हिंसा रोकने को कारगर नीति चाहिए

By: Mar 6th, 2020 12:06 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

क्या देश की छवि को धूमिल करने के लिए यह जानबूझ कर की गई योजना थी? जब आग बुझ जाती है तब ये मुद्दे विचार करने लायक होते हैं। क्या आपको लगता है कि 200 गुप्तचरों की उपस्थिति वाले एक शक्तिशाली राष्ट्र को यह नहीं पता था कि राष्ट्रपति के स्वागत समारोह के बाहर क्या चल रहा है? इन सब के बावजूद ट्रंप ने भारत के साथ जो किया वह शायद समर्थन का सर्वोच्च खांचा है और उन्होंने उन सभी विवादास्पद मामलों को नजरअंदाज कर दिया जो उनके सामने प्रेस कांफ्रेंस में उठाए गए। इससे पहले कभी भी अमरीका के राष्ट्रपति ने भारत को भविष्य के संबंध में ऐसा समर्थन और आश्वासन नहीं दिया था जिससे भारत के प्रधानमंत्री को पाकिस्तान को आसानी से अलग-थलग करने में मदद मिली हो। जब देश की राजधानी दिल्ली में किसी शक्तिशाली विदेशी मेहमान की आवभगत हो रही थी, तो शाहीन बाग व कुछ अन्य क्षेत्र नरक बन रहे थे…

राम मंदिर का रास्ता साफ  कर दिया गया है और मोदी सर्वोच्च नेता हैं जिन्हें मंदिर की सेवा में राम भक्त का विशेषाधिकार प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। उच्च प्राथमिकता के इस एजेंडा एक्शन को उन्होंने रक्त की एक भी बूंद बहाए बिना सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी की मैत्रीपूर्ण स्वीकृति दिलाकर प्राप्त कर लिया। इस ऐतिहासिक समय में कोई संदेह नहीं है कि मैं वाराणसी में था और दिल्ली में एक और मील का पत्थर देखने के लिए दिल्ली गया था, और वह था- दिल्ली में ट्रंप और मोदी का शिखर सम्मेलन। यह एक और ऐतिहासिक कदम हिंदुवाद विरोध के ताबूत में अंतिम कील था। अब तक भारत की आत्मा को कलंकित किया गया था, क्योंकि वह मंदिर और खुद की पहचान बनाने में विफल रहा था। ट्रंप की हस्तक्षेप न करने की नीति के कारण नागरिकता संशोधन कानून का विरोध खत्म हो जाना चाहिए था, लेकिन दुर्भाग्य से इसने एक हिंसक दंगा और रक्तपात का रूप ले लिया। वाराणसी से प्रस्थान करने के बाद मैंने किसी तरह दिल्ली का तनाव व दबाव देखा, जबकि वाराणसी में खुशनुमा आश्चर्य यह था कि शहर में सड़कों व मंदिरों का रूप-रंग बदल गया था। कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि मोदी उन उम्रदराज गलियों को साफ  कर देंगे जहां संकीर्ण गलियों ने कभी बड़े आकार के वाहनों को चलने की अनुमति नहीं दी। नागरिकों के पुनर्वास या मुआवजे को लेकर कोई शिकायत नहीं थी क्योंकि उन्होंने उनके साथ उदारतापूर्वक व्यवहार किया। परिणाम यह कि शहर की योजना में एक क्रांति आई है। वाराणसी राष्ट्र का ज्ञान केंद्र बनने की राह पर है। जब मैं दिल्ली पहुंचा तो ट्रंप और ट्रंप ही हर जगह थे। दिल्ली व्यापार और विज्ञान में भारत और अमरीका के सहयोग के युग को देख रहा था। जब दुनिया के एक महान नेता भारत का दौरा कर रहे थे तो ऐसी हिंसा क्यों फैल गई? जब देश में विदेशी और प्रतिष्ठित आगंतुक हमारे घर में थे, तब पत्थरों का ऐसा मलबा हवा में क्यों उड़ रहा था, जब यह नागरिकों के लिए जरूरी था कि राष्ट्र के सम्मान और प्रतिष्ठा को बनाए रखना है। क्या देश की छवि को धूमिल करने के लिए यह जानबूझ कर की गई योजना थी? जब आग बुझ जाती है तब ये मुद्दे विचार करने लायक होते हैं। क्या आपको लगता है कि 200 गुप्तचरों की उपस्थिति वाले एक शक्तिशाली राष्ट्र को यह नहीं पता था कि राष्ट्रपति के स्वागत समारोह के बाहर क्या चल रहा है? इन सब के बावजूद ट्रंप ने भारत के साथ जो किया वह शायद समर्थन का सर्वोच्च खांचा है और उन्होंने उन सभी विवादास्पद मामलों को नजरअंदाज कर दिया जो उनके सामने प्रेस कांफ्रेंस में उठाए गए। इससे पहले कभी भी अमरीका के राष्ट्रपति ने भारत को भविष्य के संबंध में ऐसा समर्थन और आश्वासन नहीं दिया था जिससे भारत के प्रधानमंत्री को पाकिस्तान को आसानी से अलग-थलग करने में मदद मिली हो। जब देश की राजधानी दिल्ली में किसी शक्तिशाली विदेशी मेहमान की आवभगत हो रही थी, तो शाहीन बाग व कुछ अन्य क्षेत्र नरक बन रहे थे। शाहीन बाग मॉडल का सबसे बुरा नतीजा यह निकला कि भारत में मुसलमानों ने खुद को अलग-थलग कर लिया। नागरिकता कानून का भारतीय मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी अवैध रूप से प्रवेश करने वालों को लाने के लिए हमने राजधानी की गलियों को तब जलाया, जब देश में दो शक्तियों की बड़ी एकजुटता देखी जा रही थी।

अमरीका भारत के साथ खड़ा होगा, लेकिन साथ ही वह पाकिस्तान के साथ जेहादी तत्त्वों को नियंत्रित करने के लिए संपर्क कर सकता है। भारत में सांप्रदायिक तत्त्वों को नियंत्रित करने पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। भारत में मुसलमानों के पास दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और उन्हें राष्ट्र के बड़े हित में अपने हितों के सद्भावनापूर्ण विलय के लिए नए रास्ते खोजने होंगे। इस हिंसक झड़प में भावी हिंसात्मक परेशानियों की संभावना छिपी हुई है। ताहिर हुसैन, जो आम आदमी पार्टी के नेता हैं, के घर में इतनी बड़ी मात्रा में घातक हथियार और पत्थर मिले कि यह सुरक्षा बलों के साथ कुछ दिनों के युद्ध में संलिप्त रह सकता था। यह पुलिस का अजीब आचरण था जो उसे पकड़ा नहीं जा सका और वह अभी भी फरार है। राष्ट्र और देश के सभी हितों पर चिंता से जुड़े मामलों में विपक्ष को भी अपनी भूमिका स्पष्ट करनी होगी। जब शाहीन बाग की समस्या चल रही थी तो कोई भी उनकी काउंसिलिंग करने नहीं गया और वे इतने अड़े थे कि सुप्रीम कोर्ट के वार्ताकारों को भी वस्तुतः महिलाओं द्वारा अलग कर दिया गया। यह जांच के लायक होगा कि किसने महिलाओं को सिखाया और प्रशिक्षित किया जिन्होंने सुरक्षा से संबंधित एक नया मसला खड़ा कर दिया और वे सार्वजनिक उपयोग के लिए बनी सड़क को निरंतर अवरुद्ध करती रहीं। मेरे विचार में सार्वजनिक उपयोग के लिए बनी सड़क को कड़े कदम उठाकर साफ करने के भी कई प्रभाव होने चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट फैसला नहीं दिया। हमारा संविधान सरकार के किसी फैसले का विरोध करने का अधिकार देता है, लेकिन सार्वजनिक उपयोग के लिए बनी सड़क को अवरुद्ध करने या दूसरों के अधिकार में खलल डालने का अधिकार किसी को भी नहीं दिया गया है। भविष्य में इस तरह के मसलों से निपटने के लिए एक दृढ़ और स्पष्ट नीति की जरूरत है।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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