सेना एवं आयकर

By: Mar 7th, 2020 12:04 am

कर्नल (रि.) मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक

पिछले महीने फरवरी के अंत में अमरीकी राष्ट्रपति का भारतीय दौरा जिसका मुख्य उद्देश्य व्यापार बढ़ाने के साथ अमरीका में आने वाले समय में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में प्रवासी भारतीय जो अभी तक डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार की तरफ  अपना झुकाव दिखाते रहे हैं उनके वोटों को साधने से भी जोड़ा जा रहा है। मध्य प्रदेश में विधायकों के अपहरण, तोड़-गठजोड़ का उद्देश्य सरकार गिराना नहीं, बल्कि कुछ हफ्तों में होने वाले राज्यसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने की लड़ाई है। इसके अलावा जब पूरा देश दिल्ली हिंसा एवं कोरोना वायरस की चर्चा में व्यस्त है, इसी दौरान भारतीय सशस्त्र सेनाओं के खाताधारकों के नियंत्रक पीसीडीए पुणे ने फरवरी माह में सेवानिवृत्त सैनिक डिसेबिलिटी पेंशन जो अभी तक आयकर मुक्त थी, उस पर कर लगाने का निर्णय ले लिया और पूरे वर्ष का कर इस महीने की पेंशन में कटने की वजह से ज्यादातर सैनिकों के खाते में मात्र 100 ही क्रेडिट हुए। भूतपूर्व सैनिक संगठनों के विरोध के बाद इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक वापस ले लिया गया है, पर मुद्दा यह है कि क्या डिसेबिलिटी पेंशनर सैनिकों को आयकर से मुक्त रखना चाहिए या नहीं। भारतीय सेना में दाखिला लेते वक्त हर सैनिक पूरी तरह से शारीरिक एवं मानसिक तौर पर स्वस्थ होता है। सेना में कार्यकाल के दौरान अलग-अलग परिस्थितियों और स्थानों पर सेवाओं से सैनिक को बदकिस्मती से किसी न किसी अपंगता से जूझना पड़ता है। कोई भी सैनिक अपनी सेवा के दौरान डिसेबिलिटी नहीं लेना चाहता क्योंकि डिसेबल सैनिक को तरक्की और अच्छी पोस्टिंग का मौका  कम मिलता है। वार्षिक चिकित्सा निरीक्षण के दौरान कोई कमी पाए जाने के कारण उसको अपंग घोषित किया जाता है। जो सैनिक किसी लाइफस्टाइल अपंगता से ग्रसित होते हैं उनको किसी भी तरह का कोई फायदा नहीं दिया जाता। मात्र ऐसी बीमारियां जो हाई एल्टीट्यूड या अत्यंत ठंडे मौसम में रहने से या फिर किसी लड़ाई, ट्रेनिंग या मुठभेड़ के दौरान लगी चोट के कारण जो अपंगता हासिल होती है उसी पर  डिसेबिलिटी बेनिफिट दिया जाता है और इस तरह का निर्णय अलग-अलग स्तर पर डाक्टर अच्छी तरह से निरीक्षण करके देते हैं। डिसेबल सैनिक सेवानिवृत्ति के बाद दूसरी नौकरी करने में असमर्थ होता है, इसलिए उसकी पेंशन आयकर मुक्त होती है। वर्तमान सरकार जो फौजी सैनिकों की हिमायती बताती है उसके कार्यकाल के दौरान सैनिकों के प्रति लिया गया यह निर्णय थोड़ा समझ से बाहर है। मेरा मानना है कि सरकार को इस तरह के संवेदनशील विषय पर अच्छी तरह से अध्ययन कर ही निर्णय लेना चाहिए। अन्यथा यह देश के लिए काफी कुछ न्योछावर कर चुके सैनिकों के साथ अन्याय होगा।


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