सामूहिक आचरण से कोरोना को ‘न’

By: Mar 18th, 2020 12:05 am

अजय पाराशर

लेखक, धर्मशाला से हैं

व्यक्तिगत या सामूहिक स्वच्छता जीवन जीने का एक ढंग है। हम इसमें कितना सामंजस्य बिठा पाते हैं, यह बात दूसरी है। हिमाचल के संदर्भ में बात करें तो हम अपने आपको एक तरह से भाग्यशाली मान सकते हैं कि यहां अधिकांश स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व काफी कम है, लेकिन एहतियाती उपाय तो करने ही होंगे-व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों पर…

एॅनडेमिक अर्थात् क्षेत्र विशेष, एॅपिडेमिक अर्थात् देशीय या कई क्षेत्रों में एक साथ फैलने वाली और वैश्विक बीमारी अर्थात् पेनडेमिक के मध्य केवल इतना ही फासला है कि महामारियां होने के बावजूद एॅनडेमिक एक क्षेत्र विशेष में फैलती है, एॅपिडेमिक कई क्षेत्रों तक मार करती है, जबकि पेनडेमिक होने पर यह कोरोना की तरह पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लेती है। संक्रमण से कोरोना चीन से होता हुआ लगभग पूरी दुनिया में फैल चुका है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि चीन में भले ही मरने वालों की संख्या विश्व में अब तक सबसे ज्यादा है, पर संक्रमित व्यक्तियों का आंकड़ा इतना घट चुका है कि उसने अपने अधिकांश अस्थायी अस्पताल बंद कर दिए हैं। कोरोना की भयावहता को देखते हुए अमरीका सहित कई देश अपने देश में आपातकाल की घोषणा कर चुके हैं। भले ही इस महामारी ने लॉक डाउन वाली परिस्थितियां पैदा करते हुए इटली जैसे विकसित देश में हजारों लोगों को उनके घरों में नजरबंद होने पर मजबूर कर दिया है, लेकिन इटली और ईरान में मानवता का असली चेहरा सामने आ रहा है। दोनों देशों में मरीजों की संख्या बढ़ने पर बुजुर्गों या अधिक उम्र वाले व्यक्तियों के इलाज को हाशिए पर डालने की बातें सामने आ रही हैं। इस महामारी से मानवीय सभ्यता के कई चेहरे सामने आ रहे हैं, जिनमें सबसे जरूरी है-व्यक्तिगत एवं सामूहिक आचरण, लेकिन इन सबके मध्य सबसे दुःखद पहलू है-सोशल प्लेटफॉर्म को ऐसी भयावह परिस्थितियों में भी समाज को बांटने के हथियार के रूप में पेश इस्तेमाल करना। आज सुबह व्हाट्सऐप खोलने पर जो पहला संदेश मिला उसमें एक समुदाय विशेष के जीवन जीने के ढंग को लेकर कई नकारात्मक बातें की गई थीं और अपने समुदाय की प्रशंसा में कसीदे पढ़ते हुए उसकी अच्छी बातों को सराहा गया था। हम किसी भी मौके पर घृणा फैलाने से बाज नहीं आ रहे। बेहतर होता कि इन तमाम बातों को किसी समुदाय से न जोड़ते हुए भारतीयता से जोड़ा जाता तो सामुदायिक सद्भाव के साथ इस वैश्विक महामारी से इकट्ठे लड़ने में मदद मिलती। बीमारी धर्म देखकर किसी को पकड़ती या छोड़ती नहीं। सभी धर्मों और समुदायों में कुछ न कुछ अच्छा या बेहतर होता ही है। भले ही चीन को कोरोना का जनक माना जा रहा है, लेकिन उसने कोरोना को अपने धर्म से नहीं बल्कि व्यक्तिगत और सामूहिक आचरण एवं इच्छाशक्ति से ही काबू किया है। इसमें कोई दोराय नहीं कि सरकार के ठोस कदमों के बिना शायद यह प्रयास इतने शीघ्र सफल नहीं होते। अगर भारत के संदर्भ में बात करें तो निःसंदेह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना करनी होगी कि उन्होंने सामूहिक रूप से होली के पर्व को न मनाने और अपनी विदेश यात्राओं को स्थगित करने के जो उदाहरण पेश किए, उसने जन मानस पर विशेष प्रभाव डाला।

केंद्र सरकार और प्रदेश सरकारों के एहतियाती परामर्श के साथ उठाए गए तमाम उपाय तभी प्रभावी होंगे जब हम अपने व्यक्तिगत और सामूहिक आचरण पर ध्यान देंगे।  नहीं तो प्रधानमंत्री के आग्रह और आचरण के बावजूद कोरोना से लड़ाई में स्वच्छ भारत अभियान की तरह छेक अवश्य रह जाएगा जो समाज और देश के हित में कतई नहीं होगा। अगर आप अपने निजी जीवन में चेतन होकर जीते हैं और जीने के छोटे-छोटे सहज उपाय अपनाते हैं तो फिर इन उपायों या दूसरे शब्दों में संस्कारों को आप धर्म के आधार पर नहीं बांट सकते। व्यक्तिगत या सामूहिक स्वच्छता जीवन जीने का एक ढंग है। हम इसमें कितना सामंजस्य बिठा पाते हैं, यह बात दूसरी है। हिमाचल के संदर्भ में बात करें तो हम अपने आपको एक तरह से भाग्यशाली मान सकते हैं कि यहां अधिकांश स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व काफी कम है, लेकिन एहतियाती उपाय तो करने ही होंगे-व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों पर, भले ही सरकार ने 31 मार्च तक तमाम शैक्षणिक संस्थानों, आंगनबाडि़यों और सिनेमाघरों सहित कुछ अन्य सार्वजनिक स्थानों को आवश्यक दिशा-निर्देशों सहित बंद करने के आदेश दिए हैं। कोरोना संक्रमण से केवल सेहत ही नहीं सामाजिक और आर्थिक मोर्चों पर भी नुकसान हो रहा है और इससे पार पाने के लिए सभी मोर्चों पर लड़ना होगा। जहां तक अन्य एहतियाती उपायों की बात है तो ऊना जिला में मंगलवार से आगामी आदेशों तक चिंतपूर्णी शक्तिपीठ के कपाट बंद रहेंगे। इसी तरह कांगड़ा जिला में ज्वालाजी, बज्रेश्वरी, चामुंडा और बगलामुखी के अलावा वे तमाम मंदिर भी बंद रहेंगे, जहां भीड़ ज्यादा जुटती है। मंदिर प्रशासन की वेबसाइट और यू-ट्यूब पर ही अपने इष्ट के दर्शन किए जा सकेंगे। इसी तरह हाईकोर्ट और अन्य कचहरियों में भी 31 मार्च तक किसी मामले की सुनवाई नहीं होगी। सरकार ने बिना सेनेटाइज बाहर से आने वाले वाहनों पर प्रदेश में रोक लगा दी है। तमाम बसों और टैक्सियों में हर बार 12 घंटे बाद सोडियम हाइपोक्लोराइड का छिड़काव करना अनिवार्य है। दफ्तरों के दरवाजों पर लगे हत्थों और रेलिंग को हर 10 मिनट और बस अड्डों पर दिन में तीन बार छिड़काव अनिवार्य कर दिया गया है। बैंकों, दफ्तरों और दुकानों में दो बार स्प्रे करना होगा। एटीएम और होटेल में लगी लिफ्ट के बटनों पर हर दो घंटे बाद स्प्रे और दस मिनट बाद बटनों को कपड़े से साफ करने के निर्देश जारी किए गए हैं। सार्वजनिक स्थानों तथा बसों, टैक्सियों और दुकानों पर कोरोना के लक्षण और उससे बचाव के उपायों के पोस्टर भी लगाने होंगे,  लेकिन इन तमाम एहतियाती उपायों, दिशा-निर्देशों और आदेशों के मध्य यक्ष प्रश्न फिर अपना सिर उठाए खड़ा है- व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर हम कितने सजग होकर कोरोना के खिलाफ लड़ाई की अपनी राह को कितना सहज बना पाएंगे?


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