कोरोना के साइड इफेक्ट

By: Apr 3rd, 2020 12:06 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विकासशील देशों में दुनिया की दो-तिहाई आबादी अभूतपूर्व आर्थिक मंदी का सामना करेगी। संयुक्त राष्ट्र ने अर्थव्यवस्थाओं को बचाने के लिए 2.5 ट्रिलियन डालर के पैकेज का आह्वान किया है। पहले से ही जी-20 देशों ने अपने से संबद्ध देशों के लिए 5 ट्रिलियन डालर पैकेज का विस्तार करने की पेशकश की है जो इस तरह की तबाही का सामना करेगा। वायरस की महामारी में कई विनाशकारी विशेषताएं हैं और आर्थिक व स्वास्थ्य संबंधी मसलों के अलावा इसके कारण दुनिया के भविष्य में काम करने के तरीके में बदलाव आया है। उदाहरण के लिए चीन और भारत को छोड़कर दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं बुरी तरह प्रभावित होंगी और यह एक नई सामाजिक व्यवस्था बनाएगा। इसके अलावा चीन के लिए कम से कम अलग-अलग देशों को होने वाले नुकसान का भुगतान करने का हो-हल्ला हो सकता है…

दुनिया अभूतपूर्व महामारी के विनाश के नीचे पिस रही है जो मानव को मार रही है और मानव जाति के भविष्य को खतरा है। कोई सोच भी नहीं सकता था कि चीन से निकलने वाली बीमारी दुनिया के इतने देशों में कहर बरपा सकती है। आज वस्तुतः कोई भी देश वायरस से अछूता नहीं रहा है। अनुसंधान से पता चला है कि यह वायरस चीन के वुहान शहर में उत्पन्न हुआ था, जिसमें एक इंस्टीच्यूट ऑफ  वायरोलॉजी है और शायद दुनिया का सबसे बड़ा वायरल बैंक है। ऐसा माना जाता है कि इस वायरस का उत्पादन किसी तरह से किया गया था, चमगादड़ भी चीनियों के लिए एक पकवान है। कुछ लोग झींगे को इसका श्रेय देते हैं, लेकिन किसी भी स्थिति में मीट बाजार को इसके मूल का केंद्र माना गया है। इस पर जांच करने वाले आठ चीनी वायरोलॉजिस्टों ने एक शोधपत्र लिखा जो उनकी पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। सरकार ने न केवल इसे दबा दिया, बल्कि वैज्ञानिकों को भी हटा दिया। यदि पूरे प्रकरण की जांच की जाए और दुनिया के विशेषज्ञों को सूचित किया जाए तो यह बेहतर परिणाम दे सकता है, लेकिन सरकार की ओर से वैज्ञानिक जांच को विफल करने के लिए यह आपराधिक कार्य था। नतीजतन यह अनियंत्रित होकर फैल गया और पूरी दुनिया प्रभावित हो गई। पहला अंतरराष्ट्रीय रैमीफिकेशन इटली के कस्बे में फैलाव था क्योंकि उनका कपड़ा उत्पादन के लिए चीनियों के साथ गहन इंटरैक्शन तथा सहयोग था। इस बीमारी का सबसे ज्यादा असर दोनों देशों के दो शहरों में पड़ा और वहां से यह अलग-अलग देशों में फैल गया। यह अजीब है कि पूरी दुनिया को प्रभावित करने में इस तरह की गति को पहले नहीं देखा गया। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र ने भी इसे हल्के में लिया और कोई पूर्व चेतावनी जारी नहीं की। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विकासशील देशों में दुनिया की दो-तिहाई आबादी अभूतपूर्व आर्थिक मंदी का सामना करेगी। संयुक्त राष्ट्र ने अर्थव्यवस्थाओं को बचाने के लिए 2.5 ट्रिलियन डालर के पैकेज का आह्वान किया है। पहले से ही जी-20 देशों ने अपने से संबद्ध देशों के लिए 5 ट्रिलियन डालर पैकेज का विस्तार करने की पेशकश की है जो इस तरह की तबाही का सामना करेगा। वायरस की महामारी में कई विनाशकारी विशेषताएं हैं और आर्थिक व स्वास्थ्य संबंधी मसलों के अलावा इसके कारण दुनिया के भविष्य में काम करने के तरीके में बदलाव आया है।

उदाहरण के लिए चीन और भारत को छोड़कर दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं बुरी तरह प्रभावित होंगी और यह एक नई सामाजिक व्यवस्था बनाएगा। इसके अलावा चीन के लिए कम से कम अलग-अलग देशों को होने वाले नुकसान का भुगतान करने का हो-हल्ला हो सकता है ताकि प्रकोप और शुरुआती रोकथाम की रणनीतियों का शमन किया जा सके। कोविड-19 के साइड इफेक्ट्स गैर आर्थिक क्षेत्रों तक भी होंगे क्योंकि सामाजिक और धार्मिक मुद्दों को उठाया जाएगा। पहली बार पूरी दुनिया को वायरस की रोकथाम करने के लिए एकजुट होना पड़ा, जिसे अंतरराष्ट्रीय और अंतरजातीय मसलों से निपटना माना जा सकता है। हम सैन्य हमलों के अभ्यस्त थे, लेकिन इसका मतलब अब यह भी हो सकता है कि वायरस के हमले की संभावना है। इस महामारी का एक अन्य आयाम चिकित्सा के बुनियादी ढांचे का पुनर्मूल्यांकन और पुनर्मूल्यांकन के साथ-साथ कार्यबल का प्रशिक्षण भी है। शायद विश्व स्वास्थ्य संगठन को ऐसी स्थितियों में अपनी भूमिका का पुनर्गठन करना होगा जिन्हें अधिक सक्रिय और वैज्ञानिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता हो सकती है। वैक्सीन या अन्य उपायों को खोजने के लिए विज्ञान के अनुसंधान और आविष्कार का पता लगाना होगा। इस प्रकार की विकृतियों को तोड़ने के लिए चिकित्सा पुरुषों और महिलाओं के नेतृत्व में पैरा मेडिकल स्टाफ  की एक विश्व शक्ति या सेना की आवश्यकता होगी। स्वच्छता और स्वास्थ्य के ऐसे मामलों को धार्मिक और सामाजिक परिपाटियों से अलग करना होगा। उदाहरण के लिए पश्चिम के साथ-साथ पूर्वी दुनिया के कुछ हिस्सों में अभिवादन के लिए चुंबन को गुड मार्निंंग या सलाम या नमस्ते से प्रतिस्थापित करना होगा तथा अजनबियों के साथ गहन शारीरिक संपर्क से बचना होगा। सामान्य समय में वायरस के संभावित प्रसार को रोकने के लिए इनकी आवश्यकता होगी।

विश्व के धार्मिक मामलों में जो परिपाटियां स्वच्छता और स्वास्थ्य के अनुरूप नहीं हैं, उन्हें सीमित करने की आवश्यकता होगी। विश्व को अधिक स्वच्छ बनाने के लिए स्वच्छता अभियान की आवश्यकता होगी और संयुक्त राष्ट्र इसके लिए सबसे उपयुक्त इकाई है। मानव जाति के लिए इस तरह के बड़े संकट का एक सकारात्मक प्रभाव स्वेच्छाचारी सहयोग है, क्योंकि सरकार के अलावा अन्य एजेंसियां संकट को दूर करने के लिए आगे आ रही हैं। कोई भी मनोकामना कर सकता है कि सामान्य समय में भी इस तरह के सार्वजनिक सहयोग को बनाए रखा जा सकता है। भारत टाटा, प्रेमजी, अंबानी और नए अरबपति बाबा रामदेव द्वारा दिए जा रहे करोड़ों के दान को देख रहा है। फिल्मी सितारे और कई अन्य लोग मोदी के पीएम केयर फंड को पैसे से भर रहे हैं। अब तक भारत में लॉकडाउन सफल रहा है और यह उन संरक्षणवादी देशों में शीर्ष पर बना हुआ है जिन्होंने आंकड़े बनाए रखे हैं। लॉकडाउन के बाद भी यह दुनिया की तुलना में कम गति में बढ़ रहा है। लॉकडाउन का एक सप्ताह खत्म हो गया है, अभी दो और सप्ताह ऐसी ही बंदिशें जारी रहेंगी। देश को पूरे देश की रक्षा करने के लिए मिशन के पीछे एकजुट होने दें। ऐसा करके ही हम हिंदू धर्मग्रंथों की उस उक्ति को चरितार्थ कर सकते हैं जिसके अनुसार पूरा विश्व ही एक परिवार है। संकट का समय एकजुटता का समय है।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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