भारतीय नागरिकता और अंबेडकर

By: Mar 14th, 2020 12:06 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

अपनी खोई भारतीय नागरिकता वापस पाने के लिए प्रयासरत यह हिंदू-सिख समाज मोटे तौर पर दलित हिंदू समाज है, जो 1947 से पाकिस्तान- बांग्लादेश में फंसा हुआ है और वहां की सरकारों ने न उस समय उनको भारत में आने दिया था और न अब आने दे रही है। 1947 में पाकिस्तान से हिंदू-सिखों के भारत में पलायन के बाद पश्चिमी पंजाब, पूर्वी बंगाल और कुछ सीमा तक सिंध में अब केवल दलित समाज के हिंदू-सिख बचे थे, जिन्हें वहां की सरकार भारत में आने नहीं दे रही थी। यह दलित हिंदू-सिख समाज का दुर्भाग्य ही था कि पाकिस्तान सरकार उन्हें बंधक बनाने में तुली हुई थी…

नागरिकता संशोधन अधिनियम के अंतर्गत पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान से भारत आने वाले अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता वापस देने से लाभान्वित होने वाला समाज कौन सा है? यह मूल प्रश्न है, जिस पर चर्चा करना अनिवार्य है। अपनी खोई भारतीय नागरिकता वापस पाने के लिए प्रयासरत यह हिंदू-सिख समाज मोटे तौर पर दलित हिंदू समाज है, जो 1947 से पाकिस्तान- बांग्लादेश में फंसा हुआ है और वहां की सरकारों ने न उस समय उनको भारत में आने दिया था और न अब आने दे रही है। 1947 में पाकिस्तान से हिंदू-सिखों के भारत में पलायन के बाद पश्चिमी पंजाब, पूर्वी बंगाल और कुछ सीमा तक सिंध में अब केवल दलित समाज के हिंदू-सिख बचे थे, जिन्हें वहां की सरकार भारत में आने नहीं दे रही थी।

यह दलित हिंदू-सिख समाज का दुर्भाग्य ही था कि पाकिस्तान सरकार उन्हें बंधक बनाने में तुली हुई थी। पाकिस्तान के अधिकांश मुसलमान हिंदुओं की तथाकथित उच्च जातियों से मतांतरित हुए थे। बलोच और पठान बौद्ध मत से मतांतरित हुए थे। चाहे इन्होंने इस्लाम मत को स्वीकार कर लिया था, लेकिन जातिगत अभिमान को इन्होंने अभी भी संभालकर रखा हुआ था। इसलिए बड़ा प्रश्न था कि नए बने पाकिस्तान में सफाई का काम, मैला उठाने का काम कौन करेगा? पाकिस्तान के नगरों में तो यह समस्या और भी भयंकर थी। यह काम मुसलमान जाट, मुसलमान राजपूत या फिर मुसलतान बने खत्री तो करेंगे नहीं। सैयद मुसलमान तो यह काम कर ही नहीं सकते, क्योंकि वे अरब की उच्च नस्ल के लोग थे, जिन्होंने कभी हिंदुस्तान को जीता था। इसलिए इह काम को दलित हिंदू समाज से ही करवाया जा सकता था। पाकिस्तान में अब भी उनसे मोटे तौर पर यही काम करवाया जा रहा है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है। पाकिस्तान रेंजर सिंध की ओर से 26 अगस्त, 2019 को अनेक पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे, लेकिन दर्जी, नाई, बढ़ई, रंगसाज, मोची, झीवर और सफाई कर्मचारी के पदों के लिए केवल गैर-मुसलमान ही आवेदन कर सकते थे, ऐसा स्पष्ट कर दिया गया था। अंबेडकर को यही अंदेशा था कि दलित समाज को पाकिस्तान में उन्हीं कामों के लिए बंधक बनाकर रखा हुआ था, जिसे करने में मुसलमान अपनी हतक (बेइज्जती) समझता है। इसलिए पाकिस्तान (उस समय बांग्लादेश भी इसका भाग था) सरकार इन दलित हिंदुओं को अपने यहां से आने नहीं दे रही थी। वे एक प्रकार से वहां बंधक बना लिए गए थे। जिन्ना ने उन्हें अपनी मीठी-मीठी बातों से धोखा देने की भी कोशिश की। जिन्ना वहां की संविधान सभा में उनको ललचा रहे थे कि पाकिस्तान में भी सभी को बराबर के अधिकार होंगे।

ऐसा भ्रम पैदा करने के लिए जिन्ना ने ऐसे ही एक दलित जोगेंद्र नाथ मंडल को पाकिस्तान का विधि मंत्री भी बना दिया था। दलित हिंदू-सिख समाज को बंधक बनाकर रखने का यह प्रयास केवल पाकिस्तान में ही नहीं हो रहा था, हैदराबाद में भी यही हो रहा था। अंग्रेजों के चले जाने के बाद उन्हीं साम्राज्यवादी शक्तियों की शह पर हैदराबाद के निजाम ने भी हैदराबाद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया था। निजाम के पूर्वजों ने मध्य एशिया से आकर यहां के लोगोें को गुलाम बनाकर अपना राज्य स्थापित किया था। निजाम अपने राज्य में मुसलमानों की संख्या बढ़ाने के लिए दलित हिंदू समाज को जबरदस्ती मुसलमान बना रहा था। निजाम भी वही भाषा बोल रहा था, जो कराची में जिन्ना बोल रहे थे। पूर्व बंगाल (जो अब बांग्लादेश कहलाता है) की हालत तो और भी खराब हो रही थी। पूर्वी बंगाल, पाकिस्तान के हिस्से में आया था और पश्चिमी बंगाल भारत में था। पूर्वी बंगाल का दलित हिंदू समाज, जिसे बंगाल में ‘नामशूद्र’ कहा जाता है, जिन्ना की चिकनी-चुपड़ी बातों के धोखे में आ गया। ऊपर से कांग्रेस का आग्रह था कि वे अब बदले राजनीतिक परिवेश में भारतीय नागरिकता को भूलकर अपनी नई पाकिस्तानी नागरिकता को ही स्वीकार करें। दलित हिंदू समाज को पाकिस्तान में ही बने रहने का आग्रह उस समय की सी.पी.आई के नेता भी कर रहे थे,क्योंकि सी.पी.आई भारत विभाजन की पक्षधर थी और पाकिस्तान के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा रही थी। लेकिन जल्दी ही पूर्वी बंगाल में दलित हिंदू समाज को इस्लाम में मतांतरित किया जाने लगा। जाहिर है इसका दलित समाज विरोध करता। उसने किया भी,लेकिन अब इस हिस्से की सत्ता उन लोगों के हाथ में आ गई थी,जो स्वयं मतांतरण के पक्ष में थे। ऐसी स्थिति में दलित हिंदू समाज के लोग भागकर पश्चिमी बंगाल और त्रिपुरा में आने लगे।

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmailcom


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