्रों को तय करना है कि वे इन तीनों में से किस क्षेत्र का सहारा लेकर अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारेंगे।

कृषि क्षेत्र में स्पष्ट सीमाएं हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में खेत बनाने का क्षेत्रफल सीमित है और ऊंचे-नीचे होने के कारण यहां खेती करना भी कठिन है। कृषि में कुछ विशेष उत्पादों में संभावनाएं हो सकती हैं जैसे गुलाब अथवा ग्लेडियोलस फूल के उत्पादन में अथवा सेब के बागीचों में परंतु यह सर्वव्यापी मॉडल होता नहीं दिख रहा है। इसलिए पहाड़ी क्षेत्रों को मैन्युफेक्चरिंग तथा सेवा क्षेत्र में से एक का चयन करना है। मैन्युफेक्चरिंग में पहाड़ी क्षेत्रों की अनुकूलता कम है। किसी माल के उत्पादन में ढुलाई का खर्च महत्त्वपूर्ण होता है। पहाड़ी क्षेत्र में मैन्युफेक्चरिंग के उद्योग लगाने के लिए आपको कच्चे माल को मैदान से पहले पहाड़ पर लाना होगा और फिर बनाए हुए माल को पुनः नीचे ले जाना होगा। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े शहर कम होते हैं। अतः यदि आपकी बिजली की मोटर फूंक गई तो पहाड़ी क्षेत्र में दूसरी मोटर लाकर उसको लगाने में तीन दिन का समय लग जाता है जबकि मैदानी क्षेत्र में यह कार्य छह घंटे में हो सकता है। बिजली की सप्लाई भी मैदानी क्षेत्रों में तुलना में अच्छी होती है। अतः पहाड़ी क्षेत्रों में मैन्युफेक्चरिंग के विस्तार की संभावनाएं कम हैं। देखा गया कि हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्र में बद्दी और उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र में काशीपुर और जम्मू-कश्मीर के मैदानी क्षेत्र में जम्मू में ही मैन्युफेक्चरिंग उद्योग लग रहे हैं। यानी पहाड़ी राज्य के भी जो मैदानी क्षेत्र हैं उनमें ही मैन्युफेक्चरिंग उद्योग लग रहे हैं। प्रमुख पहाड़ी क्षेत्र में उद्योगों का सर्वथा अभाव है। इसका एक पक्ष यह भी है कि यदि पहाड़ी राज्य मैन्युफेक्चरिंग के आधार पर बढ़ते हैं तो पहाड़ी राज्यों के शुद्ध पहाड़ी क्षेत्रों से राज्य के ही मैदानी क्षेत्र को पलायन जारी रहता है जैसे उत्तराखंड के चमोली जिले के युवक आज उत्तराखंड के ही मैदानी क्षेत्र काशीपुर में जाकर उद्योगों में रोजगार कर रहे हैं। इस पलायन का सामरिक महत्त्व भी है। यदि किसी परिस्थिति में देश के पहाड़ी क्षेत्र में आक्रमण हुआ तो हम पाएंगे कि हमारे पहाड़ खाली हो चुके हैं और हमारी सेना को समर्थन एवं सहायता और सूचना देने के लिए स्थानीय लोगों का नितांत अभाव है। इसलिए पहाड़ी क्षेत्रों के लिए मैन्युफेक्चरिंग के आधार पर आगे बढ़ना कठिन दिखता है।

तुलना में सेवा क्षेत्र में परिस्थिति बिलकुल बदल जाती है। यहां जो पहाड़ की दुर्गमता है उसके साथ पहाड़ का सौंदर्य भी सामने आता है जैसे स्विट्जरलैंड के पहाड़ों में उन्होंने यूनिवर्सिटी एवं अस्पताल बनाए हैं। हमारे नैनीताल के पास भवाली में किसी समय क्षय रोग के मरीजों के लिए सेनिटोरियम बनाया गया था। सोच थी कि वहां की शुद्ध वायु एवं प्राकृतिक वातावरण में मरीज को स्वास्थ्य लाभ शीघ्र होगा। अतः पहाड़ी राज्य यदि सेवा क्षेत्र जैसे सॉफ्टवेयर पार्क, यूनिवर्सिटी, अस्पताल इत्यादि पर ध्यान दें तो इनकी जो दुर्गमता है वह नुकसानदेह होने के स्थान पर लाभप्रद हो जाएगी। पहाड़ी क्षेत्रों में हवाई पट्टियां बनाई जा सकती हैं जहां पर व्यक्ति आसानी से पहुंच सकता है जैसे केदारनाथ में हेलिकाप्टर सर्विस चलती है। पहाड़ी क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य में सेवा क्षेत्र अच्छी तरह से चल सकता है जैसे पहाड़ी क्षेत्र के विद्यालयों में छात्रों का रिजल्ट ज्यादा अच्छा होने की संभावना है क्योंकि प्राकृतिक वातावरण सुलभ है। इस परिस्थिति में पहाड़ी राज्यों को तय करना है कि वे जल विद्युत बांध बनाकर उससे बिजली बनाएंगे जिससे मैन्युफेक्चरिंग के लिए सस्ती बिजली उपलब्ध हो सके अथवा उनके सामने दूसरा उपाय है कि वे नदी को स्वछन्द बहने दें और नदियों के किनारे सॉफ्टवेयर पार्क, अस्पताल और यूनिवर्सिटी बनाए जिससे सेवा क्षेत्र का कार्य हो सके या तो पहाड़ी राज्यों को बांध बनाना होगा या बांध नहीं बनाने होंगे। इन दोनों को साथ में लेकर चलना संभव नहीं है। अतः पहाड़ी राज्यों को तय करना होगा कि वे मैन्युफेक्चरिंग के आधार पर आगे बढ़ेंगे अथवा सेवा क्षेत्र के आधार पर। मेरा मानना है कि उनके लिए सेवा क्षेत्र ज्यादा अनुकूल होगा क्योंकि इसमें बिजली की खपत मैन्युफेक्चरिंग की तुलना में दसवां हिस्सा होती है। जल विद्युत बांधों को न बनाने से जो बिजली उत्पादन का अभाव होगा वह यहां प्रभावी नहीं होगा। पहाड़ी क्षेत्र के सेवा क्षेत्र को जो न्यून मात्रा में बिजली चाहिए उससे मैदानी क्षेत्र से पहाड़ में पहुंचाया जा सकता है। अतः पहाड़ी राज्यों को अपनी नदियों पर बांध बनाने की नीति को मेन्युफैक्चरिंग अथवा सेवा क्षेत्र में चयन करते हुए तय करना होगा।

ई-मेलः bharatjj@gmail.com


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